विश्व ने तुर्की के शांति प्रयासों का स्वागत किया है,क्यों?

विश्व ने तुर्की के शांति प्रयासों का स्वागत किया है,क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दुनिया की निगाहें इस सप्ताह तुर्की में होनेवाली रूस-यूक्रेन वार्ता पर है. पहले तुर्की की पहल पर दोनों देशों के विदेश मंत्री भी बैठक कर चुके हैं. इस बातचीत से पहले तुर्की के राष्ट्रपति एरदोआं ने कहा है कि समझौते के छह में से चार बिंदुओं पर समझदारी बन चुकी है. तुर्की और राष्ट्रपति एरदोआं वर्तमान संकट के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं.

एक महीने से अधिक समय से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध के जल्दी थमने की कामना सभी को है, क्योंकि इसने पूरे विश्व को प्रभावित किया है, लेकिन जिन देशों या क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है, उनमें पूर्वी यूरोप और तुर्की प्रमुख हैं. यूक्रेन और रूस दोनों से ही तुर्की के मधुर संबंध रहे हैं. रूस से तो तुर्की के ऐतिहासिक संबंध हैं. तुर्की नाटो का सदस्य भी है और यूरोपीय संघ की सदस्यता का एक उम्मीदवार भी है.

यह दुनिया की 20 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समूह- जी-20 का भी सदस्य है, जिसमें अधिकतर पश्चिम के देश हैं और उनका वर्चस्व है. यूरोपीय संघ तुर्की का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. इस समूह के साथ तुर्की की व्यापारिक हिस्सेदारी लगभग 40 प्रतिशत है. तुर्की द्वारा रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के फैसले के बाद नाटो द्वारा उसे एफ-35 कार्यक्रम से बाहर कर देने से दोनों खेमों में तनातनी की स्थिति रही है. पश्चिमी देशों ने तुर्की पर कई प्रतिबंध भी लगाये हैं, जिसके कारण उसकी अर्थवयवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है.

तुर्की तेजी से उभरती हुई एक अर्थव्यवस्था है, लेकिन अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए उसे आयात पर निर्भर रहना पड़ता है. यह अपनी गैस की जरूरतों का लगभग 50 प्रतिशत, तेल का 17 प्रतिशत और गैसोलीन का 40 प्रतिशत रूस से आयात करता है. पिछले कई वर्षों से दोनों देश क्षेत्रीय राजनीति में भी एक-दूसरे के साथ सहयोग कर रहे हैं.

अजरबैजान और अर्मेनिया के बीच युद्ध में दोनों देशों के सहयोग से ही शांति आ पायी थी, लेकिन तुर्की ने क्रीमिया पर रूस के कब्जे को न तो स्वीकार किया है और न ही इसे मान्यता दी है. यूक्रेनी क्षेत्रों- डोनेस्क और लुहांस्क- पर भी तुर्की का रुख यही है और उसने ‘यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपनी प्रतिबद्धता’ व्यक्त की है. यूक्रेन के इन क्षेत्रों को रूस ने यूक्रेन युद्ध से पहले स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दे दी थी. संयुक्त राष्ट्र में भी तुर्की ने रूस की सैनिक कार्रवाई की निंदा के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है.

काला सागर क्षेत्र में तुर्की के सुरक्षा हित हमेशा रूस से प्रभावित रहे हैं तथा यूक्रेन से मजबूत संबंध भी तुर्की की विदेश और सुरक्षा नीति की प्राथमिकताओं में रहे हैं. पिछले दिनों तुर्की जब यूक्रेन से अपने संबंध बेहतर कर रहा था, तो उसने रूस से यूक्रेन के तनाव को देखते हुए उसे अपने मशहूर ड्रोन हथियार उपलब्ध कराये थे. ये हथियार इस युद्ध में यूक्रेन की काफी मदद कर रहे हैं.

रक्षा सहयोग के अलावा तुर्की यूक्रेन के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को भी विस्तार दे रहा था. बीते फरवरी माह में ही दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे. इस समझौते के तहत दोनों देशों ने सहमति जतायी थी कि आनेवाले समय में द्विपक्षीय व्यापार में 10 अरब डॉलर की वृद्धि करेंगे. हाल के समय में तुर्की यूरोप से संतुलन के लिए या नाराजगी दिखाने के लिए रूस से नजदीकी जताता रहा था, लेकिन इस युद्ध ने उसके सामने एक दुविधा की स्थिति पैदा कर दी है.

आधिकारिक तौर पर तो तुर्की ने नाटो के विस्तार का समर्थन किया है (जिस नाटो के कारण रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया है) और रूस की आलोचना भी की है. इसके साथ ही वह न सिर्फ दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर रहा है, बल्कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के रूस के विरुद्ध लगाये गये कई प्रतिबंधों को मानने से भी इनकार कर दिया है. खास कर उसने अपना वायु क्षेत्र रूस के लिए खुला रखा है.

इस युद्ध के परिणाम तुर्की की सुरक्षा नीति को भी प्रभावित करेंगे. अगर रूस इस युद्ध में परिणाम अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जाता है, तो रूस काला सागर में तुर्की पर दबाव बना सकता है. साथ ही, रूस लीबिया और सीरिया में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है, जिससे तुर्की के रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचेगा. आस-पास के कई छोटे देश भी रूस की यूक्रेन नीति से खौफ में हैं और वे किसी ऐसे विकल्प की तलाश में हैं, जिसमें रूस की दादागिरी से बचाव तो हो ही, लेकिन पश्चिम के ब्लैकमेल में भी न फंसा जाये.

तुर्की इस मामले में न सिर्फ छोटे पड़ोसी देशों की मदद कर सकता है, बल्कि एक क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन की बुनियाद भी रख सकता है. हाल ही में तुर्की विदेश विभाग द्वारा आयोजित अंताल्या डिप्लोमैटिक फोरम में जिस प्रकार रूस, यूक्रेन और अर्मेनिया समेत अनेक पड़ोसी देशों के प्रधानमंत्रियों और विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया था. यह तुर्की के प्रति पड़ोसी देशों के भरोसे को दर्शाता है.

यूक्रेन युद्ध को खत्म कराने के लिए तुर्की बेहद गंभीरता से प्रयास कर रहा है. इसके नेता रूस और यूक्रेन के नेताओं से कभी मास्को, कभी कीव, तो कभी अंकारा में मुलाकातें कर रहे हैं. कोई अन्य देश इस स्तर पर सक्रिय नहीं है. अगर किसी बिंदु पर युद्ध विराम पर सहमति बन जाती है, तो दोनों देश तुर्की को इसका गारंटर मानने को तैयार हैं. इस युद्ध ने जहां तुर्की के सामने कई चुनौतियां पेश की हैं, तो वहीं इसने कई अवसर भी पैदा किये हैं.

तुर्की कामयाबी के साथ चुनौतियों का सामना भी कर रहा है और अवसरों का फायदा भी उठा रहा है. आक्रामक रूसी नीति और व्यवहार ने पश्चिमी देशों और अमेरिका के सामने दीर्घकालिक सुरक्षा एवं भू-राजनीतिक चुनौतियां पैदा कर दी हैं, जिनके लिये पश्चिम को तुर्की का साथ चाहिए. इसीलिए अब पश्चिम तुर्की से अपने संबंधों पर दोबारा विचार कर रहा है.

यूक्रेन को लेकर तुर्की की कोशिशों को अमेरिका भी समर्थन दे रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस संबंध में राष्ट्रपति एरदोआं से बात की है और तुर्की के शांति प्रयासों का स्वागत किया है. तुर्की का प्रयास है कि यह युद्ध जल्द समाप्त हो और दोनों पक्ष किसी ऐसे समझौते पर पहुंचें, जिससे क्षेत्र में दीर्घकालीन शांति स्थापित हो सके.

Leave a Reply

error: Content is protected !!