किसानों में मची हाहाकार, पंप सेट चलाकर धान की रोपनी करने को विवश हुए अन्नदाता.

किसानों में मची हाहाकार, पंप सेट चलाकर धान की रोपनी करने को विवश हुए अन्नदाता.

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उमस भरी गर्मी से बढ़ी लोगों की मुसीबतें, मौसमी बीमारी के होने लगे शिकार

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आषाढ़ का महीना बीतने को है. लेकिन मानसून की दगाबाजी ने किसानों को संकट में डाल दिया है. बारिश के अभाव में जहां पटवन कर खेती की गयी है. वहां धान के फसल पिले पड़ने लगे हैं. बिहार में बारिश नहीं होने से चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है. खेतों में धूल उड़ रहे हैं. अगर धान की बुआई की बात करें तो नरकटियागंज अनुमंडल के पांचों प्रखंड क्रमश: नरकटियागंज, गौनाहा, लौरिया, सिकटा और मैनाटाड़ में हजारों हेक्टेयर खेत में धान की बोआई बारिश के अभाव में नहीं हो पायी है.

किसान पंप सेट चलाकर धान की रोपनी करने को विवश

किसान जैसे-तैसे पंप सेट चलाकर धान की रोपनी करने को विवश हैं. राजपुर मठिया के किसान बालचंद्र मिश्र, अखिलेश मिश्र, मोहर यादव, मटियरिया के किसान दीपू मणि तिवारी, सुविंजय कुमार, रंजन ओझा समेत अन्य किसानों ने बताया कि उन्होंने किसी प्रकार पंप सेट से पटवन करवाकर धान की रोपनी कर ली. लेकिन अब खेतों में दरार पड़ने लगी है. वे करें तो क्या करें. बता दें कि समय से पूर्व मानसून की दस्तक से किसानों में खुशी थी. लेकिन आषाढ़ महीना बीतने की ओर है और मानसून रूठ गया है. बूंद बूंद पानी के लिए किसान तरस रहे हैं और पानी है कि आसमान से नहीं बल्कि जमीन के अंदर से निकालने की विवशता हर तरफ दिख रही है.

एक बीघा खेत में लग रहा साठ लीटर डीजल

किसानों के समक्ष सबसे बड़ी समस्या यह है कि जिन खेतों में धान की बुआई की जा रही है. उन्हें जलने से बचाने के लिए दुबारा पटवन कराना पड़ रहा है. भुसरारी के किसान हेमेंद्र तिवारी बताते हैं कि उन्होंने एक बीघा खेत में पंप सेट से पटवन कराया. खेत में 30 लीटर डीजल लगा. जबकि एक सप्ताह के अंदर ही उसी खेत में दुबारा पटवन कराना पड़ा. उन्होंने बताया कि एक बीघा खेत में एक सप्ताह के अंदर ही करीब छह हजार का डीजल लग गया. पकड़ी के किसान अरूण कुमार, सीतापुर के मो.आलमगीर, चेंगोना के विजय मणि तिवारी समेत क्षेत्र के किसानों का कहना है कि अगर बारिश का यहीं हाल रहा तो अब बिचड़े भी नहीं बचेंगे. किसानों की कमर टूट चुकी है. धान की रोपनी करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.

खेतों में पड़ने लगीं दरारें, किसान चिंतित

गया जिला के गुरुआ प्रखंड क्षेत्र में बारिश नहीं होने से किसान-मजदूर वर्ग के लोगों की बेचैनी बढ़ने लगी है. खेतों में दरारें पड़ने लगी हैं. धान रोपने का समय निकलता जा रहा है. किसान बताते हैं कि धान रोपना तो दूर, बहुत से किसानों ने अब तक खेत में बिचड़ा भी नहीं डाला है. जिन किसानों ने मोटर या सबमर्सिबल के माध्यम से अपने खेत में धान का बिचड़ा लगा दिया है, उस खेत में फिलहाल बहुत बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गयी हैं. धान के बिचड़े को उखाड़ कर खेत में लगाने वाला समय आने बाद भी चिलोर, बेलौटी, नगवां, नदौरा, काज एवं मंडा पकरी पंचायत में एक दर्जन से अधिक गांवों में अब तक 20 प्रतिशत ऐसे किसान हैं, जो अपने खेत में धान का बिचड़ा भी नहीं लगाये हैं.

धान की रोपनी में हो रही देरी

किसानों का कहना है कि अब सवान का महीना शुरू होने वाला है. अब तक धान की रोपनी हो जाती थी. लेकिन, इस वर्ष दो दशक बाद ऐसा समय आया है कि अब तक सभी किसान बिचड़ा की बोआई भी नहीं कर पाये हैं. लोगों को इस वर्ष सुखाड़ की आशंका सताने लगी है. किसान रामजी सिंह, नरेश कुमार सिन्हा, सुरेश प्रसाद, राजकुमार प्रसाद सिंह, जगेश्वर यादव, जगदीश यादव, विनोद यादव आदि ने बारिश नहीं होने पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार का ध्यान किसानों की ओर आकृष्ट किया है.

उमस भरी गर्मी से बढ़ी लोगों की मुसीबतें, मौसमी बीमारी के होने लगे शिकार

उमस भरी गर्मी ने लोगों की मुसीबतें बढ़ा दी है. मौसम की मार से बड़ी संख्या में लोग बीमार हो रहे हैं. इस मौसम में विशेषकर चक्कर, बेहोशी, सांस लेने में दिक्कत, माइग्रेन, उल्टी, दस्त और पेट दर्द की काफी शिकायत मिल रही है. डीएमसीएच, पीएचसी व निजी क्लिनिकों में इस तरह के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गयी है. डॉक्टरों का कहना है कि इन दिनों हर 10 में तीन मरीज मौसमी बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार डीएमसीएच, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र आदि जगह प्रतिदिन 1378 के लगभग रोगी इलाज कराने पहुंच रहे हैं. इसमें सबसे अधिक चर्म रोग, चक्कर, बेहोशी व सांस रोग, सर्दी एवं खांसी के मरीज हैं.

त्वचा रोग, सर्दी व जुकाम की बढ़ी शिकायत

गर्मी बढ़ते ही मौसमी बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है. इसमें डायरिया, त्वचा, लू लगना, पानी की कमी, फूड पॉइजनिंग आदि बीमारी शामिल है गर्मी में थकावट, लू लगना, पानी की कमी, फूड पॉइजनिंग आम बीमारी है. इसके अलावा हीट-स्ट्रोक की संभावना अधिक रहती है. इस दौरान शरीर का तापमान बहुत ज्यादा होता है, त्वचा रूखी और गर्म होती है, शरीर में पानी की कमी, कन्फ्यूजन, तेज या कमजोर नब्ज, छोटी-धीमी सांस, बेहोशी तक आ जाने की नौबत आ जाती है. हीट-स्ट्रोक से बचने के लिए दिन के सबसे ज्यादा गर्मी वाले समय में, घर से बाहर नहीं निकलें. अत्यधिक मात्रा में पानी और जूस पीएं, ताकि शरीर में पानी की कमी न हो. ढीले-ढाले और हल्के रंग के कपड़े पहने.

दूषित भोजन से करें परहेज

फूड पॉइजनिंग गर्मियों में आम तौर पर हो जाती है. खाना साफ- सुथरे माहौल में बनाया जाए. पीने का पानी भी दूषित हो सकता है. अत्यधिक तापमान की वजह से खाने में बैक्टीरिया बहुत तेजी से पनपते हैं, जिससे फूड पॉइजनिंग हो जाता है. सड़क किनारे बिकने वाले खाने- पीने के सामान भी फूड पॉइजनिंग के कारण बन सकते हैं. फूड पॉइजनिंग से बचने के लिए बाहर जाते वक्त हमेशा अपना पीने का पानी घर से ले के चलें. खुले में बिक रहे कटे हुए फल खाने से परहेज करें. शरीर में पानी की मात्रा को पर्याप्त बनाए रखने के लिए अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ पीएं. प्यास लगने का इंतजार नहीं करें. हमेशा घर में बना हुआ नींबू पानी और ओआरएस का घोल आस-पास रखें.

एलर्जी से अधिक प्रभावित हो रहे लोग

 उमस का असर एलर्जी के मरीज पर पड़ता है. इससे उनको सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है. अगर उमस ज्यादा बढ़ता है, तो घुटन के कारण बेहोशी के मामले भी देखने को मिलते हैं. घुटन से बीपी लो हो जाता है. पल्स तेज हो जाता है. जब परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है, तो पल्स कम होने लगता है. शरीर में नमक-पानी और पोटेशियम आदि इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी हो जाती है. दिल और दिमाग पर भी असर पड़ता है.

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