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सुखमय संसार का आधार योग होने से आज पूरा विश्व योगमय हैं,कैसे? - श्रीनारद मीडिया

सुखमय संसार का आधार योग होने से आज पूरा विश्व योगमय हैं,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

योग संपूर्ण स्वास्थ्य का विज्ञान है। यह हिंदू जीवन दृष्टि का शोध और बोध है। यह विश्व मानवता को भारत का श्रेष्ठतम उपहार है। आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। इस बार आयोजन की थीम ‘योग फॉर वेल बींग’ रखी गई है। स्वस्थ मन, स्वस्थ शरीर आनंदपूर्ण जीवन के आधार हैं। योगाभ्यास से वे सहज उपलब्ध हैं। योग में विज्ञान और दर्शन का प्रणय है। हिंदू चिंतन में मीमांसा, न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग और वेदांत भारत के छह दर्शन हैं। बौद्ध और जैन मिलाकर यहां आठ प्रमुख दार्शनिक विचार हैं।

महावीर के पांच महाव्रत व बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग योग है। योग अति प्राचीन विज्ञान है, लेकिन चर्च बहुधा योग को ईसाइयत विरोधी बताता रहा है। सिल्वर स्ट्रीट वैपटिस्ट व ऐंग्लिन चर्च ने 2006 में योग की शिक्षा बंद करवाई थी। वे योग को हिंदू कर्मकांड मानते रहे हैं। योग हिंदू कर्मकांड नहीं है। यह हिंदू शोध का परिणाम है। इसके स्नोत ऋग्वैदिक काल के दर्शन में हैं। महाभारत में गीता योग दर्शन से भरीपूरी है। गीता के अनुसार कर्मकुशलता योग है-योग: कर्मसु कौशलम्।’

भारत के लोकजीवन में योग की सघन उपस्थिति

भारत के लोकजीवन में योग की सघन उपस्थिति है। सुनिश्चित उद्देश्य के लिए किसी को साथ लेना सहयोग है। ज्ञान से जुड़ना ज्ञानयोग है। वस्तु या व्यक्ति से सहायता लेना उपयोग है। संसाधन का सही प्रयोग सदुपयोग है। शक्ति का गलत इस्तेमाल दुरुपयोग है। आरोपित करना अभियोग है। भक्ति मार्ग भक्ति योग है और सत कर्म कर्मयोग। ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति भी योग है। ग्रहों की स्थिति का शुभ होना सुयोग है। आयुर्वेद में औषधियों का मिश्रण स्वास्थ्यवर्धक योग है। गणित में अंको का जोड़ योग है ही। बिना प्रत्यक्ष कारण हुई घटना संयोग है। प्रियजन से अलग होना वियोग है।

भारत के लोकजीवन में योग की सघन उपस्थिति

श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को बताया, ‘दुख संयोग से वियोग ही योग है।’ शंकराचार्य, रामानुज, माधवाचार्य और गोरखनाथ ने योग का प्रसार किया। सृजन के आनंद का स्नोत भी योग है-‘सं दक्षेण मनसा जायते-यह दक्ष मन से ही मिलता है। पतंजलि ने योग को व्यवस्थित व्यावहारिक विज्ञान बनाया। उन्होंने योग सूत्र लिखे और योग के आठ अंग बताए। वे यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं। उन्होंने योग के चार चरण भी बताए। वे हैं-समाधि, साधन, विभूति और कैवल्य। कैवल्य भारतीय चिंतन का मोक्ष या मुक्ति जैसा प्रसाद है।

चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है

पतंजलि योग सूत्रों का विज्ञान दिलचस्प है। पहला सूत्र है-‘अथ योगानुशासन-अब योग के अनुशासन में प्रवेश करते हैं।’ भारत के प्रतिष्ठित ग्रंथ ब्रह्म सूत्र ‘अथातो ब्रह्म जिज्ञासा’ व मीमांसा ‘अथातो धर्म जिज्ञासा’ से आरंभ होते हैं। जिज्ञासा अच्छी बात है, लेकिन योग मार्ग में जिज्ञासा नहीं अनुशासन की महत्ता है। पतंजलि दूसरे सूत्र में योग को परिभाषित करते हैं- योगश्चित वृत्ति निरोध: यानी चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है। बताते हैं ‘चित्तवृत्तियां पांच हैं। ये राग, द्वैष, दुख और सुख का कारण होती हैं। यही दुख का नाश करती हैं।’

चित्त की पांचों वृत्तियां सुख या दुख का कारण हैं। इनका अतिक्रमण योग ध्यान के उपकरण से संभव है। वह ध्यान के केंद्र को मात्र उपकरण बताते हैं। इसलिए ‘यथाभिमत ध्याना द्वा- जिसको जो जंचे, वह उसी केंद्र पर ध्यान करे।’ (समाधि पाद 9) फिर ईश्वर का विकल्प देते हैं कि ईश्वर पर प्राण केंद्रित करें। फिर ईश्वर की परिभाषा करते है, ‘क्लेश, कर्म, कर्मफल और वासना से असंबद्ध चेतना ईश्वर है।’ यहां ईश्वर विशेष चेतना है।

योग प्राचीन विज्ञान है

मानव चित्तवृत्तियों के बंधन में है। चित्त प्रतिपल गतिशील है। यह गतिशीलता ही संकल्प-विकल्प, सुख-दुख, राग, द्वैष और अवसाद विषाद लाती है। गीता में योग के विषय में उल्लेख है, ‘अस्थिर मन जहां-जहां भागता है, उसे वहां-वहां से लौटाकर अपने भीतर लाना चाहिए। योग साधक का मन निष्कंप रहता है। योग सिद्धि में चित्त वृत्ति की निरुद्धि है। प्राचीन भारत में भी विज्ञान दर्शन की अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं।

जैसे शून्य का आविष्कार। अंक प्रतीक भी यहीं खोजे गए। ‘साइंस एंड सिविलाइजेशन इन चाइना’ में नीढैम ने बीजगणित को भारतीय व चीनी विद्या बताया है। हिंदुओं में वैज्ञानिक शोध व दार्शनिक बोध को धर्म भाग बनाने की प्रवृत्ति रही है। योग भी हिंदू दार्शनिक वैज्ञानिक पतंजलि का विज्ञान है। जो पंथिक समूह धार्मिक कारण से योग नहीं अपनाते, वे स्वतंत्र हैं। योग प्राचीन विज्ञान है। ऐसे तमाम विरोध के बावजूद योग पंख फैलाकर उड़ा है। विश्व योगमय हो रहा है।

योगाभ्यास से स्मृति शुद्ध होती है

योग विश्व को आनंद आपूरित बनाने का महाविज्ञान है। हम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं, लेकिन भारतीय ज्ञान विज्ञान को हेय बताने वाले भी लंबे समय से खुंदक खाए हुए हैं। मार्शल ने ‘मोहनजोदड़ो एंड दि इंडस सिविलाइजेशन’ में लिखा है, ‘शैव मत के समान योग का उद्भव भी आर्यो के पहले हुआ। उसकी कोई भूमिका आर्यो के धर्म में नहीं थी।’ वे सिंधु सभ्यता को वैदिक सभ्यता से प्राचीन मानते थे। सच बात दूसरी है। सिंधु सभ्यता वैदिक सभ्यता का विस्तार है। वैदिक दर्शन में योग है।

योगाभ्यास से स्मृति शुद्ध होती है। चित्त निर्विकार होता है। योग की बड़ी उपलब्धि स्वयं पतंजलि ने बताई है-ऋतंभरा तत्र प्रज्ञा। बुद्धि ऋतंभरा हो जाती है। ऋतंभरा का अर्थ है-प्राकृतिक नियमों से आच्छादित हो जाना। बुद्धि प्रकृति के छंद, रस में एकात्म हो जाती है। वह सत अभ्यास व वैराग्य पर जोर देते हैं। अभ्यास और वैराग्य परस्पर विरोधी हैं। अभ्यास कर्म है और वैराग्य तटस्थता, लेकिन दोनों की एक साथ साधना आश्चर्यजनक परिणाम देती है।

कोरोना के दौरान लोगों ने घरों में ही योग कर स्वयं को स्वस्थ रखा 

दुनिया यों ही योग मित्र नहीं हो रही है। योग के अनुपालन में संपूर्ण स्वास्थ्य व आनंद रस पूर्ण जीवन की गारंटी है। संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तद्विषयक प्रस्ताव को 170 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला था। तबसे दुनिया में योग की धूम है। कोरोना महामारी के दौरान भी तमाम लोगों ने घरों में ही योग कर स्वयं को स्वस्थ रखा। भारत के मध्य वर्ग व उच्च आर्थिक वर्ग में भी योग का आकर्षण बढ़ा है। योग स्वस्थ रहने का असाधारण उपाय है। इसके बावजूद हम भारत के लोग योग दिवस की अंतरराष्ट्रीय महत्ता का पूरा लाभ नहीं उठा सके हैं। स्वस्थ और आनंदपूर्ण जीवन के लिए योग को दिनचर्या का भाग बनाने के प्रयास करने होंगे। वैदिक पूर्वजों ने सत कर्म करते हुए 100 वर्ष जीने की अभिलाषा व्यक्त की थी और इस अभिलाषा की पूर्ति अष्टांग योग से ही संभव है।

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