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वन नेशन-वन इलेक्शन को केंद्रीय कैबिनेट की हरी झंडी - श्रीनारद मीडिया

वन नेशन-वन इलेक्शन को केंद्रीय कैबिनेट की हरी झंडी

वन नेशन-वन इलेक्शन को केंद्रीय कैबिनेट की हरी झंडी

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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देश में लंबे समय से बहस का मुद्दा रहे ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election) के प्रस्ताव को बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। इसका उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि चुनावों में होने वाले वित्तीय खर्चे में कटौती की जा सके। ‘एक देश, एक चुनाव’ के समर्थकों का तर्क है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकता है, खर्चों को कम कर सकता है और बार-बार चुनावों के कारण होने वाली परेशानियों को कम कर सकता है। हालांकि, आलोचक इसे लेकर कई तरह के सवाल उठाते रहे हैं।

भारत में चुनाव का एक ऐसा चक्र बना हुआ है, जिससे ऐसा लगता है कि देश में चुनाव होते ही रहते हैं। आजादी के बाद से देश में कई चुनाव हुए हैं, जिससे अक्सर संसाधनों और प्रशासनिक मशीनरी पर काफी दबाव पड़ता है। ‘एक देश, एक चुनाव’ की अवधारणा नई नहीं है। जानकारों का मानना है कि यह प्रक्रिया उतनी की पुरानी है जितना हमारा संविधान।

  • कोविंद कमेटी के अलावा विधि आयोग भी जल्द ही एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट पेश करेगा। सूत्रों के मुताबिक विधि आयोग लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं व पंचायतों के चुनाव साल 2029 में एक साथ कराने की सिफारिश कर सकता है।
  • विधि आयोग और कोविंद कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सरकार संशोधन विधेयक संसद में पेश करेगी।
  • कोविंद कमेटी ने 18 संवैधानिक संशोधनों की संस्तुति की है। विधेयक लाकर सरकार को संविधान में इनसे जुड़ा संशोधन करना होगा। इन संशोधनों को संसद के दोनों सदनों में पास होना जरूरी है।
  • मोदी सरकार वन नेशन-वन इलेक्शन प्रस्ताव को कैबिनेट से ग्रीन सिग्नल देने के बाद आगामी शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश कर सकती है।
  • लोकसभा और राज्यसभा में विधेयक पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास मंजूरी को भेजा जाएगा। वहां से मंजूरी मिलने के बाद चुनाव आयोग को विधिमान्य तरीके से पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने की शक्ति मिल जाएगी।
  • भारत जैसे बड़े देश में लोकसभा और विधानसभा के साथ अन्य चुनाव कराने की खातिर चुनाव आयोग को भारी संसाधनों की जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा लंबी तैयारी करने पड़ेगी। एक मतदाता सूची तैयार करना होगा। चुनाव आयोग के तैयार होने के बाद ही 2029 तक वन नेशन-वन इलेक्शन का सपना पूरा हो पाएगा।
  • कोविंद कमेटी ने जिन संवैधानिक संशोधनों का सुझाव दिया है… इनमें से अधिकांश में राज्य विधानसभाओं की सहमति जरूरी नहीं है। इस वजह से केंद्र सरकार की राह थोड़ी आसान है।
  • कोविंद कमेटी ने एक समान मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करने की सिफारिश की है। मगर इसमें संशोधन करने के लिए देश के कम से कम आधे राज्यों की सहमति की जरूरत होगी।

परिसीमन क्या होता है?

देश या राज्य में लोकसभा या विधानसभा सीटों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया को परिसीमन कहते हैं। इसका उद्देश्‍य जनसंख्या में हो रहे बदलाव के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या को संतुलित करना है ताकि प्रत्येक लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में एक समान संख्या में मतदाता हों।

इस प्रक्रिया को करने वाली संस्था को परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) के रूप में जाना जाता है।

परिसीमन कब होता है?

सामान्‍य तौर पर हर जनगणना के बाद परिसीमन किया जाता है, जिससे जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का संतुलन बनाया जा सके। हालांकि, देश में 1976 से परिसीमन पर पाबंदी लागू थी। साल 2002 में परिसीमन आयोग का पुनर्गठन हुआ और 2008 में परिसीमन कराया गया। अगला परिसीमन 2026 में होने की संभावना है।

 

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