विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कुलपति कि नियुक्ति को लेकर नियमों में बदलाव किया

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

विश्वविद्यालयों सहित देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर जैसे पदों पर भर्ती से जुड़े नियमों में बदलाव के साथ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति से जुड़े नियमों में भी बड़ा बदलाव किया है।
नए नियमों के अनुसार कुलपति के लिए अब दस साल का शिक्षण अनुभव अनिवार्य नहीं होगा। बल्कि इसे लचीला बनाते हुए इसके लिए अब शिक्षण कार्य के साथ शोध, शैक्षणिक संस्थान, उद्योग व लोक प्रशासक आदि क्षेत्रों में भी दस साल का अनुभव रखने वाले इसके पात्र होंगे। अब तक कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए दस साल का शिक्षण अनुभव जरूरी था।

 क्या है नया नियम?

यूजीसी के मुताबिक, इस बदलाव के लागू होने के बाद देश भर के विश्वविद्यालयों को अब दूरदर्शी और लीडरशिप क्षमता वाले कुलपति मिल सकेंगे। फिलहाल यूजीसी ने इन बदलावों से जुड़ा मसौदा जारी कर विश्वविद्यालयों और देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों से राय मांगी है। आयोग ने इसके साथ ही कुलपति के चयन से जुड़ी सर्च कमेटी में बदलाव की सिफारिश की है। इसमें यूजीसी के प्रतिनिधि भी अब अनिवार्य रूप से शामिल होगा।

उम्र को लेकर भी बदला नियम

वहीं, कुलपति को एक संस्थान में अधिकतम दो कार्यकाल ही मिलेगा। जो पांच-पांच साल का होगा। हालांकि इस पद पर उन्हें सिर्फ सत्तर साल की उम्र तक ही तैनाती दी जाएगी। इस दौरान जो पहले समाप्त हो जाएगा, वह जुड़ेगा। यूजीसी ने मसौदे में प्रस्ताव किया है यदि नए नियमों के तहत किसी भी संस्थान में कुलपति की तैनाती नहीं दी जाएगी, तो उसे शून्य घोषित माना जाएगा।
यूजीसी ने इसके साथ ही विश्वविद्यालय सहित उच्च शिक्षण संस्थानों में बगैर पीएचडी व नेट के सिर्फ मास्टर डिग्री करने वालों को भी असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति देने की सिफारिश की है। इनमें एमई, एमटेक जैसे डिग्री हासिल करने वाले शामिल होंगे। यूजीसी ने छह जनवरी को जारी भर्ती नियमों से जुड़े इस मसौदे को लेकर लोगों से पांच फरवरी तक सुझाव देने को कहा है।

कृषि और शिक्षा दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें केंद्र सरकार कानून बना कर राज्यों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर रही है। पिछले दिनों कृषि पैदावार और उत्पादों की मार्केटिंग को लेकर केंद्र ने नए कानून का मसौदा जारी किया है, जिसका विरोध संयुक्त किसान मोर्चा ने किया है। पंजाब सरकार इस मसौदे को खारिज कर चुकी है। अब केंद्र सरकार ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी के जरिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव का ऐलान किया है। यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर से लेकर शिक्षकों की नियुक्ति तक के नियमों में ऐसे बदलावों का मसौदा तैयार किया है, जिनके बारे में अभी तक भारत में सोचा भी नहीं गया था।

बदलाव का मसौदा सामने आने के बाद से कहा जा रहा था कि इसका विरोध होगा और विरोध शुरू हो गया है। सबसे पहले तमिलनाडु सरकार ने इस बदलाव का विरोध किया है और कहा है कि वह नए नियमों को नहीं लागू करेगा। गौरतलब है कि तमिलनाडु सरकार पहले से एक देश, एक परीक्षा की नीति का भी विरोध कर रहा है और मेडिकल में दाखिल के लिए होने वाली नीट की परीक्षा के खिलाफ विधानसभा से प्रस्ताव भी पारित किया है। तमिलनाडु के बाद सभी विपक्षी शासन वाले राज्यों से यूजीसी के बदलाव का विरोध होना है। पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस भी इन बदलावों को नहीं लागू करेगी। कांग्रेस पार्टी अपना जो स्टैंड तय करेगी, उसका पालन उसके तीन मुख्यमंत्री करेंगे। लेकिन माना जा रहा है कि कांग्रेस भी इसका विरोध करेगी।

असल में नए बदलावों के जरिए यूजीसी ने विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका बढ़ा दी है। विपक्ष के शासन वाले ज्यादातर राज्य राज्यपालों की भूमिका कम करने में लगे हैं। पश्चिम बंगाल से लेकर केरल और तमिलनाडु तक राज्य सरकारों ने विधानसभा से प्रस्ताव पास करके मुख्यमंत्री को विश्वविद्यालयों का चांसलर बनाया और वाइस चांसलर की नियुक्ति का अधिकार राज्यपालों के हाथ से ले लिया। बिहार में भी नीतीश कुमार की सरकार ने इस तरह का कानून बनाया क्योंकि तत्कालीन राज्यपाल की ओर से की जा रही नियुक्तियों को लेकर कई किस्म की शिकायतें आ रही थीं।

सो, राज्य सरकारें वाइस चांसलर की नियुक्ति में राज्यपालों की भूमिका बढ़ाए जाने का विरोध  करेंगी। उनका विरोध इस बात से भी है कि यूजीसी ने गैर अकादमिक पृष्ठभूमि के लोगों को भी वाइस चांसलर बनाने का सुझाव दिया है। अगर इस कानून को लागू किया जाता है तो अलग अलग सेक्टर के विशेषज्ञ भी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर बन सकते हैं।

ऐसे ही यूजीसी ने लेक्चरर की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा यानी नेट क्वालिफाई करने की जरुरत को भी खत्म करने की सिफारिश की है। सवाल अगर बिना नेट क्वालिफाई किए कोई कॉलेज में शिक्षक नियुक्त होगा तो फिर यूजीसी ओर से ली जाने वाली इस परीक्षा का क्या मतलब रह जाएगा? तभी शिक्षा के कई जानकार भी यूजीसी के नियमों को लेकर सवाल उठा रहे हैं। इससे राज्यों की स्वायत्तता पर तो असर होगा ही साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होने का खतरा भी बढ़ेगा।

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