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अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ क्या है? - श्रीनारद मीडिया

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 2021 में भारत ने अपनी संचयी स्थापित क्षमता में रिकॉर्ड 10 गीगावाट (GW) सौर ऊर्जा की वृद्धि की।

  • यह वृद्धि 12 महीनों के दौरान उच्चतम क्षमता वृद्धि रही है, इसके साथ ही सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वर्ष-दर-वर्ष लगभग 200% की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • अब (28 फरवरी, 2022 तक) भारत 50 GW संचयी स्थापित सौर क्षमता से आगे निकल गया है।
  • 50 GW स्थापित सौर क्षमता में से 42 GW ग्राउंड-माउंटेड सोलर फोटोवोल्टिक (PV) सिस्टम से प्राप्त होती है और केवल 6.48 GW रूफ-टॉप सोलर (RTS) से तथा 1.48 GW सोलर PV के अन्य तरीकों से प्राप्त होती है।

उपलब्धि का महत्त्व:

  • यह वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा से 500 GW ऊर्जा (जिसमें से सौर ऊर्जा के क्षेत्र से 300 गीगावाट ऊर्जा प्राप्त किये जाने की उम्मीद है) के उत्पादन में भारत की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के बाद भारत सौर ऊर्जा विस्तार के मामले में पाँचवें स्थान पर आ गया है और यह 709.68 GW की वैश्विक संचयी क्षमता में लगभग 6.5% का योगदान देता है।

रूफ-टॉप सोलर इंस्टालेशन में भारत क्यों पिछड़ रहा है?

  • विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा का लाभ उठाने में विफल:
    • बड़े पैमाने पर सोलर फोटोवोल्टिक (Solar PV) पर ध्यान केंद्रित करने के कारण भारत विकेंद्रीकृत अक्षय ऊर्जा (DRE) विकल्पों के कई लाभों का फायदा उठाने में विफल रहा है, जिसमें ट्रांसमिशन और वितरण (T&D) घाटे में कमी शामिल है।
  • सीमित वित्तपोषण:
    • सोलर फोटोवोल्टिक सिस्टम प्रौद्योगिकी के प्राथमिक लाभों में से एक है, इसे ऊर्जा खपत के रूप में स्थापित करके बड़े पूंजी-गहन संचरण बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता को कम किया जा सकता है।
      • भारत को बड़े और छोटे दोनों पैमाने पर सोलर फोटोवोल्टिक सिस्टम को स्थापित करने के साथ-साथ विशेष रूप से RTS प्रयासों का विस्तार करने की ज़रूरत है।
    • हालाँकि आवासीय उपभोक्ताओं और छोटे एवं मध्यम उद्यम (SMEsजो RTS स्थापित करना चाहते हैं, के लिये वित्तपोषण सीमित है।
  • विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMS) की उदासीन प्रतिक्रियाएँ:
    • नेट मीटरिंग आरटीएस को समर्थन देने के लिये बिजली वितरण कंपनियों (DISCOMS) की रुचि में कमी देखने को मिल रही है।

भारत की सौर ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के समक्ष चुनौतियाँ:

  • स्थापित सौर क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद देश के बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा का योगदान उसी गति से नहीं बढ़ा है
  • उदाहरण के लिये वर्ष 2019-20 में सौर ऊर्जा ने भारत की कुल 1390 BU बिजली उत्पादन में केवल 3.6% (50 बिलियन यूनिट) का योगदान दिया।
  • उपयोगिता-पैमाने पर सोलर PV क्षेत्र को भूमि लागत, उच्च T&D नुकसान और अन्य अक्षमताओं तथा ग्रिड एकीकरण जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • स्थानीय समुदायों और जैवविविधता संरक्षण मानदंडों के बीच भी टकराव की स्थिति रही है। इसके अलावा भले ही भारत ने यूटिलिटी-स्केल सेगमेंट में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये रिकॉर्ड कम टैरिफ हासिल किया है लेकिन इससे अंतिम उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली सुलभ नहीं हुई है।
  • अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) का अनुमान है कि सोलर PV अपशिष्ट से पुनर्प्राप्त करने योग्य सामग्रियों का वैश्विक मूल्य 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकता है।
  • वर्तमान में केवल यूरोपीय संघ ने सोलर PV अपशिष्ट के प्रबंधन में निर्णायक कदम उठाए हैं
  • भारत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) के आसपास उपयुक्त दिशा-निर्देश विकसित करने पर विचार कर सकता है, जिसका अर्थ है कि सौर पीवी उत्पादों के समग्र जीवन चक्र के लिये निर्माताओं को उत्तरदायी बनाया जाएगा और अपशिष्ट पुनर्चक्रण हेतु मानक विकसित किये जाएंगे।
    • यह घरेलू निर्माताओं को प्रतिस्पर्द्धा में बढ़त दे सकता है और अपशिष्ट प्रबंधन एवं आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।

भारत की घरेलू सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता की मौजूदा स्थिति:

  • सौर क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण क्षमता देश में सौर ऊर्जा की वर्तमान संभावित मांग के अनुरूप नहीं है।
    • भारत में सौर सेल उत्पादन के लिये 3 गीगावाट क्षमता और सौर पैनल उत्पादन क्षमता के लिये 8 गीगावाट क्षमता थी। इसके अलावा सौर मूल्य शृंखला में एकीकरण का अभाव है, क्योंकि भारत में सौर वेफर्स और पॉलीसिलिकॉन के निर्माण की कोई क्षमता नहीं है।
    • वर्ष 2021-22 में भारत ने अकेले चीन से लगभग 76.62 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सौर सेल और मॉड्यूल आयात किये, जो उस वर्ष भारत के कुल आयात का 78.6% था।
    • कम विनिर्माण क्षमता और चीन से सस्ते आयात ने भारतीय उत्पादों को घरेलू बाज़ार में गैर-प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है।
  • हालाँकि यदि भारत सौर प्रणालियों के लिये एक ‘सर्कुलर अर्थव्यवस्था मॉडल’ को अपनाता है, तो इस स्थिति में आसानी से सुधार किया जा सकता है।
    • इससे सोलर पीवी वेस्ट को सोलर पीवी सप्लाई चेन में रिसाइकिल और दोबारा इस्तेमाल किया जा सकेगा। अनुमान के अनुसार, वर्ष 2030 के अंत तक भारत लगभग 34,600 मीट्रिक टन सौर पीवी कचरे का उत्पादन करेगा।

आगे की राह

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