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वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने सुदृढ़ विकास में योगदान दिया है? - श्रीनारद मीडिया

वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने सुदृढ़ विकास में योगदान दिया है?

वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने सुदृढ़ विकास में योगदान दिया है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण से नवंबर 2023 का माह अब तक व्यापक रूप से उत्साहजनक रहा है और उम्मीद है कि जब भारत के लिये दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के आँकड़े जारी किये जाएँगे तो वे सकारात्मक रहेंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था ने वित्तीय वर्ष 2023-24 (Q2 FY24) की दूसरी तिमाही में अपनी विकास गति को बनाए रखा है और मज़बूत फैक्ट्री विस्तार एवं उच्च खपत के साथ इसके लगभग 7% बढ़ने का अनुमान है।

वित्तीय वर्ष 2024 में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति कैसी रही?

  • वित्त वर्ष 2023-2024 की पहली तिमाही में भारत की GDP ने 7.8% वृद्धि दर्ज की।
  • ई-वे बिल, वस्तु एवं सेवा कर (GST) संग्रह, क्रेडिट वृद्धि, बिजली की खपत और अन्य गतिशीलता संकेतक जैसे कारकों के कारण दूसरी तिमाही के लिये विकास अनुमान 7% का आँकड़ा छू सकता है, जो स्वस्थ निजी खपत एवं फैक्ट्री आउटपुट, मज़बूत सेवा गतिविधि और सरकारी पूंजीगत व्यय के कुल आवंटन व्यय या फ्रंट-लोडिंग (जिसका आधिकारिक अनुमान नवंबर 2023 के अंत तक जारी किया जाएगा) का संकेत देता है।
    • केंद्र सरकार ने वर्ष की पहली छमाही में FY24 के बजटीय पूंजीगत व्यय का लगभग 49% खर्च कर लिया है जो वर्ष 2022 में इसी अवधि में किये गए व्यय से 43% अधिक है।

वे कौन-से कारक हैं जिन्होंने सुदृढ़ विकास में योगदान दिया है?

  • भू-राजनीतिक कारक:
    • वैश्विक भू-राजनीति में, पश्चिम एशिया से सकारात्मक संकेत सामने आए हैं, जहाँ बताया जा रहा है कि इज़राइल और हमास एक संक्षिप्त युद्धविराम के लिये सहमत हो गए हैं।
    • एक और सकारात्मक घटनाक्रम यह रहा कि अमेरिका और चीन के राष्ट्रपति के बीच एक शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ जहाँ पश्चिम एशिया की स्थिति, ईरान, ताइवान, जलवायु परिवर्तन और सैन्य संचार सहित विभिन्न वैश्विक एवं द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गई।
      • यद्यपि कोई संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं किया गया या किसी औपचारिक सहयोग की घोषणा नहीं की गई, लेकिन इस शिखर सम्मेलन ने एक सकारात्मक एवं महत्त्वपूर्ण संकेत दिया कि परस्पर सहयोग आशंकित विश्व को लाभ पहुँचा सकता है।
  • आर्थिक कारक:
    • बाह्य कारक:
      • मुद्रास्फीति में सुधार: विकसित विश्व में मुद्रास्फीति के हालिया आँकड़ों से एक सकारात्मक संकेत प्रकट हुआ है।
        • अमेरिका की उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) आधारित मुद्रास्फीति अक्टूबर में 3.2% थी, जो सितंबर में 3.7% रही थी।
        • इसके साथ ही, यूरोपीय संघ (EU) में भी मुद्रास्फीति पिछले माह के 4.3% से तेज़ी से गिरकर 2.9% हो गई।
      • बॉण्ड यील्ड में सुधार: वैश्विक स्तर पर बॉण्ड यील्ड (Bond Yield) में सुधार आया और इक्विटी (equities) में बढ़ोतरी हुई है क्योंकि इन आँकड़ों ने उम्मीद जगाई है कि मुद्रास्फीति के विरुद्ध संघर्ष संभवतः अपने अंजाम तक पहुँच गया है।
    • आंतरिक कारक:
      • मुद्रास्फीति में गिरावट: खुदरा मुद्रास्फीति (Retail inflation) में 10 आधार अंक का सुधार हुआ और यह 4.9% हो गई, जो चार माह में न्यूनतम है।
        • कोर मुद्रास्फीति (Core inflation) घटकर 4.2% पर आ गई।
        • थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) में वर्ष 2022 में इसी अवधि की तुलना में 0.52% की गिरावट आई, जो लगातार सातवें माह गिरावट को प्रकट करता है और इससे उत्पादकों को नरम इनपुट कीमतों के माध्यम से राहत मिली।
      • कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता: वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में नरमी जारी है और यह एक मंदी बाज़ार या बेयर मार्केट (bear market) की ओर बढ़ती नज़र आ रही है। वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (West Texas Intermediate) सितंबर के उच्चतम स्तर से लगभग 20% नीचे आ गया है।
      • त्योहार: त्योहारी मौसम भी सकारात्मक स्थिति में समाप्त हुआ। कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) के अनुसार, इस त्योहारी मौसम के दौरान भारत के खुदरा बाज़ारों में 3.75 लाख करोड़ रुपए का रिकॉर्ड कारोबार हुआ।
        • इसमें अन्य त्योहारों के दौरान संपन्न 50,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त व्यापार को भी जोड़ें तो संकेत उत्साहवर्धक हैं।

वे कौन-से कारक हैं जिन पर भारत को नज़र रखनी चाहिये?

  • तेल की कीमतें: तेल की कीमतों पर सावधानीपूर्वक नज़र रखने की ज़रूरत है जहाँ पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC) और उसके सहयोगी (OPEC+) के नेता इस माह के अंत में उत्पादन लक्ष्य की समीक्षा करने वाले हैं। समूह कीमतों में वृद्धि का बचाव करना चाहेगा और वे अपनी मूल्य निर्धारण शक्ति का लाभ उठाकर तथा यह सुनिश्चित कर ऐसा कर सकते हैं कि आपूर्ति में कटौती के विस्तार के माध्यम से आपूर्ति घाटे को बनाए रखा जाए। निम्नलिखित उपाय भारत को OPEC+ पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद कर सकते हैं:
    • तेल आयात के स्रोतों में विविधता लाना: भारत ने अपने कच्चे तेल आपूर्तिकर्ताओं की संख्या वर्ष 2006-07 में 27 देशों से बढ़ाकर वर्ष 2021-22 में 39 कर ली जहाँ कोलंबिया, लीबिया, गैबॉन, इक्वेटोरियल गिनी आदि नए आपूर्तिकर्ताओं से संलग्न हुआ तो अमेरिका और रूस जैसे देशों के साथ अपने संबंध मज़बूत बनाए।
    • जैव-ईंधन अर्थव्यवस्था को गति देना: भारत पेट्रोल में इथेनॉल ब्लेंडिंग को वर्ष 2013-14 में 1.53% से बढ़ाकर वर्ष 2025-26 तक 20% के स्तर तक लाकर अपनी जैव-ईंधन अर्थव्यवस्था (Bio-fuel Economy) को विकसित कर रहा है।
      • सरकार ने प्रति वर्ष कम से कम 5 MMT हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित करने के लिये राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission) भी शुरू किया है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत की ओर आगे बढ़ना: भारत अपने तेल की खपत और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये प्राकृतिक गैस एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दे रहा है।
      • सरकार ने वर्ष 2030 तक ऊर्जा मिश्रण में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी 6% से बढ़ाकर 15% करने का लक्ष्य रखा है।
      • सरकार ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से 500 गीगावॉट स्थापित क्षमता हासिल करने के लक्ष्य की भी घोषणा की है।
  • बाह्य माँग: बाह्य मांग माहौल अभी भी बहुत कमज़ोर बना हुआ है और विश्व व्यापार वृद्धि ऐतिहासिक रूप से निचले स्तर पर बनी हुई है, जिसमें सुधार के बहुत कम संकेत हैं। वस्तुतः इसके वर्ष 2022 में 5% से घटकर 2023 में 1% होने का अनुमान है।
    • घरेलू माँग को बढ़ावा देना: सरकार ने निवेश माहौल को बढ़ावा देने के लिये कई उपायों की घोषणा की है, जैसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मानदंडों को आसान बनाना, कॉर्पोरेट कर की दर को कम करना और विभिन्न क्षेत्रों के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू करना।
      • ये पहलें वृहत घरेलू एवं विदेशी निवेश आकर्षित करने और लोगों के लिये अधिक नौकरियाँ एवं आय के अवसर पैदा करने में मदद कर सकती हैं।
    • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: भारत बेहतर गुणवत्ता, बढ़ी हुई उत्पादकता, विविधीकृत निर्यात बाज़ार और सुव्यवस्थित व्यापार सुविधा के माध्यम से निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा दे सकता है। सरकार ने कारोबार सुगमता (ease of doing business) में सुधार लाने, GST व्यवस्था को सरल बनाने, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति को लागू करने और श्रम कानूनों में सुधार के लिये कदम उठाए हैं।
      • ये उपाय निर्यातकों के लिये नियामक एवं लॉजिस्टिक बाधाओं को कम करने और उन्हें वैश्विक बाज़ार में अधिक कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी बनाने में मदद कर सकते हैं।
    • क्षेत्रीय और द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाना: भारत अपने साझेदारों और संभावित बाज़ारों के साथ क्षेत्रीय एवं द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को आगे बढ़ा सकता है, जो उसकी बाज़ार पहुँच का विस्तार करने, टैरिफ एवं नॉन-टैरिफ बाधाओं को कम करने और व्यापार एवं निवेश प्रवाह को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
      • सरकार ने व्यापक एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी समझौते (Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership- CPTPP) में शामिल होने में अपनी रुचि व्यक्त की है, जो 11 देशों के बीच एक वृहत क्षेत्रीय व्यापार समझौता है।
      • भारत यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) पर भी बातचीत कर रहा है।
      • ये समझौते भारत को अपने व्यापार संबंधों में विविधता लाने और क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं से लाभ उठाने में मदद कर सकते हैं।
  • मौद्रिक और राजकोषीय नीतियाँ: भारत को स्थानीय एवं वैश्विक, दोनों प्रभावों को ध्यान में रखते हुए अपनी मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों को संरेखित करना चाहिये। विशेषज्ञ अमेरिका और अन्य जगहों के विपरीत, इन नीतियों के प्रभावी समन्वय के लिये भारत की प्रशंसा करते हैं।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और वित्त मंत्रालय ने वैश्विक जोखिमों और जारी मुद्रास्फीति संबंधी चिंताओं का कुशलता से प्रबंधन किया है।
    • सरकार अपने 5.9% जीडीपी राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है और उसे इस लक्ष्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर बल देना चाहिये।

निष्कर्ष

भारत का FY23-24 की दूसरी तिमाही का व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण आशाजनक है, जहाँ सकल घरेलू उत्पाद में 7% वृद्धि का अनुमान है। भू-राजनीतिक स्थिरता, अनुकूल आर्थिक स्थितियाँ और स्थिर तेल कीमतों के साथ नियंत्रित मुद्रास्फीति जैसे कारकों ने इसमें योगदान किया है। तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव जैसी चुनौतियों के लिये स्रोतों में विविधता लाने और हरित पहल को प्राथमिकता देने जैसे रणनीतिक उपायों की आवश्यकता है। घरेलू स्तर पर मांग को बनाए रखना और निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना प्रमुख फोकस है। भारत मौद्रिक और राजकोषीय उपायों सहित प्रभावी नीति समन्वय के माध्यम से वैश्विक आर्थिक स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता रखता है।

 

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