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महिला आरक्षण विधेयक, 2023 में परिसीमन संबंधी क्या चिंताएँ व्यक्त की गई है? - श्रीनारद मीडिया

महिला आरक्षण विधेयक, 2023 में परिसीमन संबंधी क्या चिंताएँ व्यक्त की गई है?

महिला आरक्षण विधेयक, 2023 में परिसीमन संबंधी क्या चिंताएँ व्यक्त की गई है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय संसद में महिला आरक्षण विधेयक, 2023 का पारित होना देश के राजनीतिक परिदृश्य में लैंगिक समानता की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी गई है। 

  • हालाँकि इस ऐतिहासिक कानून का भविष्य वर्तमान में परिसीमन के मुद्दे के साथ जुड़ा हुआ है, जिसकी विपक्षी दलों ने आलोचना की है।

परिसीमन:

 

  • परिचय:
    • परिसीमन प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में मतदाताओं की समान संख्या सुनिश्चित करने के लिये संसदीय या विधानसभा सीट की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की प्रक्रिया है।
    • यह प्रत्येक जनगणना के बाद कुछ वर्षों में किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि देश भर में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र का लोकसभा और राज्य विधानसभा दोनों में एक प्रतिनिधि हो।
    • परिसीमन जनसंख्या वृद्धि को राज्य में निर्वाचित विधायकों की संख्या से जोड़ता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि किसी भी प्रतिनिधि का प्रतिनिधित्व अधिक या कम न हो।
  • परिसीमन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
    • अनुच्छेद 82:
      • संसद प्रत्येक जनगणना के बाद एक परिसीमन अधिनियम बनाती है। यह अधिनियम संसद को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में सीटों के आवंटन को फिर से समायोजित करने की अनुमति देता है।
    • अनुच्छेद 170:
      • यह लेख राज्य विधानसभाओं की संरचना से संबंधित है, जिसमें न्यूनतम 60 सदस्य और अधिकतम 500 सदस्य निर्दिष्ट हैं।
      • जनसंख्या, जैसा कि सबसे हालिया जनगणना द्वारा निर्धारित की गई है, परिसीमन और सीट वितरण का आधार बनती है।
  • परिसीमन आयोग:
    • परिसीमन आयोग अधिनियम वर्ष 1952 में बनाया गया था।
      • एक बार अधिनियम लागू हो जाने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।
    • वर्ष 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार वर्ष 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
    • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है तथा यह भारत निर्वाचन आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
    • आयोग का मुख्य कार्य हाल की जनगणना के आधार पर सीमाओं को फिर से तैयार करना है।
    • लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की वर्तमान सीमाएँ वर्ष 2002 के परिसीमन आयोग द्वारा 2001 की जनगणना के आधार पर तैयार की गई थीं।
      • 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 ने वर्ष 1971 के परिसीमन के आधार पर लोकसभा में सीटों के आवंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन पर रोक लगा दी।
      • वर्ष 2001 में संविधान के 84वें संशोधन के साथ इस प्रतिबंध को वर्ष 2026 तक के लिये बढ़ा दिया गया।

महिला आरक्षण विधेयक, 2023 का परिसीमन से संबंध:

  • भारत सरकार ने कहा है कि महिला आरक्षण विधेयक, 2023 जनगणना के आँकड़ों के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही लागू होगा, इसमें कोविड-19 महामारी और कई अन्य कारणों से देरी हुई है, जिसे अगले आदेश वर्ष 2024-25 तक बढ़ा दिया गया है।
  • सरकार ने तर्क दिया है कि आरक्षण को परिसीमन से जोड़ने से महिलाओं हेतु सीटों का पारदर्शी तथा निष्पक्ष आवंटन सुनिश्चित होगा और पुरुषों एवं महिलाओं दोनों के लिये सीटों की कुल संख्या में भी वृद्धि होगी, क्योंकि परिसीमन अभ्यास से लोकसभा व राज्य विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है।

परिसीमन को लेकर चिंताएँ:

 

  • संभावित कम प्रतिनिधित्व: 
    • प्राथमिक चिंताओं में से एक यह है कि यदि जनसंख्या मापदंडों के आधार पर परिसीमन किया जाता है, तो तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्य और अन्य जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को सफलतापूर्वक लागू किया है, उन्हें संसद में कम प्रतिनिधित्व का सामना करना पड़ सकता है।
      • यह डर इस संभावना से उत्पन्न होता है कि अधिक जनसंख्या वृद्धि वाले उत्तरी राज्य, जैसे कि बिहार और उत्तर प्रदेश, दक्षिण की कीमत पर संसद में अधिक सीटें हासिल कर सकते हैं।
    • देश की आबादी का केवल 18% होने के बावजूद दक्षिणी राज्य देश की GDP में 35% का योगदान करते हैं।
      • नेताओं का तर्क है कि उनकी आर्थिक ताकत राजनीतिक प्रतिनिधित्व में प्रतिबिंबित होनी चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनके हितों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व हो।
    • दक्षिण के राजनीतिक नेताओं को चिंता है कि लोकसभा सीटों की संख्या उत्तरी राज्यों की ओर बढ़ने से राष्ट्रीय स्तर पर दक्षिण की राजनीतिक आवाज़ कम मुखर हो सकती है।
  • महिला आरक्षण विधेयक से जुड़ाव:
    • महिला आरक्षण विधेयक के क्रियान्वयन को परिसीमन से जोड़ने का सरकार का फैसला विपक्षी दलों के लिये बड़ी चिंता का विषय है।
    • विपक्ष का तर्क है कि दोनों मुद्दों को जोड़ने का कोई स्पष्ट कारण या आवश्यकता नहीं है, क्योंकि महिला आरक्षण विधेयक की पिछली चर्चाओं में ऐसा कोई मुद्दा नहीं था।
      • उनका सुझाव है कि सरकार महिलाओं के आरक्षण को जनगणना और परिसीमन से अलग करने का विकल्प चुन सकती थी। एक सरल विधेयक सभी दलों को लोकसभा की वर्तमान संरचना के अंदर महिलाओं के लिये 33% आरक्षण सुनिश्चित करने की अनुमति दे सकता था।

 

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