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क्या है जैव बायो इकोनामी? भारत में इसका कैसे हो रहा विकास - श्रीनारद मीडिया

क्या है जैव बायो इकोनामी? भारत में इसका कैसे हो रहा विकास

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत अपनी अर्थव्यवस्था को सशक्त करने के लिए नई राहें भी बना रहा है। ऐसी ही एक राह है, जैव अर्थव्यवस्था यानी बायो इकोनामी। यह दोहरे लाभ वाली व्यवस्था है जिससे आर्थिकी मजबूत होने के साथ जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे से निपटने में भी सहायता मिलेगी। देश में बीते कुछ वर्ष में बायो इकोनामी ने गति पकड़ी है। इसका उल्लेख केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी जितेंद्र सिंह ने गुरुवार को संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए किया। उन्होंने यह भी बताया कि वर्ष 2030 तक भारत का जैव अर्थव्यवस्था को 300 अरब डालर पहुंचाने का लक्ष्य है। आइए समझें क्या है जैव बायो इकोनामी? भारत में कैसे इसका विकास हो रहा है और तय लक्ष्य की प्राप्ति कैसे करेंगे हम?

इस सदी के आरंभ में लोकप्रिय हुआ बायो इकोनामी शब्द: बायोइकोनामी शब्द इस सदी के शुरुआती दशक के मध्य से लोकप्रिय हुआ। यूरोपीय संघ और आर्थिक सहयोग व विकास संगठन द्वारा नीतिगत एजेंडा और ढांचे के रूप में इसे अपनाया गया ताकि नए उत्पादों, बाजारों और उपयोगों को विकसित करने के लिए बायोटेक को बढ़ावा दिया जा सके।

पांच बड़े स्तंभों पर आधारित : भारत में बायो टेक्नोलाजी उद्योग पांच बड़े स्तंभों पर आधारित है। जिसमें बायो एनर्जी, बायो एग्री, बायो फार्मा, बायो इंडस्टियल और सर्विस सेवाएं हैं। इसमें बायो आइटी और शोध सेवाएं भी शामिल हैं।

यह होती है बायो इकोनामी : बायो इकोनामी का संबंध अर्थव्यवस्था से जु़ड़े सभी क्षेत्रों में सूचना, उत्पादों, प्रक्रियाओं और सेवाओं को प्रदान करने के लिए संबंधित ज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी सहित जैविक संसाधनों का उत्पादन, उपयोग और संरक्षण से है।

हर दिन खुल रहे औसतन तीन बायो स्टार्टअप : वर्ष 2021 में भारत में हर दिन औसतन कम से कम तीन स्टार्टअप के हिसाब से कुल 1,128 बायोटेक स्टार्टअप शुरू हुए। इसमें निवेश की गई राशि लगभग एक अरब डालर पार कर गई है। देश में बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या पिछले 10 वर्ष में 50 से बढ़कर 5,300 से अधिक हो गई है। वर्ष 2025 तक यह दोगुना बढ़कर 10,000 तक पहुंचने की उम्मीद है।

सामाजिक चुनौतियों का समाधान भी : बायो इकोनामी को सामाजिक चुनौतियों के समाधान के तौर पर भी देखा जा रहा है। जैसे- बायोमास या नवीकरणीय संसाधनों का ऊर्जा उत्पादन में उपयोग किया जा रहा है। आज बायो फर्टिलाइजर, हरित रसायनों और सामग्री का उपयोग कृषि में किया जा रहा है। इन सारी चीजों का कार्बन उत्सर्जन, खाद्यान्न एवं पोषण, स्वास्थ्य, ऊर्जा निर्भरता एवं पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

 

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