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वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 क्या है? - श्रीनारद मीडिया

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 क्या है?

वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सरकार ने लोकसभा में वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 पेश किये जाने के साथ ही वन (संरक्षण) अधिनियम, (FC) 1980 में कुछ परिवर्तन किये।

  • इन परिवर्तनों का उद्देश्य वृक्षारोपण कर वन कार्बन स्टॉक का निर्माण करना है। यह विधेयक प्रतिपूरक वनीकरण के लिये भूमि उपलब्ध कराता है।

वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में प्रस्तावित परिवर्तन और पृष्ठभूमि:  

  • पृष्ठभूमि :
    • स्वतंत्रता के पश्चात् वन भूमि के विशाल क्षेत्रों को आरक्षित और संरक्षित वनों के रूप में नामित किया गया था।
      • हालाँकि कई वन क्षेत्रों को छोड़कर बिना किसी स्थायी वन वाले क्षेत्रों को ‘वन’ भूमि में शामिल किया गया था।
    • वर्ष 1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में पेड़ों की कटाई पर रोक लगाते हुए यह फैसला सुनाया कि वन संरक्षण अधिनियम उन सभी भूमियों पर लागू होगा जो या तो ‘वन’ के रूप में नामित हैं या वनों से मिलते-जुलते हैं।
    • जून 2022 में सरकार ने वन संरक्षण नियमों में संशोधन किया ताकि डेवलपर्स को “जिस भूमि पर (FC) अधिनियम लागू नहीं है” वृक्षारोपण करने की अनुमति देने के लिये और प्रतिपूरक वनीकरण की बाद की आवश्यकताओं के विरुद्ध ऐसे भूखंडों की अदला-बदली करने के लिये एक तंत्र बनाया जा सके।
  • प्रस्तावित परिवर्तन:
    • अधिनियम की प्रस्तावना:
      • यह वनों के संरक्षण, उनकी जैवविविधता और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये देश की समृद्ध परंपरा को इसके दायरे में शामिल करता है।
    • वनीय गतिविधियों पर प्रतिबंध:
      • यह अधिनियम गैर-वन उद्देश्यों के लिये वनों के अनारक्षण या वन भूमि के उपयोग को प्रतिबंधित करता है। केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति से ऐसे प्रतिबंध हटाए जा सकते हैं। गैर-वानिकी उद्देश्यों में बागवानी फसलों की खेती या पुनर्वनीकरण के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य हेतु भूमि का उपयोग शामिल है।
      • विधेयक इस सूची में और अधिक गतिविधियों को शामिल करता है जैसे- (i) वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित क्षेत्रों के अलावा अन्य वन क्षेत्रों में सरकार या किसी प्राधिकरण के स्वामित्त्व वाले चिड़ियाघर तथा सफारी (ii) पर्यावरण-पर्यटन सुविधाएँ (iii) वन संवर्द्धन (वन विकास को बढ़ाना) तथा (iv) केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट कोई अन्य उद्देश्य
    • अधिनियम के दायरे में भूमि:
      • विधेयक में प्रावधान है कि दो प्रकार की भूमि अधिनियम के दायरे में होगी: (i) भारतीय वन अधिनियम, 1927 या किसी अन्य कानून के तहत वन के रूप में घोषित/अधिसूचित भूमि या (ii) पहली श्रेणी में कवर नहीं की गई भूमि लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में 25 अक्तूबर, 1980 को या उसके बाद वन के रूप में अधिसूचित भूमि।  
      • इसके अलावा अधिनियम 12 दिसंबर, 1996 को या उससे पहले किसी राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश के अधिकृत प्राधिकरण द्वारा ‘वन उपयोग से गैर-वन उपयोग में परिवर्तित भूमि’ पर लागू नहीं होगा।
    • निर्देश जारी करने की शक्ति:
      • विधेयक में कहा गया है कि केंद्र सरकार केंद्र, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश द्वारा मान्यता प्राप्त किसी अन्य प्राधिकरण/संगठन को अधिनियम के कार्यान्वयन हेतु निर्देश जारी कर सकती है।
    • छूट:
      • यह अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं, LAC और LoC के 100 किलोमीटर के भीतर के “राष्ट्रीय महत्त्व और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित” सभी सामरिक रैखिक परियोजनाओं को छूट देने का प्रयास करता है।
      • प्रस्तावित संशोधन में छूट के तहत 10 हेक्टेयर तक “सुरक्षा से संबंधित बुनियादी ढाँचे” के लिये तथा अतिरिक्त गतिविधियाँ जैसे- वन संवर्द्धन परिचालन, चिड़ियाघर एवं वन्यजीव सफारी का निर्माण, पर्यावरण-पर्यटन सुविधाएँ तथा केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • संबंधित मुद्दे: 
    • संशोधनों के साथ वे सभी वन भूमि जो आरक्षित क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती हैं, लेकिन वर्ष 1980 से पूर्व सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हैं, अधिनियम के दायरे में नहीं आएंगी।
    • यह सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1996 के निर्णय से अलग है, जो यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी रिकॉर्ड में उल्लिखित प्रत्येक वन को वनों की कटाई के खिलाफ कानूनी सुरक्षा प्राप्त हो।
    • आलोचकों का तर्क है कि इसमें ‘प्रस्तावित’, ‘पारिस्थितिकी पर्यटन सुविधाएँ’ और ‘कोई अन्य उद्देश्य’ जैसे शब्दों का वन भूमि में वनों एवं पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाने वाली गतिविधियों हेतु दुरुपयोग किया जा सकता है।
      • इनका यह भी तर्क है कि वृक्षारोपण, भारतीय वनों के लिये एक महत्त्वपूर्ण खतरा है क्योंकि इससे प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होने के साथ मृदा की गुणवत्ता प्रभावित होती है जिससे स्थानीय जैवविविधता को खतरा उत्पन्न होता है।
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