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वैश्विक आर्थिक विकास में भारत की स्थिति क्या है? - श्रीनारद मीडिया

वैश्विक आर्थिक विकास में भारत की स्थिति क्या है?

वैश्विक आर्थिक विकास में भारत की स्थिति क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ( International Monetary Fund- IMF) के अनुसार, वैश्विक आर्थिक विकास में भारत के योगदान में 2% की वृद्धि होने की उम्मीद है क्योंकि भारत की तेज़ आर्थिक वृद्धि के कारण अगले पाँच वर्षों में यह योगदान 16% से बढ़कर 18% हो जाएगा।

  • मानसून
  • जबकि मानसून के मौसम के दौरान कुल वर्षा उम्मीद से 6% कम रही (अगस्त में 36% कम वर्षा के कारण), लेकिन इनका स्थानिक वितरण व्यापक रूप से समान रहा। 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 29 में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई
  • SBI मानसून प्रभाव सूचकांक, जो स्थानिक वितरण पर विचार करता है, का मूल्य 89.5 रहा, जो वर्ष 2022 में पूर्ण मौसम सूचकांक मूल्य 60.2 से व्यापक रूप से बेहतर है।
  • पूंजीगत व्यय पर निरंतर बल:
  • चालू वर्ष (2023) के पहले पाँच माह के दौरान, बजटीय लक्ष्य के प्रतिशत के रूप में राज्यों का पूंजीगत व्यय 25% रहा, जबकि केंद्र के लिये यह 37% था, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है और नवीनीकृत पूंजी सृजन को दर्शाता है
  • नई कंपनियों का पंजीकरण
  • देश में नई कंपनियों का सुदृढ़ पंजीकरण विकास के मज़बूत इरादों को दर्शाता है। वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में लगभग 93,000 कंपनियाँ पंजीकृत हुईं, जबकि इससे पूर्व पाँच वर्ष तक यह संख्या केवल 59,000 रही थी।
  • साथ ही यह भी दिलचस्प है कि नई कंपनियों का औसत दैनिक पंजीकरण वर्ष 2018-19 में 395 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 622 (58% की वृद्धि के साथ) हो गया।
  • ऋण वृद्धि:
  • वर्ष 2022 की शुरुआत से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) की ऋण वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) बढ़ रही है, सितंबर माह तक कुल जमा में 13.2% और ऋण में 20% की वृद्धि हुई। सरकार को उम्मीद है कि आने वाले महीनों में त्योहारों के दौरान ऋण मांग मज़बूत बनी रहेगी।
  • अर्थव्यवस्था का औपचारिकीकरण:
  • ऋण में हुई इस वृद्धि का श्रेय पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के औपचारिकीकरण को दिया जाता है। बिना किसी पूर्व क्रेडिट इतिहास वाले लोग तेज़ी से बैंकिंग प्रणाली के साथ संलग्न हो रहे हैं।
  • पिछले नौ वर्षों में जोड़े गए नए क्रेडिट खातों में से लगभग 40% ऐसे व्यक्तियों के हैं जिनका कोई पूर्व क्रेडिट इतिहास नहीं था। यह समूह वृद्धिशील ऋण वृद्धि में कम से कम 10% का योगदान देते है।

अनुमानित वृद्धि हासिल करने में भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

  • मांग में कमी:
    • कम आय वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी और कोविड-19 महामारी के प्रभाव जैसे विभिन्न कारकों के कारण भारत में वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग या तो स्थिर रही है या कम हो रही है।
    • इससे अर्थव्यवस्था में उपभोग और निवेश का स्तर प्रभावित हुआ है तथा सरकार के लिये कर संप्राप्ति कम हो गई है।
  • बेरोज़गारी:
    • तीव्र आर्थिक विकास के बावज़ूद, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोज़गारी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया है, क्योंकि कई व्यवसाय बंद हो गए या उन्होंने अपना परिचालन कम कर दिया है, जिससे नौकरियाँ कम हुई हैं।
      • वर्ष 2021-22 में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में बेरोज़गारी दर 4.1% थी।
  • अव्यवस्थित बुनियादी ढाँचा:
    • भारत में सड़क, रेलवे, बंदरगाह, विद्युत, जल और स्वच्छता जैसे व्यवस्थित बुनियादी ढाँचे का अभाव है, जो इसके आर्थिक विकास एवं प्रतिस्पर्धात्मकता में बाधा डालता है।
    • विश्व बैंक के अनुसार भारत का बुनियादी ढाँचा अंतर लगभग 1.5 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है। लचीला बुनियादी ढाँचा लोगों के विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है
  • भुगतान संतुलन का अव्यवस्थित होना:
    • भारत लगातार चालू खाता घाटे से जूझ रहा है, जिसका अर्थ है कि इसका आयात इसके निर्यात से अधिक है। यह विदेशी वस्तुओं एवं सेवाओं, विशेषकर तेल और सोने पर इसकी निर्भरता तथा निर्यात की न्यून प्रतिस्पर्द्धात्मकता को दर्शाता है।
    • वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 के दौरान भारत के निर्यात एवं आयात में क्रमशः 6.59% और 3.63% की कमी आई। इस गति को देखते हुए वर्ष 2030 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात लक्ष्य तक पहुँचना मुश्किल होगा।
  • भू-राजनीतिक तनाव: सीमा विवादों सहित भारत के भू-राजनीतिक संबंध, क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं और संभावित रूप से आर्थिक संभावनाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
    • भारत लगातार चल रहे युद्धों और संघर्षों सहित वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के प्रति संवेदनशील है, जिससे कच्चे तेल की मुद्रास्फीति तथा आपूर्ति में कमी हो सकती है।
      • व्यापार असंतुलन: भारत को अपने कुछ प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ व्यापार असंतुलन का सामना करना पड़ता है, जो इसके आर्थिक विकास और स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह

  • निजी निवेश को बढ़ावा देना: निजी निवेश आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है क्योंकि यह उत्पादकता, नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है। सरकार ने व्यापार सुगमता को बेहतर बनाने, कॉर्पोरेट टैक्स को कम करने, क्रेडिट गारंटी प्रदान करने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये कई पहलें शुरू की हैं।
    • हालाँकि भारत में व्यापार करने की लागत एवं जोखिम को कम करने के लिये भूमि, श्रम तथा  लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में और अधिक सुधार करने की आवश्यकता है।
  • बढ़ती प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत को अपने निर्यात में विविधता लाकर, अपने बुनियादी ढाँचे में सुधार करके, नवाचार और डिजिटलीकरण को बढ़ावा देकर तथा क्षेत्रीय एवं वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण करके वैश्विक बाज़ार में अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने की ज़रूरत है।
    • सरकार ने विनिर्माण को समर्थन देने के लिये कई योजनाओं की घोषणा की है, जैसे उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI), चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP) और मेक इन इंडिया।
    • घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों व्यवसायों के लिये निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा की गारंटी हेतु, व्यापार उदारीकरण तथा नियामक सरलीकरण को इन कार्यक्रमों के साथ मिलकर लागू किया जाना चाहिये।
  • हरित विकास को बढ़ावा देना: भारत ने अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों के हिस्से के रूप में अपनी कार्बन तीव्रता को कम करने और अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध किया है। सरकार ने हरित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये हरित बॉण्ड भी पेश किया है।
    • हालाँकि भारत के विकास एवं कल्याण को खतरे में डालने वाले पर्यावरणीय मुद्दों, जैसे वायु प्रदूषण, जल की कमी, अपशिष्ट प्रबंधन तथा जैव-विविधता ह्रास की चुनौतियों से निपटने के लिये और अधिक प्रयत्नशील होने की आवश्यकता है।
  • अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखें: भारत एक स्थिर और निम्न मुद्रास्फीति दर बनाए रख सकता है, जिससे निवेश तथा विश्वास को प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अतिरिक्त, भारत उत्पादक क्षेत्रों, विशेषकर छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों के लिए पर्याप्त ऋण उपलब्धता व तरलता
  • की गारंटी दे सकता है। बचत एवं निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये भारत अपने वित्तीय संस्थानों और बाज़ारों का भी विस्तार कर सकता है।
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