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नए आईटी नियम एवं सोशल मीडिया क्या है? - श्रीनारद मीडिया

नए आईटी नियम एवं सोशल मीडिया क्या है?

नए आईटी नियम एवं सोशल मीडिया क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थानों के लिये दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) [Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code)] नियम या ‘आईटी नियम 2021’ में एक नया संशोधन पेश किया, जो इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) को झूठे या भ्रामक ऑनलाइन कंटेंट को चिह्नित करने के लिये एक ‘फैक्ट चेक यूनिट’ का सृजन करने की अनियंत्रित शक्ति प्रदान करता है।

  • सोशल मीडिया मध्यवर्ती संस्थाओं (Social Media intermediaries) द्वारा उपयोगकर्त्ताओं को फ्लैग्ड सूचना को होस्ट या पब्लिश करने से रोक सकने की विफलता के परिणामस्वरूप उनकी ‘सेफ हार्बर’ (Safe Harbour) प्रतिरक्षा वापस ली जा सकती है, जो फिर उन्हें आपराधिक वाद के दायरे में ला सकती है। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • नया नियम केंद्र सरकार को यह निर्धारित करने की शक्ति देता है कि कौन-सी सूचना झूठ या भ्रामक है और वे मध्यवर्ती संस्थानों के माध्यम से सेंसरशिप का प्रयोग कर सकते हैं। यह संविधान द्वारा गारंटीकृत मुक्त सूचना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
  • इंटरनेट युग में भ्रामक सूचनाओं और फेक न्यूज़ का प्रसार एक प्रमुख समस्या है। इसके व्यक्तियों, समुदायों और यहाँ तक कि राष्ट्रों के लिये भी गंभीर परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। भारत में सरकार ने आईटी नियमों में संशोधन के माध्यम से इस समस्या को संबोधित करने का प्रयास किया है। यद्यपि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इन संशोधनों के प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की गई है।

आईटी नियम क्या हैं?

  • आईटी नियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 से अपनी अधिकारिता प्राप्त करते हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के लिये विधिक मान्यता प्रदान करता है।
  • ‘सेफ हार्बर’ प्रावधान:
    • यह अधिनियम उन मध्यवर्ती संस्थानों के लिये एक ‘सेफ हार्बर’ प्रदान करता है जो अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सम्यक तत्परता रखते हैं और राज्य द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करते हैं।
  • मध्यवर्ती संस्थाएँ:
    • अधिनियम की धारा 79 मध्यवर्ती संस्थाओं को प्रतिरक्षा प्रदान करती है, जब तक कि वे सम्यक तत्परता और राज्य-निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करते रहते हैं।
    • मध्यवर्ती संस्थाओं में व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म शामिल हैं।
  • प्रथम प्रवर्तक (First Originator):
    • आईटी नियम दायित्वों को मध्यवर्ती संस्थाओं पर लागू करते हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिये आवश्यक बनाते हैं कि वे कुछ परिस्थितियों में अपनी सेवा पर किसी भी सूचना के प्रथम प्रवर्तक की पहचान करने के लिये तकनीकी समाधान प्रदान करें।
    • आईटी नियम कई तरह की चुनौतियों के अधीन रहे हैं और इस संबंध में कई याचिकाएँ भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन हैं।

क्या हैं नए नियम?

  • वर्ष 2021 के आईटी नियमों ने पिछले दिशानिर्देशों को प्रतिस्थापित कर दिया है और मध्यवर्ती संस्थाओं और डिजिटल समाचार मीडिया को विनियमित करने का प्रयास किया है।
  • सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के लिये आवश्यक बनाया गया है कि किसी भी सूचना के प्रथम प्रवर्तक की पहचान करने के लिये तकनीकी समाधान प्रदान करें, जिसके निजता को खतरा पहुँचता है।
  • अप्रैल 2023 में पेश किये गए संशोधन सरकार को स्वयं यह तय कर सकने की शक्ति देते हैं कि कौन-सी सूचना झूठ है और वे मध्यवर्ती संस्थाओं को फेक या झूठ समझी जाने वाली पोस्ट को हटाने के लिये विवश करने के रूप में सेंसरशिप की व्यापक शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं।
  • नए नियम विधान के बजाय कार्यकारी आदेश के माध्यम से अभिव्यक्ति को प्रतिबंधित कर भारत में वाक् स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता को खतरे में डालते हैं।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) प्रत्येक नागरिक को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है, जिसे केवल अनुच्छेद 19(2) में निर्धारित आधार पर विधि द्वारा अपनाए गए उचित प्रतिबंधों के माध्यम से ही सीमित किया जा सकता है।
  • फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचना ऐसे आधार नहीं हैं जिन पर वाक् को सीमित किया जा सकता है, जबकि आईटी नियमों में किये गए संशोधन उनके द्वारा लगाए गए किसी भी तरह के अवरोधों की चेतावनी नहीं देते हैं।
  • ‘फैक्ट चेक यूनिट’ के पास यह तय करने की असीम शक्तियाँ हैं कि कौन-सी सूचना झूठी है और सोशल मीडिया मध्यवर्ती संस्थाओं को इन निष्कर्षों के आधार पर कार्रवाई करने के लिये मजबूर करती है, जो ‘ओपन-एंडेड’ और अपरिभाषित हैं।

संबद्ध चिंताएँ

  • स्पष्ट परिभाषाओं का अभाव:
    • नए संशोधन फेक न्यूज़ को परिभाषित करने में विफल रहे हैं और सरकार की फैक्ट चेक यूनिट को सरकार से संबद्ध ‘किसी भी कार्य के संबंध में’ किसी भी समाचार की सत्यता की घोषणा करने की अनुमति देते हैं।
    • अपरिभाषित शब्दों का उपयोग, विशेष रूप से ‘किसी भी कार्य’ जैसे वाक्यांश सरकार को यह तय करने की अनियंत्रित शक्ति देते हैं कि लोग इंटरनेट पर क्या देख, सुन और पढ़ सकते हैं।
  • मानक अभ्यास नहीं:
    • फेक न्यूज़ पर एक व्यापक संसदीय कानून, जो अनुच्छेद 19(2) की शर्तों पर आधारित हो, फेक न्यूज़ के विरुद्ध एक अधिक संवैधानिक रूप से प्रतिबद्ध अभियान सिद्ध होता।
      • फ्रांस में, चुनाव के दौरान भ्रामक सूचना के प्रसार का मुक़ाबला करने के लिये घोषणाएँ करने का दायित्व स्वतंत्र न्यायाधीश को सौंपा गया है।
    • विधिक रूप से अधिनियमित विधान भ्रामक सूचना को हटाने के लिये कम प्रतिबंधकारी विकल्पों पर विचार करने में सक्षम होता।
  • सूचनाओं को हटाना:
    • फैक्ट चेक यूनिट द्वारा गलत समझी जाने वाली सूचना को मध्यवर्ती संस्थाएँ हटा देगी; इस प्रकार, केवल राज्य को यह निर्धारित करने का अधिकार होगा कि सत्य क्या है।
    • नए नियम सरकार को स्वयं यह तय कर सकने की शक्ति देते हैं कि कौन-सी सूचना झूठ है और वे मध्यवर्ती संस्थाओं को फेक या झूठ समझी जाने वाली पोस्ट को हटाने के लिये विवश करने के रूप में सेंसरशिप की व्यापक शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं।
  • अधिकारों में कटौती:
    • सत्ता से सवाल करने और सत्ता के समक्ष सच बोलने के प्रेस और व्यक्तियों के अधिकार कम हो जाएँगे तथा नागरिक स्वतंत्रता कम हो जाएगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का उल्लंघन:
    • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (वर्ष 2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि वाक् को सीमित करने वाला कानून न तो संदिग्ध होने चाहिये, न ही व्यापक अनुप्रयोग योग्य (‘neither be vague nor over-broad’)।

आगे की राह

  • प्रौद्योगिकी समाधान (Technology Solutions):
    • पूरी तरह से सेंसरशिप पर निर्भर रहने के बजाय सरकार और मध्यवर्ती संस्थाएँ भ्रामक सूचनाओं और फेक न्यूज़ से निपटने के लिये प्रौद्योगिकी समाधानों में निवेश कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिये, गलत सूचना की पहचान करने और उन्हें फ़्लैग करने के लिये एल्गोरिदम विकसित किये जा सकते हैं, जबकि फैक्ट-चेकिंग वेबसाइटों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
  • स्व-नियमन (Self-Regulation):
    • फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचना के प्रसार को रोकने के लिये मध्यवर्ती संस्थाएँ स्व-नियामक उपाय भी कर कर सकती हैं।
    • इसमें कंटेंट की निगरानी और गलत सूचनाओं को फ़्लैग करने के लिये आंतरिक समितियों की स्थापना करना तथा परिशुद्धता सुनिश्चित करने के लिये फैक्ट-चेकिंग वेबसाइटों के साथ कार्य करना शामिल हो सकता है।
  • जन जागरण:
    • सेंसरशिप के खतरों और वाक् स्वतंत्रता के महत्त्व के बारे में जनता में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है।
    • यह सोशल मीडिया अभियानों, कार्यशालाओं और स्कूलों, कॉलेजों एवं अन्य सार्वजनिक मंचों पर चर्चाओं के माध्यम से किया जा सकता है।
  • सहकार्यात्मक दृष्टिकोण:
    • फेक न्यूज़ और भ्रामक सूचना की समस्या से निपटने के लिये सहकार्यता का दृष्टिकोण विकसित करने के लिये सरकार, मध्यस्थ और नागरिक समाज संगठन मिलकर काम कर सकते हैं।
    • इसमें झूठी सूचनाओं की पहचान करने और उन्हें हटाने के लिये एक संयुक्त कार्यदल की स्थापना करना तथा आम लोगों के बीच मीडिया साक्षरता को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
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