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भारत के लिये कच्चातीवू द्वीप समूह का क्या महत्व है? - श्रीनारद मीडिया

भारत के लिये कच्चातीवू द्वीप समूह का क्या महत्व है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वह मालदीव हो (जो अब चीन के साथ बढ़ते समुद्री संघर्ष के बीच भारत के लिये अधिक महत्त्व रखने लगा है) या प्रशांत द्वीप समूहों में से संसाधन-संपन्न पापुआ न्यू गिनी के साथ भारत की नई संलग्नता, मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर अवसंरचना का संयुक्त विकास हो या पूर्वी हिंद महासागर के द्वीपों में ऑस्ट्रेलिया के साथ सहयोग या पूर्व में स्थित अंडमान, पश्चिम में स्थित लक्षद्वीप एवं श्रीलंका से सटे कच्चातिवु को विकसित करने पर सरकार का ध्यान—द्वीप क्षेत्र भारत की नई भू-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग बनकर उभरे हैं।

कच्चातिवु द्वीप:

  • परिचय:
    • कच्चातिवु द्वीप (Katchatheevu Islands) भारत के दक्षिण-पूर्वी तट (तमिलनाडु) और श्रीलंका के उत्तरी तट के बीच पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) में स्थित निर्जन द्वीपों की एक जोड़ी है।
    • इनमें से बड़े द्वीप को कच्चातिवु, जबकि छोटे को इमरावन (Imaravan) के नाम से जाना जाता है। ये द्वीप अपनी रणनीतिक स्थिति और भारत एवं श्रीलंका दोनों की मत्स्यग्रहण गतिविधियों में उनके महत्त्व के कारण ऐतिहासिक रूप से महत्त्वपूर्ण रहे हैं।
  • मछुआरों का मुद्दा:
    • कच्चातिवु का स्वामित्व भारत और श्रीलंका के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रहा है, विशेष रूप से आसपास के जल क्षेत्र में मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर। तमिलनाडु के मछुआरे इससे विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, क्योंकि वे इस क्षेत्र में मछली पकड़ने के पारंपरिक अधिकारों का दावा करते हैं।
    • कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपे जाने के परिणामस्वरूप भारतीय मछुआरों के द्वीप के आसपास के पारंपरिक मत्स्यग्रहण क्षेत्रों तक पहुँच पर प्रतिबंध लग गया है। इसके कारण कई संघर्ष हुए और बार-बार श्रीलंकाई अधिकारियों द्वारा भारतीय मछुआरों को गिरफ़्तार किया गया है।
  • राजनीतिक और कानूनी रुख:
    • राजनीतिक रूप से कच्चातिवु के मुद्दे का इस्तेमाल भारत में विभिन्न दलों द्वारा इस मामले पर सरकार के रुख की आलोचना करने के लिये किया गया है। इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने वाले समझौतों की वैधता के संबंध में कानूनी चुनौतियाँ भी पेश की गई हैं।
  • द्विपक्षीय चर्चाएँ:
    • मुद्दे की विवादास्पद प्रकृति के बावजूद भारत और श्रीलंका दोनों तमिलनाडु के मछुआरों की चिंताओं को दूर करने के लिये द्विपक्षीय चर्चा में संलग्न रहे हैं। इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिये संयुक्त गश्त और संयुक्त मत्स्यग्रहण क्षेत्र जैसे विभिन्न प्रस्तावों का सुझाव दिया गया है।

कच्चातिवु द्वीप के संबंध में भारत-श्रीलंका संबंध किस प्रकार विकसित हुए हैं?

  • औपनिवेशिक काल (19वीं सदी तक): श्रीलंका ने क्षेत्राधिकार के साक्ष्य के रूप में 1505 से 1658 ई. तक द्वीप पर पुर्तगालियों के नियंत्रण का हवाला देते हुए कच्चातिवु पर अपनी संप्रभुता का दावा किया।
    • औपनिवेशिक युग में इस लघु द्वीप पर अंग्रेज़ों का शासन था। ऐतिहासिक रूप से, माना जाता है कि तमिलनाडु में रामनाड या वर्तमान रामनाथपुरम के राजा के पास इस द्वीप का स्वामित्व था, जो बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया।
  • 20वीं सदी में परिवर्तन: श्रीलंका और भारत दोनों ने 1920 के दशक में कच्चातिवु पर मछली पकड़ने के विशेष अधिकार की तलाश की, जिससे लंबे समय तक विवाद चला। 1940 के दशक में दोनों देशों की स्वतंत्रता के बाद भी यह मुद्दा बना रहा। वर्ष 1968 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा के दौरान कच्चातिवु पर श्रीलंका की संप्रभुता का दावा करते हुए आधिकारिक तौर पर इस मामले को उठाया।
    • इसके बाद भारत और श्रीलंका के प्रधानमंत्रियों—इंदिरा गांधी और सिरीमावो भंडारनायके के बीच क्रमिक वार्ता के परिणामस्वरूप दोनों देशों के बीच वर्ष 1974 में एक समझौते (Agreement on the Boundary in Historic Waters) पर हस्ताक्षर किये गए।
    • इस समझौते ने ऐतिहासिक साक्ष्यों, कानूनी सिद्धांतों और पूर्व-दृष्टांतों के आधार पर एक सीमा को परिभाषित किया, जो कच्चातिवु को श्रीलंका के पश्चिमी तट से एक मील की दूरी पर उसके अधिकार क्षेत्र में शामिल करता था।
  • भारतीय मछुआरों के लिये महत्त्व: समझौते के अनुच्छेद 4 में यह निर्धारित किया गया है कि प्रत्येक राज्य के पास पाक जलडमरूमध्य और पाक खाड़ी में समुद्री सीमा के किनारे के जल, द्वीपों, महाद्वीपीय शेल्फ और उप-मृदा पर संप्रभुता एवं विशेष क्षेत्राधिकार और नियंत्रण प्राप्त होगा तथा कच्चातिवु द्वीप के बारे में माना गया कि यह श्रीलंकाई जलक्षेत्र में आता है।
    • अगले अनुच्छेद में कहा गया है कि भारतीय मछुआरों एवं तीर्थयात्रियों को पहले की तरह द्वीप तक पहुँच प्राप्त होगी और इन उद्देश्यों के लिये श्रीलंका से यात्रा दस्तावेज़ या वीज़ा प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।

भारत के लिये कच्चातिवु द्वीप की प्रासंगिकता:

  • रणनीतिक महत्त्व:
    • भू-राजनीतिक अवस्थिति: कच्चातिवु पाक जलडमरूमध्य में रणनीतिक अवस्थिति रखता है, जो बंगाल की खाड़ी को मन्नार की खाड़ी और हिंद महासागर से जोड़ने वाला एक महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग है।
    • कच्चातिवु पर नियंत्रण भारत को जहाज़ों की आवाजाही और संभावित सुरक्षा खतरों सहित क्षेत्र में विभिन्न समुद्री गतिविधियों की निगरानी में रणनीतिक लाभ प्रदान कर सकता है।
  • आर्थिक महत्त्व:
    • मत्स्य संसाधन: कच्चातिवु के आसपास का जल क्षेत्र मछली एवं अन्य समुद्री खाद्य सहित समुद्री संसाधनों से समृद्ध है, जो तमिलनाडु के मछुआरों की आजीविका के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • वाणिज्यिक क्षमता: कच्चातिवु पर नियंत्रण से मत्स्यग्रहण, जलीय कृषि एवं पर्यटन जैसी वाणिज्यिक गतिविधियों के विकास में मदद मिल सकती है, जिससे क्षेत्र में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
    • ऐतिहासिक दावे: कच्चातिवु भारत के लिये ऐतिहासिक महत्त्व रखता है, जहाँ तमिलनाडु के मछुआरों द्वारा मछली पकड़ने के सदियों पुराने पारंपरिक अधिकारों का दावा किया जाता है।
    • सांस्कृतिक संबंध: इस द्वीप का भारत और श्रीलंका में तमिल समुदायों के लिये ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व है, क्योंकि यह प्रसिद्ध तमिल संत तिरुवल्लुवर से संबद्ध है।
  • कानूनी और राजनयिक निहितार्थ:
    • राजनयिक संबंध: वर्ष 1974 और 1976 के समझौतों के माध्यम से कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपे जाने के बावजूद, कच्चातिवु का मुद्दा भारत-श्रीलंका संबंधों के लिये निहितार्थ रखता है, जो प्रायः मछली पकड़ने के अधिकार और समुद्री सहयोग सहित विभिन्न मामलों पर द्विपक्षीय चर्चाओं एवं बातचीत को प्रभावित करता है ।
    • अंतर्राष्ट्रीय कानून: कच्चातिवु पर विवाद अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुप्रयोग, विशेष रूप से क्षेत्रीय संप्रभुता, समुद्री सीमाओं और तटीय राज्यों के अधिकारों के बारे में व्यापक प्रश्न उठाता है।
    • प्रादेशिक जल: श्रीलंका द्वारा द्वीप पर नियंत्रण का भारत के प्रादेशिक जल और क्षेत्र में स्थापित विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) पर प्रभाव पड़ता है।
  • मानवीय पहलू:
    • मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: श्रीलंका द्वारा कच्चातिवु के आसपास मत्स्यग्रहण गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने विभिन्न मानवीय चिंताओं को जन्म दिया है, जिसमें भारतीय मछुआरों की गिरफ़्तारी, उत्पीड़न और जान के नुकसान की घटनाएँ शामिल हैं।
    • समाधान की आवश्यकता: अपनी जीविका के लिये जल पर निर्भर मछुआरों और उनके परिवारों के कल्याण एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये कच्चातिवु मुद्दे को संबोधित करना मानवीय दृष्टिकोण से आवश्यक है।
  • सुरक्षा एवं तस्करी विरोधी अभियान:
    • तस्करी गतिविधियाँ: कच्चातिवू की भारतीय तट से निकटता इसे हथियारों, मादक पदार्थों और प्रतिबंधित सामग्री सहित विभिन्न तस्करी गतिविधियों का एक संभावित केंद्र बनाती है।
    • तस्करी गतिविधियों को रोकना: श्रीलंका द्वारा द्वीप पर नियंत्रण से क्षेत्र में ऐसी गतिविधियों की निगरानी करने और उन पर अंकुश लगाने की भारत की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
      • भारत ने तस्करी एवं अन्य अवैध गतिविधियों के लिये कच्चातिवु के उपयोग पर चिंता व्यक्त की है जो सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।

कच्चातिवु द्वीप अपने छोटे आकार के बावजूद अपनी रणनीतिक अवस्थिति, मछली पकड़ने के अधिकार पर प्रभाव और सांस्कृतिक महत्त्व के कारण भारत एवं श्रीलंका के बीच एक जटिल मुद्दा बना हुआ है। श्रीलंका को द्वीप के हस्तांतरण से द्विपक्षीय संबंध तनावपूर्ण बने हैं और यह एक व्यापक समाधान की आवश्यकता को उजागर करता है जो समुद्री सुरक्षा, मछुआरों की आजीविका संबंधी चिंताओं और दोनों देशों की ऐतिहासिक भावनाओं का सम्मान करे। क्षेत्र में सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये निरंतर संवाद, आपसी समझ और नवीन संसाधन-साझाकरण तंत्र के माध्यम से लंबे समय से जारी इस विवाद को हल करना महत्त्वपूर्ण है।

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