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भारत के लिए प्रशांत द्वीपीय देशों का क्या महत्त्व है? - श्रीनारद मीडिया

भारत के लिए प्रशांत द्वीपीय देशों का क्या महत्त्व है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत-प्रशांत द्वीप समूह सहयोग मंच (FIPIC) शिखर सम्मेलन 22 मई, 2023 को पोर्ट मोरेस्बी, पापुआ न्यू गिनी में आयोजित किया गया। भारत के प्रधानमंत्री ने पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री के साथ इसकी सह-अध्यक्षता की और इसमें 14 प्रशांत द्वीपीय देशों (PIC) ने भाग लिया।

  • भारत के प्रधानमंत्री को पापुआ न्यू गिनी के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- ग्रैंड कम्पैनियन ऑफ द ऑर्डर ऑफ लोगोहू (GCL) से सम्मानित किया गया।

तीसरे FIPIC शिखर सम्मेलन की प्रमुख विशेषताएँ:

  • प्रशांत द्वीपीय देशों (PICs) को भारत का समर्थन:
    • भारत सभी देशों की संप्रभुता और अखंडता का समर्थन करता है और ग्लोबल साउथ के स्तर को विस्तृत करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की साझा प्राथमिकता पर ज़ोर देता है।
      • प्रधानमंत्री ने भारत-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए G7 शिखर सम्मेलन के दौरान क्वाड के हिस्से के रूप में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के साथ चर्चा का उल्लेख किया।
    • इसी के साथ क्वाड राष्ट्रों के नेताओं ने प्रशांत क्षेत्र में पलाऊ से शुरू होने वाले ओपन रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN) को लागू करने की योजना की घोषणा की है।
    • पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री ने भारत से G-7 और G-20 शिखर सम्मेलन में PIC का समर्थन करने का आग्रह किया।
  • 12-पॉइंट फॉर्मूला:
    • भारत ने PIC में स्वास्थ्य सेवा, साइबर स्पेस, स्वच्छ ऊर्जा, जल और छोटे एवं मध्यम उद्यमों के क्षेत्रों में 12-पॉइंट विकास कार्यक्रम का भी अनावरण किया, जिसके अनुसार:
    • भारत, फिजी में एक सुपर-स्पेशियलिटी कार्डियोलॉजी अस्पताल स्थापित करेगा। सभी 14 PIC में डायलिसिस यूनिट एवं समुद्री एम्बुलेंस शुरू करेगा और सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराने हेतु जन औषधि केंद्र भी स्थापित करेगा।
    • भारत प्रत्येक प्रशांत द्वीपीय देश में छोटे और मध्यम स्तर के उद्यम क्षेत्र के विकास का समर्थन करेगा।
      • भारत ने जल की कमी के मुद्दों को दूर करने हेतु अलवणीकरण इकाइयाँ प्रदान करने का भी संकल्प लिया है।
  • ‘थिरुक्कुरल पुस्तक: 
    • इसके अतिरिक्त भारतीय प्रधानमंत्री ने पापुआ न्यू गिनी के अपने समकक्ष के साथ टोक पिसिन (पापुआ न्यू गिनी की आधिकारिक भाषा) में तमिल क्लासिक ‘थिरुक्कुरल’ भी जारी किया ताकि भारतीय विचार एवं संस्कृति को दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत राष्ट्र के लोगों के निकट लाया जा सके।

फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आईलैंड कोऑपरेशन (FIPIC):

  • परिचय:
    • PIC के साथ भारत का जुड़ाव ‘इंडिया एक्ट ईस्ट पॉलिसी‘ का हिस्सा है।
      • ‘फोरम फॉर इंडिया-पैसिफिक आइलैंड्स कोऑपरेशन (FIPIC)’ PIC के लिये एक्ट ईस्ट पॉलिसी शीर्षक के अंतर्गत शुरू की गई एक प्रमुख पहल है।
    • FIPIC भारत और 14 PIC अर्थात् कुक-आइलैंड्स, फिजी, किरिबाती, मार्शल-आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया, नाउरू, निउ, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, समोआ, सोलोमन आइलैंड्स, टोंगा, तुवालु और वानुअतु के मध्य सहयोग के लिये विकसित एक बहुराष्ट्रीय समूह है
    • इसकी स्थापना नवंबर 2014 में की गई थी तथा प्रथम FIPIC शिखर सम्मेलन वर्ष 2014 में सुवा, फिजी में और द्वितीय वर्ष 2015 में जयपुर, भारत में आयोजित किया गया था।
  • उद्देश्य: 
    • व्यापार, निवेश, पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, अक्षय ऊर्जा, आपदा प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में PICs के साथ भारत के संबंधों को मज़बूत करना।
    • FIPIC पारस्परिक हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर संवाद एवं परामर्श के लिये मंच भी प्रदान करता है।

प्रशांत द्वीपीय देशों का महत्त्व:

  • भू-राजनीतिक महत्त्व: प्रशांत द्वीपीय राष्ट्र रणनीतिक रूप से प्रशांत महासागर के विस्तृत क्षेत्र में स्थित हैं, जिसने व्यापार, सैन्य उपस्थिति और गठबंधनों की अपनी क्षमता के कारण अमेरिका, रूस एवं चीन जैसी प्रमुख शक्तियों का ध्यान आकर्षित किया है।
  • आर्थिक क्षमता: इन राष्ट्रों के पास बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन हैं, जिसमें मत्स्य पालन, खनिज, लकड़ी और पर्यटन संपत्ति शामिल है।
    • इसके अतिरिक्त उनके विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zones- EEZs) समुद्री संसाधनों से समृद्ध हैं। वे प्रशांत के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये पारगमन बिंदुओं के रूप में भी कार्य करते हैं।
      • विश्व के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से 9 इसी क्षेत्र में स्थित हैं।
  • सांस्कृतिक और जैविक विविधता: प्रशांत द्वीपीय देशों में विविध स्वदेशी संस्कृतियाँ, भाषाएँ  और परंपराएँ पाई जाती हैं जो मानवता के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
    • उनकी अनूठी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और संवर्द्धन वैश्विक विविधता में योगदान देता है।
  • संभावित वोट बैंक: 14 PIC की साझा आर्थिक एवं सुरक्षा चिंताएँ हैं तथा संयुक्त राष्ट्र में अधिक-से-अधिक वोटों के लिये ज़िम्मेदार हैं और अंतर्राष्ट्रीय जनमत हेतु प्रमुख शक्तियों के लिये संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं।

प्रशांत द्वीपीय देशों के साथ भारत के संबंध

  • परिचय: 
    • भारत और PIC ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को साझा करते हैं तथा विभिन्न द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय मंचों, जैसे- गुटनिरपेक्ष आंदोलन, संयुक्त राष्ट्र तथा FIPIC के माध्यम से PIC के साथ जुड़ रहे हैं।
    • PIC के साथ भारत की सहभागिता एक मुक्त, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ-साथ PIC के विकास आकांक्षाओं तथा जलवायु लचीलेपन का समर्थन करने की अपनी प्रतिबद्धता से प्रेरित है।
      • माना जाता है कि “एक मुक्त, पारदर्शी और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का दृष्टिकोण” इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते विस्तार को संबोधित करता है।
  • सहायता: 
    • भारत कोविड-19 महामारी के दौरान प्रशांत द्वीपीय देशों के लिये एक विश्वसनीय भागीदार रहा था।
    • भारत ने अपनी मानवीय सहायता और आपदा राहत प्रयासों के अंतर्गत प्रशांत द्वीपीय देशों को महत्त्वपूर्ण आवश्यक दवाओं, टीकों एवं खाद्य सामाग्रियों की आपूर्ति की थी। कोविड-19 महामारी के दौरान प्रशांत द्वीपीय देशों को दी गई भारतीय सहायता के कुछ उदाहरण हैं:
      • भारत ने फिजी को अपनी वैक्सीन मैत्री पहल के अंतर्गत कोविशील्ड टीकों की 1.2 मिलियन खुराक दान के रूप में प्रदान की थी।
      • जबकि पापुआ न्यू गिनी को 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की आवश्यक दवाएँ और चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराए एवं मिशन सागर पहल के तहत नाउरू को 100 मीट्रिक टन चावल प्रदान किये थे तथा सह-उत्पादन बिजली संयंत्र परियोजना के लिये फिजी को 75 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता प्रदान की थी।
        • भारत ने सौर ऊर्जा परियोजना के लिये समोआ को 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया था।
  • आर्थिक संबंध:
    • वर्ष 2021-22 के आँकड़ों के आधार पर प्लास्टिक, फार्मास्यूटिकल्स, चीनी, खनिज ईंधन और अयस्क जैसी वस्तुओं में भारत एवं प्रशांत द्वीपीय देशों के मध्य कुल वार्षिक व्यापार 570 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है।
    • उनमें से मूल्य के मामले में पापुआ न्यू गिनी सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
  • भविष्य की संभावनाएँ: भारत और PIC में ब्लू इकॉनमी, समुद्री सुरक्षा, डिजिटल कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं कौशल विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की अपार क्षमता है।

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