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हिंद महासागर द्विध्रुव और अल नीनो पर इसका प्रभाव क्या है? - श्रीनारद मीडिया

हिंद महासागर द्विध्रुव और अल नीनो पर इसका प्रभाव क्या है?

हिंद महासागर द्विध्रुव और अल नीनो पर इसका प्रभाव क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय मानसून पर अल नीनो का प्रभाव पड़ने की संभावना जताई जा रही है, परंतु साथ ही एक सकारात्मक हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole- IOD) विकसित होने की भी आशंका है और इससे अल नीनो का प्रभाव कम हो सकता है।

  • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, जून-अगस्त 2023 के दौरान सकारात्मक/पॉज़िटिव IOD स्थितियों की लगभग 80% और तटस्थ IOD की 15% संभावना है।
  • वैसे तो हिंद महासागर द्विध्रुव अभी भी अपने तटस्थ/न्यूट्रल चरण में है और आने वाले महीनों में विकसित हो सकता है, किंतु वर्ष 2023 में प्रशांत महासागर में अल नीनो की स्थिति पहले से ही अच्छी बनी हुई है।

हिंद महासागर द्विध्रुव:

  • IOD और भारतीय नीनो:
    • IOD, जिसे भारतीय नीनो भी कहा जाता है, एल नीनो के समान ही एक घटना है जो पूर्व में इंडोनेशियाई और मलेशियाई तटरेखा तथा पश्चिम में सोमालिया के पास अफ्रीकी तटरेखा के बीच हिंद महासागर के अपेक्षाकृत छोटे क्षेत्र में घटित होती है।
      • अल नीनो दक्षिणी दोलन (El Nino Southern Oscillation- ENSO) घटना की तुलना में अल नीनो एक सामान्य से अधिक गर्म चरण है, जिसक दौरान भारत सहित विश्व के कई क्षेत्रों में आमतौर पर तापमान गर्म और वर्षा सामान्य से कम होती है।
    • ऐसे में भूमध्य रेखा के साथ समुद्र का एक किनारा दूसरे की तुलना में गर्म हो जाता है।
    • जब हिंद महासागर का पश्चिमी भाग, विशेषकर सोमालिया तट के करीब पूर्वी हिंद महासागर की तुलना में गर्म हो जाता है, तब इसे सकारात्मक IOD कहा जाता है।
    • जब पश्चिमी हिंद महासागर ठंडा होता है तब इसे नकारात्मक IOD कहते हैं।

क्रियाविधि:

  • नकारात्मक IOD:
    • हिंद महासागर बेसिन में वायु का संचार पश्चिम से पूर्व की ओर होता है, अर्थात् सतह के निकट अफ्रीकी तट से इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर तथा ऊपरी स्तर पर विपरीत दिशा में। इसका मतलब है कि हिंद महासागर में सतही जल पश्चिम से पूर्व की ओर विस्थापित हो जाता है।
      • एक सामान्य वर्ष में इंडोनेशिया के पास पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में गर्म जल हिंद महासागर को पार करता है तथा हिंद महासागर के उस भाग को थोड़ा गर्म कर देता है। इस कारण वायु ऊपर उठती है और प्रचलित वायु परिसंचरण में सहायता करती है।
    • जिस वर्ष वायु परिसंचरण मज़बूत हो जाता है, अफ्रीकी तट से अधिक गर्म सतही जल इंडोनेशियाई द्वीपों की ओर विस्थापित होता है, जिस कारण वह क्षेत्र सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है। इससे गर्म वायु ऊपर उठती है और चक्र स्वयं को मज़बूत करता है।
    • यह नकारात्मक IOD की स्थिति को दर्शता है।

  • सकारात्मक IOD:
    • वायु संचार सामान्य से थोड़ा कमज़ोर हो जाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में वायु परिसंचरण की दिशा भी विपरीत हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि अफ्रीकी तट गर्म हो जाता है, जबकि इंडोनेशियाई तट ठंडा हो जाता है।
      • सकारात्मक IOD को अक्सर अल नीनो के समय विकसित होते देखा जाता है, जबकि नकारात्मक IOD कभी-कभी ला नीना से संबंधित होता है।
    • अल नीनो के दौरान इंडोनेशिया का प्रशांत क्षेत्र सामान्य से अधिक ठंडा हो जाता है जिसके कारण हिंद महासागर का क्षेत्र भी ठंडा हो जाता है। इससे सकारात्मक IOD को विकसित होने में सहायता मिलती है।

  • IOD का प्रभाव:
    • हिंद महासागर में IOD एक महासागर-वायुमंडलीय संपर्क प्रदर्शित करता है जो प्रशांत महासागर में अल नीनो घटनाओं के दौरान देखे गए उतार-चढ़ाव से काफी मिलता-जुलता है। हालाँकि अल नीनो की तुलना में IOD कम शक्तिशाली है, जिसके परिणामस्वरूप अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ता है।
    • एक सकारात्मक IOD पूरे भारतीय उपमहाद्वीप और अफ्रीकी तट पर वर्षा को प्रोत्साहित करता है, जबकि इंडोनेशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा ऑस्ट्रेलिया में वर्षा की मात्रा को कम करता है। जब IOD नकारात्मक होता है, तो विपरीत प्रभाव होते हैं।
  • अतीत की घटनाएँ:
    • वर्ष 2019 में IOD घटना का विकास मानसून के दौरान हुआ था लेकिन यह इतना मज़बूत था कि मानसून के पहले माह (उस वर्ष जून माह में वर्षा की मात्रा में 30% की कमी थी) के दौरान वर्षा की भरपाई हो गई थी।
      • उस वर्ष के जून माह में वर्षा में कमी का एक कारण विकासशील अल नीनो भी था, लेकिन बाद में यह असफल  हो गया।

ENSO:

  • एक सामान्य वर्ष में दक्षिण अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी तट के पास प्रशांत महासागर का पूर्वी क्षेत्र, फिलीपींस और इंडोनेशिया के द्वीपों के पास पश्चिमी क्षेत्र की तुलना में ठंडा है।
    • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली वायु प्रणालियाँ गर्म सतही जल को इंडोनेशियाई तट की ओर ले जाती हैं।
  • विस्थापित जल का स्थान नीचे से उठने वाले अपेक्षाकृत ठंडे जल द्वारा ले लिया जाता है।
  • अल नीनो घटना वायु प्रणालियों के क्षीण होने का परिणाम है जिससे गर्म जल का विस्थापन कम होता है।
  • इसके परिणामस्वरूप प्रशांत महासागर का पूर्वी भाग सामान्य से अधिक उष्ण हो गया है। ला-नीना की अवधि में इसके विपरीत होता है।
  • ये दोनों स्थितियाँ, जिन्हें एक साथ अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) कहा जाता है, विश्व में मानसून की घटनाओं को प्रभावित करती हैं।
  • भारत में अल नीनो का प्रभाव मानसूनी वर्षा को अवरोधित करता है

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