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गोवा समुद्री सम्मेलन का क्या तात्पर्य है? - श्रीनारद मीडिया

गोवा समुद्री सम्मेलन का क्या तात्पर्य है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गोवा समुद्री सम्मेलन (GMC) 2023 का चौथा संस्करण भारतीय नौसेना द्वारा नेवल वॉर कॉलेज, गोवा के तत्त्वावधान में आयोजित किया गया।

  • सम्मेलन में कोमोरोस, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, म्याँमार, सेशेल्स, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड सहित बारह हिंद महासागर देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
  • GMC के वर्ष 2023 के संस्करण का विषय “हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा: सामान्य समुद्री प्राथमिकताओं को सहयोगात्मक शमन ढाँचे में परिवर्तित करना” है।

सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ: 

  • परिचय: 
    • GMC आम समुद्री चुनौतियों पर चर्चा करने और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिये हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के विभिन्न देशों के नौसेना एवं रक्षा अधिकारियों की एक उच्च स्तरीय सभा है।
    • यह सम्‍मेलन भारतीय नौसेना की आउटरीच पहल है। यह समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में अभ्यासकर्त्ताओं और शिक्षाविदों के सामूहिक ज्ञान को परिणामोन्मुख समुद्री विचार प्राप्त करने तथा उसका उपयोग करने के लिये एक बहुराष्ट्रीय मंच प्रदान करता है।
    • यह समसामयिक और भविष्य की समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिये नौसेना प्रमुखों/समुद्री एजेंसियों के प्रमुखों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के साथ-साथ सहकारी रणनीतियों को प्रस्तुत करने और साझेदार समुद्री एजेंसियों के बीच अंतर-संचालनता को बढ़ाने के लिये एक मंच उपलब्‍ध कराता है।
  • रक्षा मंत्री का संबोधन:
    • सम्मेलन के दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने विभिन्न उद्देश्यों से कार्य करने के बजाय देशों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की आवश्यकता को रेखांकित करने हेतु “बंदी की दुविधा” अवधारणा का उल्लेख किया।
      • बंदी की दुविधा अवधारणा जब अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में लागू की जाती है, तो विभिन्न स्थितियों की व्याख्या और विश्लेषण किया जा सकता है जहाँ देशों को रणनीतिक निर्णय लेने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
      • उदाहरणतः जब दो या दो से अधिक देश हथियारों की होड़ में शामिल होते हैं, तो वे प्राय आपसी भय और अविश्वास के कारण ऐसा करते हैं।
    • भारतीय रक्षा मंत्री ने आम समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिये IOR में बहुराष्ट्रीय सहयोगात्मक शमन ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया।
      • उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ाने के लिये रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
      • साथ ही इस बात पर ज़ोर दिया कि एक स्वतंत्र, पारदर्शी और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था हम सभी के लिये प्राथमिकता है। ऐसी समुद्री व्यवस्था में ‘संभवतः सही है’ का कोई स्थान नहीं है।
      • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों का पालन, जैसा कि समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) 1982 में प्रतिपादित किया गया है, हमारा आदर्श होना चाहिये।

बंदी की दुविधा अवधारणा:

  • परिचय:
    • बंदी की दुविधा गेम थ्योरी में एक मौलिक अवधारणा है, जो गणित और सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है जो उन स्थितियों में रणनीतिक निर्णय लेने का विश्लेषण करती है जहाँ परिणाम कई प्रतिभागियों की पसंद पर निर्भर करता है।
  • बंदी की दुविधा परिदृश्य:
    • बंदी की दुविधा को प्रायः ऐसे परिदृश्य का उपयोग करके चित्रित किया जाता है जहाँ दो व्यक्तियों A और B को एक अपराध के लिये गिरफ्तार किया जाता है और उन्हें अलग-अलग पूछताछ कक्ष में रखा जाता है।
    • पुलिस के पास ठोस सबूतों की कमी है, लेकिन वे प्रत्येक बंदी को एक विकल्प देते हैं:
      • यदि दोनों बंदी चुप रहते हैं (सहयोग करते हैं), तो वे दोनों अपेक्षाकृत कम सज़ा पाते हैं, यदि दोनों अपराध कबूल करते हैं, तो उन दोनों को मामूली लंबी सज़ा मिलती है।
    • दुविधा इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि प्रत्येक बंदी को दूसरे की पसंद को जाने बिना निर्णय लेना होगा। प्रत्येक व्यक्ति के लिये तार्किक निर्णय, अपने स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए कबूल करना है क्योंकि यह दूसरे की पसंद की परवाह किये बिना कम-से-कम गंभीर परिणाम सुनिश्चित करता है।

भारत के लिये सुरक्षित हिंद महासागर क्षेत्र का महत्त्व: 

  • समुद्री सुरक्षा:
    • समुद्री सुरक्षा की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, लेकिन यह राष्ट्रीय सुरक्षा, समुद्री पर्यावरण, आर्थिक विकास एवं मानव सुरक्षा सहित समुद्री क्षेत्र के मुद्दों को वर्गीकृत करती है।
    • विश्व के महासागरों के अलावा यह क्षेत्रीय समुद्रों, क्षेत्रीय जल, नदियों और बंदरगाहों से भी संबंधित है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा:
      • भारत के लिये समुद्री सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इसकी तटरेखा 7,000 किमी. से अधिक है।
      • प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ समुद्री क्षेत्र में प्राकृतिक खतरों की अपेक्षा अब तकनीकी खतरों का प्रभाव देखा जा रहा है।
    • व्यापारिक प्रयोजन के लिये:
      • भारत का निर्यात और आयात अधिकतर हिंद महासागर के शिपिंग लेन पर निर्भर है।
      • इसलिये 21वीं सदी में भारत के लिये संचार के समुद्री मार्गों की सुरक्षा (SLOC) एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
    • चीन की बढ़ती शक्ति का मुकाबला:
      • भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र, विशेषकर श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव जैसे देशों में चीन की बढ़ती उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की है।
      • इन क्षेत्रों में चीन-नियंत्रित बंदरगाहों और सैन्य सुविधाओं के विकास को भारत के रणनीतिक हितों एवं क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये एक चुनौती के रूप में देखा गया है।
  • भारत में वर्तमान समुद्री सुरक्षा तंत्र:
    • वर्तमान में भारत की तटीय सुरक्षा त्रि-स्तरीय संरचना द्वारा संचालित होती है।
      • भारतीय नौसेना अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) पर गश्त करती है, जबकि भारतीय तटरक्षक बल (ICG) को 200 समुद्री मील (यानी विशेष आर्थिक क्षेत्र) तक गश्त और निगरानी करने का आदेश दिया गया है।
    • इसके साथ ही राज्य तटीय/समुद्री पुलिस (SCP/SMP) उथले तटीय क्षेत्रों में नौका से गश्त करती है।
    • SCP का क्षेत्राधिकार तट से 12 समुद्री मील तक है और ICG एवं भारतीय नौसेना का क्षेत्रीय जल (SMP के साथ) सहित पूरे समुद्री क्षेत्र (200 समुद्री मील तक) पर अधिकार क्षेत्र है।
  • भारत की हालिया समुद्री गतिविधियाँ:
    • समुद्री सुरक्षा पर साझा चिंताओं को दूर करने के लिये भारतीय नौसैनिक जहाज़ों ने वर्ष 2023 में मोज़ाम्बिक, सेशेल्स और मॉरीशस जैसे देशों के साथ समन्वित गश्त की।
      • इन गश्तों का उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती, तस्करी और अवैध तस्करी से निपटना था।
    • भारत अफ्रीकी देशों को आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और उनकी समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करने के लिये क्षमता निर्माण गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है।
  • सागर पहल:

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