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मिसाइल की मिसफायरिंग के क्या मायने है? - श्रीनारद मीडिया

मिसाइल की मिसफायरिंग के क्या मायने है?

मिसाइल की मिसफायरिंग के क्या मायने है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक भारतीय मिसाइल के दुर्घटनावश पाकिस्तानी क्षेत्र में प्रवेश कर जाने से दो परमाणु-सशस्त्र देशों के मध्य गंभीर तनाव में अनपेक्षित वृद्धि हो सकती थी। यह घटना दोनों देशों द्वारा परमाणु हथियारों की रखे जाने के खतरों के बारे में गंभीर आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता को मांग रखती है।

इस घटना ने भारत में उच्च-प्रौद्योगिकी हथियार प्रणालियों के भंडारण, रखरखाव, संचालन और यहाँ तक कि इंजीनियरिंग के मानकों के संबंध पर एक संदेह उत्पन्न किया है। इससे भी अधिक उल्लेखनीय यह है कि इस घटना ने दो परमाणु-संपन्न शत्रु देशों के बीच संकट प्रबंधन के लिये द्विपक्षीय तंत्र की दयनीय स्थिति को उजागर किया है जहाँ मिसाइल उड़ान का समय मुश्किल से कुछ ही मिनटों का होता है।

घटनाक्रम और प्रतिक्रिया 

  • भारत सरकार ने एक वक्तव्य में स्वीकार किया कि ‘‘तकनीकी खराबी के कारण मिसाइल की दुर्घटनावश फायरिंग हुई’’ जो पाकिस्तानी क्षेत्र में 124 किमी. अंदर जाकर क्रैश हुई। यह घटना रूटीन मेंटेनेंस के दौरान हुई।
    • अनुमान लगाया गया है कि यह भारत की शीर्ष मिसाइलों में से एक ‘ब्रह्मोस’ (BrahMos) का परीक्षण था जिसे भारत ने रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया है।
    • इस संबंध में भारत ने एक उच्चस्तरीय कोर्ट ऑफ इंक्वायरी (High-Level Court of Inquiry) के आदेश दिये हैं।
  • पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि यह घटना ‘‘रणनीतिक हथियारों के भारतीय संचालन में गंभीर प्रकृति दोषों और तकनीकी खामियों को इंगित करती है।’’
    • इस्लामाबाद में भारतीय उप-उच्चायुक्त (Chargé D’Affaires ) को पाकिस्तान ने अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिये दो बार तलब किया।
    • इस संदर्भ में पाकिस्तान ने भारत द्वारा जाँच के आदेश को अपर्याप्त बताया और संयुक्त जाँच की मांग की।
    • पाकिस्तान द्वारा ‘क्षेत्र में रणनीतिक स्थिरता’ को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भागीदारी की भी मांग की है।
  • मिसाइल मिसफायरिंग की इस घटना पर भारतीय और पाकिस्तानी प्रतिक्रियाएँ मौजूदा परिदृश्यों में सर्वोत्तम संभव प्रतिक्रियाएँ थीं क्योंकि संकट प्रबंधन हेतु दोनों देशों के बीच अत्यंत कमज़ोर द्विपक्षीय तंत्र मौजूद है।

क्षेत्र की रणनीतिक अस्थिरता के कारण 

दक्षिण एशिया (विशेष रूप से भारत-पाकिस्तान भूभाग) में रणनीतिक स्थिरता व्यवस्था ऐसी दुर्घटनाओं से निपटने के लिये या प्रभावी संकट प्रबंधन एवं प्रतिरोध स्थिरता के लिये अधिक सक्षम नहीं है। इसके प्रमुख कारण हैं:

  • समझौते में क्रूज मिसाइलों को शामिल न करना: हालाँकि भारत और पाकिस्तान ने अक्टूबर 2005 में ‘बैलिस्टिक मिसाइलों के उड़ान परीक्षण की पूर्व अधिसूचना’ (Pre-Notification of Flight Testing of Ballistic Missiles) समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, लेकिन इसमें क्रूज मिसाइल शामिल नहीं हैं।
    • उल्लेखनीय है कि ताज़ा घटनाक्रम में ब्रह्मोस के शामिल होने का संदेह है जो एक क्रूज मिसाइल है।
  • संरचित द्विपक्षीय वार्ता का अभाव: कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स (Confidence Building Measures- CBMs) और पारंपरिक CBMs पर एक अरसे से दोनों पक्षों के मध्य सयुक्त बैठकों का आयोजन नहीं हुआ है।
    • भारत और पाकिस्तान ने कई वर्षों से ‘परमाणु कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स पर विशेषज्ञ स्तर की वार्ता’ या ‘पारंपरिक विश्वास निर्माण उपायों पर विशेषज्ञ स्तर की वार्ता’ भी आयोजित नहीं की है।
    • इसके अलावा दोनों देशों में एक दूसरे के उच्चायुक्त नियुक्त नहीं है तथा दोनों देशों के मध्य कोई संरचित द्विपक्षीय वार्ता भी नहीं है।
  • चीन का हस्तक्षेप: क्षेत्रीय रणनीतिक स्थिरत व्यवस्था को और अधिक अस्थिर बनाने वाला तथ्य यह है कि इस क्षेत्र में परमाणु हथियारों वाले तीसरे देश चीन ने अब तक भारत के साथ किसी भी रणनीतिक स्थिरता चर्चा में शामिल होने से इनकार ही किया है।
    • चीन को भारत के साथ सैन्य गतिरोध में शामिल होने के अलावा भारत-पाकिस्तान संघर्ष में संलग्न होने से भी कोई परहेज नहीं किया है।
  • मिसाइलों की दुर्घटनावश फायरिंग की संभावना के साथ ये सभी तथ्य रणनीतिक स्थिरता की दृष्टि से क्षेत्र को विशेष रूप से संवेदनशील बनाते हैं।

बैलिस्टिक मिसाइल उड़ान परीक्षण पूर्व-अधिसूचना समझौता, 2005’ 

  • इस समझौते के तहत दोनों देशों को एक दूसरे को किसी भी स्थल या समुद्र से लॉन्च की गई सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के उड़ान परीक्षण पर अग्रिम सूचना देनी होगी।
    • परीक्षण से पहले उस देश को क्रमशः विमानन पायलटों और नाविकों को सचेत करने के लिये ‘नोटिस टू एयर मिशन’ (Notice to Air Missions- NOTAM) या ‘नेविगेशनल वार्निंग’ (Navigational Warning- NAVAREA) जारी करना अनिवार्य है।
  • इसके साथ ही परीक्षण करने वाले देश को यह सुनिश्चित करना होगा कि नियोजित प्रक्षेपवक्र (Planned Trajectory) का क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय सीमा (IB) या नियंत्रण रेखा (LOC) से क्रमशः 40 किमी. और 75 किमी. के अंदर न हो हैं।
    • नियोजित प्रक्षेपवक्र IB या LOC को पार नहीं करे और सीमा से कम से कम 40 किमी. की क्षैतिज दूरी बनाए रखे।
  • परीक्षण करने वाले देश को दूसरे देश को ‘‘पाँच दिन की लॉन्च विंडो के शुरू होने से कम से कम तीन दिन पहले सूचित करना होगा जिसके भीतर वह किसी भी स्थल या समुद्र से लॉन्च की जाने वाली सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल के उड़ान परीक्षण करने का इरादा रखता है।’’
  • पूर्व-अधिसूचना को ‘‘संबंधित विदेशी कार्यालयों और उच्चायोगों के माध्यम से अवगत कराया जाना चाहिये।’’

आगे की राह

  • द्विपक्षीय वार्ता तंत्र का पुनरुद्धार: भारत-पाकिस्तान संबंधों की प्रतिकूल, परमाणु-सशस्त्र, संकटपूर्ण स्थित और विश्वास की कमी को देखते हुए विशेष रूप से हाल की घटना के परिप्रेक्ष्य में दोनों देशों को परमाणु और पारंपरिक विश्वास निर्माण उपायों पर विशेषज्ञ स्तर की वार्ताओं को पुनर्जीवित करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • मौजूदा तंत्रों और समझौतों को अद्यतन करना: भारत और पाकिस्तान को संकट की अवधि और शांतिकाल के दौरान संवेदनशील सूचनाओं को संप्रेषित करने हेतु तत्काल एक द्रुत तंत्र की आवश्यकता है क्योंकि दोनों देश शांतिकाल से संकट की ओर त्वरित संक्रमण कर सकने में सक्षम हैं।
    • इसके अलावा पूर्व-अधिसूचना व्यवस्था में क्रूज मिसाइलों को भी शामिल करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में ये दोनों देशों के शस्त्रागार की अभिन्न अंग हैं।
  • NRRCs जैसे तंत्र की स्थापना: भारत और पाकिस्तान को शीत युद्ध के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ के बीच स्थापित ‘परमाणु जोखिम न्यूनीकरण केंद्र’ (Nuclear Risk Reduction Centres- NRRCs) जैसा तंत्र स्थापित करने पर विचार करना चाहिये।
    • NRRCs का प्राथमिक उद्देश्य संदेशों के समय पर संचार हेतु एक संरचित तंत्र स्थापित करना है और पहले से समर्थित CBMs के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर जोखिम में कमी लाना है।
    • ऐसा तंत्र ‘स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) की तरह कार्य कर सकता है जिसने सिंधु जल संधि से उत्पन्न कई विवादों का समाधान प्रस्तुत किया है।
  • सूचना स्पष्टीकरण केंद्र: रणनीतिक क्षेत्र में कुछ गलत धारणाओं और अस्पष्टताओं को समाधान या स्पष्टीकरण हेतु जोखिम न्यूनीकरण केंद्रों (Risk Reduction Centres For Resolution Or Clarification) द्वारा सुलझाया जा सकता है।
    • ऐसा एक निकाय अन्य बातों के साथ-साथ नियमित रूप से संदेशों का आदान-प्रदान कर सकता है, समय पर स्पष्टीकरण प्रदान कर सकता है और समझौतों के अनुपालन की समीक्षा कर सकता है।
    • सोशल मीडिया और 24-आर न्यूज़ के युग में ईमानदार गलतियाँ या अप्रत्याशित दुर्घटनाएँ विशेष रूप से समय पर स्पष्टीकरण के अभाव में सैन्य गतिरोध में तब्दील हो सकती हैं।
  • एक उत्तरदायी परमाणु शक्ति के रूप में अपनी स्थिति को बनाए रखना: एक उत्तरदायी परमाणु शक्ति होने की भारत की वैश्विक छवि दशकों के संयमित शब्दों और विचारशील कार्रवाई से निर्मित हुई है। हाल की घटना ने इस प्रतिष्ठा को आघात पहुँचाया है।
    • भारत को वर्ष 2016 में मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime) का सदस्य बनाया गया जो एक विश्वसनीय रक्षा भागीदार के रूप में भारत की स्थिति की प्रमुख शक्तियों द्वारा स्वीकृति है और इस बात की पुष्टि करता है कि भारत अपनी शक्तियों के प्रबंधन एवं वैश्विक सुरक्षा में योगदान करने में सक्षम है।
      • भारत और अधिक मिसाइल प्रणालियों का विकास कर रहा है जिसमें हाइपरसोनिक संस्करण भी शामिल है। दुर्घटनाओं से बचने के लिये ऐसी किसी भी मिसाइल का संचालन और प्रक्षेपण नियंत्रण एवं संतुलन के साथ अत्यधिक विनियमित होता है।
    • भारत को परमाणु और अन्य सैन्य संपत्तियों को संभालने की अपनी क्षमता के बारे में किसी भी संदेह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़नी चाहिये। भारत के प्रति अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विश्वास बहाल करने के लिये कड़े कदम उठाए जाने चाहिये।
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