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रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की क्या है कारण? - श्रीनारद मीडिया

रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की क्या है कारण?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

गर्मी सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ रही है. पिछले दो महीने में पश्चिमी राजस्थान और महाराष्ट्र के विदर्भ में अधिकतम तामपान 40 डिग्री से 45 डिग्री सेल्सियस दर्ज की गई. वहीं मौसम विज्ञानिकों की मानें तो आने वाले दिनों में राजधानी दिल्ली में 46 डिग्री सेल्सियस तक तामपान होने की संभवना है. IMD के मुताबिक मार्च में इस बार गर्मी ने 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. मार्च 2022 में 1901 के बाद सबसे अधिक गर्मी थी. IMD का कहना है कि मार्च माह में अधिकतम तामपान 31.24 डिग्री के सामान्य के मुकाबले 32.65 डिग्री सेल्सियस था. हैरान करने वाली बात यह है कि गर्मियों की शुरुआत में ही चार हीटवेव देखी जा चुकी है. आने वाले समय में भी राहत की उम्मीद नहीं है.

क्या है हीटवेव (What is Heatwave)

Heat Wave in IndiaTWC

हीटवेव मौसम संबंधी एक ऐसी तकनीकी भाषा है जो सबसे अधिक गर्म दिनों को परभाषित करती है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) हीटवेव की घोषणा करता है. जब अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में 40 डिग्री सेल्सियस, तटीय इलाकों में 37 डिग्री सेल्सियस, और पहाड़ी इलाकों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.

मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो एक हीटवेव तब घोषित की जाती है जब अधिकतम तामपान सामान्य से 4.5 डिग्री सेल्सियस और 6.4 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ जाता है. वहीं जब अधिकतम तामपान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाता है तब लू की घोषणा कर दी जाती है.

बता दें कि हीटवेव 4 से 10 दिनों के बीच और कभी कभी अधिक समय तक रह सकती है. मई में हीटवेव की अवधि अप्रैल और जून के मुकाबले अधिक लंबी होती है. मुख्यतः बारिश न होना भी एक वजह है.

आखिर इतनी गर्मी क्यों?

इस साल मार्च और अप्रैल के इतने गर्म होने के कई कारण हैं. समय से पहले गर्मियों की शुरुआत, लंबी अवधि तक हीटवेव का रहना, समय समय पर बारिश का न होना. मार्च के बाद देश के कई क्षेत्रों में सामान्य रूप से हल्की-तीव्रता वाली बारिश, ओलावृष्टि और बिजली गरजने वाली वर्षा नदारद रही.

मौसम विभाग के मुताबिक भारत में बारिश में करीब 72 प्रतिशत कमी दर्ज की गई. वहीं देश के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में यह कमी बढ़कर 89 फीसदी तक हो गई थी. पिछले कुछ दशकों पर नज़र डालें भारत में गर्मी के दौरान अधिकतम तापमान बढ़ता ही जा रहा है. हर 10 साल में लू के दिनों में बेतहाशा बढ़ोतरी देखने को मिली है. आकड़ों के मुताबिक यह 1981-90 के बीच 413 थे. जबकि 2001-2010 के बीच यह 575 हो गए. वहीं 2011-2020 के बीच लू के दिन बढ़कर 600 हो गए.

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक मृत्युजय महापात्र ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो मार्च महीने में हीटवेव पहले भी आई है. लेकिन इस बार इसकी अवधि बड़ी थी और यह लगभग दो हफ़्तों तक जारी रहा. इस तरह इसकी आवृति भी बढ़ गई.  

जलवायु परिवर्तन भी अधिकतम तामपान बढ़ने का मुख्य कारण है. कोट्टायम के इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज स्टडीज के डायरेक्टर का कहना है कि सामान्य से अधिकतम तामपान में बढ़ोतरी की एक वजह स्थानीय मौसम की स्थिति पर भी निर्भर करता है. इसके अलावा अधिक कंक्रीट का इस्तेमाल, पेड़ों की ज्यादा कटाई के कारण भी ऐसा होता है.

ग्लोबल वार्मिंग ही सिर्फ अधिक तामपान की वजह नहीं है. हमारे रहने सहने के तरीके भी इस पर बहुत निर्भर करते हैं. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हीटवेब की सघनता, आवृति और अवधि पर असर करता है. जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी के अलावा कोई और समाधान नहीं है.

आने वाले दिनों में भी नहीं मिलेगी राहत 

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक आने वाले समय में भी हीटवेव के दिन और उसकी अवधि बढ़ेगी. जहां हम दिन में अधिक तामपान देख रहे हैं. वहीं रात में भी गर्म रहेगा मौसम.

मतलब साफ़ है गर्मी कम होने के आसार अभी कम होते नहीं दिख रहे हैं. रिपोर्टों की मानें तो राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, मध्य प्रदेश, विदर्भ, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा को कम से कम 1 मई तक गर्म दिनों के लिए तैयार रहना चाहिए. 1 मई तक अधिकतम तापमान में मामूली गिरावट से पहले 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की संभावना है.

हालांकि, बिहार और छत्तीसगढ़ में गर्मी की लहर 30 अप्रैल के बाद कम हो जाएगी. वहीं दूसरी ओर, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में मई के पहले सप्ताह में तापमान बढ़ सकता है.

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