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खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच क्या संबंध है? - श्रीनारद मीडिया

खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच क्या संबंध है?

खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच क्या संबंध है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक विशाल जनसंख्या और सीमित संसाधनों के कारण, भारत के लिये खाद्य सुरक्षा (Food security) लंबे समय से चिंता का एक विषय रही है। सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य तक पहुँच को सभी नागरिकों के लिये एक मूल अधिकार माना गया है और क्रमिक सरकारों ने खाद्य की उपलब्धता और वहनीयता सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न नीतियाँ लागू की हैं।

  • हालाँकि, हाल के वर्षों में खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच का संबंध अधिक प्रकट हुआ है। जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की भेद्यता, खाद्य आयात पर इसकी निर्भरता और खाद्य संबंधी संघर्षों के बढ़ते खतरे ने देश की खाद्य सुरक्षा को लेकर खतरे की घंटी बजा दी है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और खाद्य तक पहुँच के बीच के संबंध को तब अत्यंत महत्त्व प्राप्त हुआ जब वर्ष 2020 में नॉर्वे की नोबेल समिति ने ‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’ (World Food Program) को भुखमरी दूर करने के उसके प्रयासों को चिह्नित करते हुए नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया। इस अवसर पर समिति ने भूख, शांति और संघर्ष के बीच के संबंध को विशेष रूप से चिह्नित किया।
  • खाद्य सुरक्षा की कमी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये कई तरह के खतरों में योगदान कर सकती है, जिसमें नागरिक अशांति, राजनीतिक अस्थिरता और विभिन्न संघर्ष शामिल हैं। इस संदर्भ में, भारत में खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच के संबंध तथा देश की खाद्य प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक उपायों पर विचार करना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

भारत के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • आबादी की पोषण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करना:
    • भारत एक ऐसी बड़ी आबादी का घर है जो कुपोषित या अल्पपोषित (malnourished or undernourished) है, जो उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास को प्रभावित करता है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का अर्थ यह होगा कि लोगों की अपनी आहार संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पौष्टिक खाद्य तक पहुँच होगी।
      • वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक (Global Food Security Index) 2022 के अनुसार, भारत में अल्पपोषण का प्रसार 16.3% है। इसके अलावा, भारत में 30.9% बच्चे स्टंटिंग (stunting) से ग्रस्त हैं, 33.4% कम वजन रखते हैं और 3.8% अत्यधिक मोटे (obese) हैं।
      • मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) 2021-22 के अनुसार, मानव विकास सूचकांक (Human Development Index- HDI) में भारत की रैंकिंग वर्ष 2020 में 130 से फिसलकर वर्ष 2022 में 132 हो गई है।
  • आर्थिक विकास को समर्थन:
    • कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो भारत की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान देता है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करके, सरकार किसानों का समर्थन कर सकती है और उनकी आय को बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक विकास को गति देने में मदद मिल सकती है।
      • भारत द्वारा अपने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये कृषि की बेहद अहम भूमिका है।
      • जहाँ भारत की 70% से अधिक आबादी कृषि संबंधी गतिविधियों से संलग्न है, यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ का निर्माण करती है।
  • निर्धनता कम करना:
    • खाद्य सुरक्षा निर्धनता स्तर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। किफायती/वहनीय और पौष्टिक खाद्य तक पहुँच प्रदान करने से लोग अपने खर्चों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं, अपनी स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम कर सकते हैं और अपने जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं।
      • वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI) 2022 के अनुसार, भारत में ही गरीबों की सबसे बड़ी आबादी मौजूद है (22.8 करोड़), जिसके बाद दूसरा स्थान नाइजीरिया का है (9.6 करोड़)।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना:
    • भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खाद्य सुरक्षा भी आवश्यक है। एक स्थिर खाद्य आपूर्ति सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता पर अंकुश लगा सकती है, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
  • जलवायु परिवर्तन से मुक़ाबला:
    • जलवायु परिवर्तन भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा है। सतत्/संवहनीय कृषि अभ्यासों को अपनाकर और जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों में निवेश कर, भारत बदलती जलवायु के प्रति बेहतर अनुकूलन प्राप्त कर सकता है तथा अपनी आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
      • अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के इकोनॉमिक रिसर्च सर्विस के GFA-33 द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन (International Food Security Assessment, 2022-2032) इंगित करता है कि भारत की विशाल आबादी का खाद्य असुरक्षा प्रवृत्तियों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अनुमान किया गया है कि वर्ष 2022-23 के दौरान भारत में लगभग 333.5 मिलियन लोग प्रभावित होंगे।
      • अगले दशक तक, भारत में खाद्य-असुरक्षित लोगों की संख्या घटकर 24.7 मिलियन हो जाने का अनुमान है।

संबंधित पहलें

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA) 2013:
    • यह गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिये खाद्यान्न पर सब्सिडी देकर किफायती एवं गुणवत्तापूर्ण खाद्य तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission):
    • इसे चावल, गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि के लिये क्षेत्र विस्तार और उत्पादकता वृद्धि हस्तक्षेपों के माध्यम से खाद्य उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिये केंद्रीय क्षेत्रक योजना (CSS) के रूप में वर्ष 2007 में लॉन्च किया गया था।
  • राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) प्लेटफॉर्म:
    • यह किसानों के लिये भौगोलिक सीमाओं के बिना अपने उत्पादों का व्यापार हेतु एक ऑनलाइन बाज़ार है।
  • राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (National Food Processing Mission):
    • कृषि उत्पादों के कुशल उपयोग और कटाई-पश्चात क्षति (post-harvest losses) को कम करने के लिये कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन की शुरुआत की है।
  • अन्य नीतियाँ:
    • कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
    • राष्ट्रीय बागवानी मिशन (National Horticulture Mission)

भारत में खाद्य सुरक्षा से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • अपर्याप्त आधारभूत संरचना:
    • दुर्गम सड़कों, आधुनिक भंडारण तकनीकों की कमी और ऋण तक सीमित पहुँच जैसे अपर्याप्त आधारभूत संरचना के कारण किसानों के लिये अपनी उपज को बाज़ार तक पहुँचाना और उन्हें ठीक से भंडारित करना कठिन हो जाता है। इससे किसानों के लिये उपज की अधिक क्षति और कम लाभ की स्थिति बनती है।
  • अनुपयुक्त कृषि अभ्यास:
    • अत्यधिक खेती (over-cultivation), कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग एवं अनुचित सिंचाई तकनीकों जैसे अनुपयुक्त कृषि अभ्यासों के कारण मृदा की उर्वरता में कमी आई है और फसल की पैदावार कम हुई है। यह खाद्य उत्पादन और उपलब्धता को प्रभावित करता है।
  • चरम मौसम दशाएँ:
    • जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम दशाएँ (extreme weather conditions) भी फसल विफलता और खाद्य की कमी का कारण बनी हैं। बाढ़, सूखा और ग्रीष्म लहरों (heatwaves) की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ती जा रही है, जो खाद्य उत्पादन को प्रभावित करती है और खाद्य कीमतों में वृद्धि करती है।
  • अक्षम आपूर्ति शृंखला नेटवर्क:
    • अपर्याप्त परिवहन, भंडारण और वितरण सुविधाओं सहित अक्षम आपूर्ति शृंखला नेटवर्क भी भारत में खाद्य असुरक्षा में योगदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं के लिये उच्च मूल्यों और किसानों के लिये कम लाभ की स्थिति बनती है।
  • कमज़ोर बाज़ार अवसंरचना:
    • बाज़ार सूचना की कमी, बाज़ार की कम पारदर्शिता और बाज़ारों तक सीमित पहुँच सहित कमज़ोर बाज़ार अवसंरचना भी भारत की खाद्य असुरक्षा में योगदान करती है।
  • खंडित भू-जोत:
    • खंडित भू-जोत (Fragmented Landholdings), जहाँ किसान भूमि के छोटे और इधर-उधर बिखरे भूखंड रखते हैं, आधुनिक कृषि अभ्यासों और तकनीकों को अपनाना कठिन बनाते हैं। यह फिर खाद्य उत्पादन और उपलब्धता को प्रभावित करता है।

आगे की राह

  • कृषि उत्पादन प्रणाली और अनुसंधान में निवेश:
    • सरकार को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये आधुनिक सिंचाई प्रणाली, कृषि अनुसंधान और उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों के विकास में निवेश करना चाहिये।
  • शीघ्र खराब होने योग्य पण्यों के लिये भंडारण सुविधाओं में सुधार:
    • कटाई-पश्चात क्षति को रोकने के लिये सरकार को पर्याप्त भंडारण सुविधाएँ विकसित करनी चाहिये और वर्ष भर खाद्य की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • कुशल परिवहन नेटवर्क प्रदान करना:
    • देश भर में खाद्य उत्पादों का समय पर वितरण सुनिश्चित करने के लिये सरकार को देश भर में परिवहन नेटवर्क के सुधार और विकास में निवेश करना चाहिये।
  • आधुनिक कृषि तकनीकों का अभ्यास:
    • सरकार को किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान चलाना चाहिये जो फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं और उनकी आय में सुधार कर सकते हैं।
  • कृषि विकास को प्राथमिकता देना:
    • सरकार को बेहतर बाज़ार अवसंरचना, कुशल परिवहन नेटवर्क और खाद्य उत्पादों के लिये बेहतर भंडारण सुविधाओं में निवेश के रूप में कृषि विकास को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना:
    • सरकार को कृषि उत्पादकता में सुधार और खाद्य उत्पादों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
  • एक आरंभिक चेतावनी प्रणाली का निर्माण करना:
    • सरकार को खाद्य की कमी के व्यापक होने से पहले ही उसका पता लगा सकने और कार्रवाई करने के लिये एक आरंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करनी चाहिये।
  • सतत् कृषि अभ्यासों को प्रोत्साहित करना:
    • सरकार को सतत् कृषि अभ्यासों (sustainable agriculture practices) को बढ़ावा देना चाहिये जो मृदा के स्वास्थ्य को बनाए रखने और हानिकारक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उपयोग को कम करने में योगदान कर सकेंगे।
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