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शांतिनिकेतन को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का क्या महत्त्व है? - श्रीनारद मीडिया

शांतिनिकेतन को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का क्या महत्त्व है?

शांतिनिकेतन को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित करने का क्या महत्त्व है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

  • शांतिनिकेतन, जो पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले में स्थित है, को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था।
    • वर्ष 2010 से ही शांतिनिकेतन को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दिलाने के प्रयास चल रहे हैं। शांतिनिकेतन को यूनेस्को द्वारा भारत के 41वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है।

शांतिनिकेतन की लोकप्रियता का कारण:

  • ऐतिहासिक महत्त्व: वर्ष 1862 में रबींद्रनाथ टैगोर के पिता देबेंद्रनाथ टैगोर ने इस प्राकृतिक परिदृश्य को देखा और शांतिनिकेतन नामक एक घर का निर्माण करके एक आश्रम स्थापित करने का निर्णय लिया, जिसका अर्थ है “शांति का निवास”।
  • नाम परिवर्तन: यह क्षेत्र, जिसे मूल रूप से भुबडांगा कहा जाता था, ध्यान के लिये अनुकूल वातावरण के कारण देबेंद्रनाथ टैगोर द्वारा इसका नाम बदलकर शांतिनिकेतन कर दिया गया।
  • शैक्षिक विरासत: वर्ष 1901 में रबींद्रनाथ टैगोर ने भूमि का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा चुना और ब्रह्मचर्य आश्रम मॉडल के आधार पर एक विद्यालय की स्थापना की। यही विद्यालय आगे चलकर विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ।
  • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल: संस्कृति मंत्रालय ने मानवीय मूल्यों, वास्तुकला, कला, नगर नियोजन और परिदृश्य डिज़ाइन में इसके महत्त्व पर बल देते हुए शांतिनिकेतन को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया।
  • पुरातत्त्व संरक्षण: भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) शांतिनिकेतन की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए कई संरचनाओं के जीर्णोद्धार में शामिल रहा है।

रबींद्रनाथ टैगोर:

  • प्रारंभिक जीवन:
    • रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता, भारत में एक प्रमुख बंगाली परिवार में हुआ था। वह तेरह बच्चों में सबसे छोटे थे
    • टैगोर बहुज्ञ थे और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट थे। वह न केवल एक कवि थे बल्कि एक दार्शनिक, संगीतकार, नाटककार, चित्रकार, शिक्षक और समाज सुधारक भी थे।
    • नोबेल पुरस्कार विजेता:
    • वर्ष 1913 में, रबींद्रनाथ टैगोर “गीतांजलि” (सॉन्ग ऑफरिंग्स) नामक कविताओं के संग्रह के लिये साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले एशियाई बने।
  • नाइटहुड:
    • वर्ष 1915 में रबींद्रनाथ टैगोर को ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम (British King George V) द्वारा नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया।
    • वर्ष 1919 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) के बाद उन्होंने नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।
  • राष्ट्रगान के रचयिता:
    • उन्होंने दो देशों के राष्ट्रगान लिखे“जन गण मन” (भारत का राष्ट्रगान) और “आमार शोनार बांग्ला” (बांग्लादेश का राष्ट्रगान)।
  • साहित्यिक कार्य:
    • उनकी साहित्यिक कृतियों में कविताएँ, लघु कथाएँ, उपन्यास, निबंध और नाटक शामिल हैं। उनके कुछ उल्लेखनीय कार्यों में “द होम एंड द वर्ल्ड,” “गोरा,” गीतांजलि, घारे-बैर, मानसी, बालका, सोनार तोरी और “काबुलीवाला” शामिल हैं।
    • उन्हें उनके गाने ‘एकला चलो रे (Ekla Chalo Re)’ के लिये भी याद किया जाता है।
  • समाज सुधारक:
    • वह सामाजिक सुधार, एकता, सद्भाव और सहिष्णुता के विचारों को बढ़ावा देने के समर्थक थे। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की आलोचना की तथा भारतीय स्वतंत्रता के लिये कार्य किया।
  • टैगोर का दर्शन:
    • उनके दर्शन ने मानवतावाद, आध्यात्मिकता और प्रकृति तथा मानवता के बीच संबंध के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
  • साहित्यिक शैली:
    • टैगोर की लेखन शैली को उनके गीतात्मक और दार्शनिक गुणों द्वारा चिह्नित किया गया, जो अक्सर प्रेम, प्रकृति तथा आध्यात्मिकता के विषयों की खोज करती थी।
  • मृत्यु:
    • 7 अगस्त, 1941 को साहित्य की समृद्ध विरासत और भारतीय एवं विश्व संस्कृति पर स्थायी प्रभाव छोड़ते हुए उनका निधन हो गया।

यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल:

 

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