भारत में कॉफी उत्पादन की स्थिति क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय कॉफी बोर्ड ने संकेत दिया है कि प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में उच्च तापमान, भारी वर्षा और भूस्खलन के कारण पौधों व बेरी को होने वाले नुकसान के कारण वर्ष 2024-25 के लिये भारत के कॉफी उत्पादन में उल्लेखनीय गिरावट देखी जा सकती है।

भारत में कॉफी उत्पादन की स्थिति क्या है?

  • भारत विश्व में छठा सबसे बड़ा कॉफी उत्पादक और पाँचवाँ सबसे बड़ा निर्यातक है, जो वैश्विक कॉफी उत्पादन का 3.14% उत्पादन करता है।
  • भारत में उत्पादित कॉफी का 70% निर्यात किया जाता है जबकि 30% घरेलू स्तर पर खपत किया जाता है। भारत अपनी उच्च गुणवत्ता वाली कॉफी किस्मों के लिये प्रसिद्ध है।
    • भारत ने 2023-24 फसल वर्ष में लगभग 3.6 लाख मीट्रिक टन ग्रीन कॉफी का उत्पादन किया।
  • भारत में कॉफी की किस्में: अरेबिका और रोबस्टा।
    • अरेबिका की विशेषताएँ: यह अधिक ऊँचाई पर उगाई जाती है और इसकी सुगंध के कारण इसका बाज़ार मूल्य अधिक होता है।
    • रोबस्टा की विशेषताएँ: इसे इसकी विशेष क्षमता हेतु जाना जाता है, जिसका विभिन्न मिश्रणों में प्रयोग किया जाता है।
  • कॉफी उत्पादन में गिरावट के कारण:
    • अप्रैल-मई की अवधि के दौरान लंबे समय तक अनावृष्टि और बढ़ते तापमान के कारण फूलों के गुच्छे झुलस गए तथा पिनहेड अवस्था में फल खराब हो गए।
    • जुलाई में भारी वर्षा के कारण गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हुईं, जैसे कि बेर का गिरना, डंठलों का सड़ना तथा बाढ़ के कारण पौधों में नमी की स्थिति उत्पन्न होना।
    • सकलेशपुर और वायनाड जैसे प्रमुख कॉफी  उत्पादक क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण पौधों तथा बागानों को भारी नुकसान हुआ है।
    • इन संयुक्त कारकों के कारण कॉफी बेल्ट में 15% से 20% तक की उपज का नुकसान होने का अनुमान है जबकि वास्तविक नुकसान संभवतः इससे कहीं ज़्यादा है।

कॉफी उत्पादन के विषय में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • इतिहास:
    • कॉफी की कृषि भारत में 17वीं शताब्दी के अंत में हुई थी; डच लोगों (जिन्होंने 17वीं शताब्दी में भारत के अधिकांश भाग पर कब्जा कर लिया था) ने पूरे देश में कॉफी की कृषि को फैलाने में सहायता की, लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेज़ों के आगमन के साथ ही व्यावसायिक कॉफी की कृषि पूरी तरह से फल-फूलने लगी।
  • परिचय:
    • भारत में कॉफी पश्चिमी और पूर्वी घाट के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में घनी प्राकृतिक छाया के नीचे उगाई जाती है।
      • यह विश्व के 25 जैव विविधता हॉटस्पॉट में से एक है।
    • कॉफी इस क्षेत्र की अद्वितीय जैव-विविधता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है तथा सुदूर पहाड़ी क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये भी ज़िम्मेदार है।
    • कॉफी ऑक्सीडेटिव क्षति से सुरक्षा प्रदान करती है, टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को कम करती है और आयु से संबंधित बीमारियों के जोखिम को कम करती है।
  • आवश्यक जलवायु परिस्थितियाँ:
    • जलवायु – ऊष्ण एवं आर्द्र; तापमान – 15°C से 28°C के मध्य; वर्षा – 150 से 250 सेमी.।
    • तुषार/पाला (Frost), हिमपात, 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान और तेज़ धूप कॉफी फसल के लिये अनुकूल नहीं होती है तथा सामान्यतः यह छायादार पेड़ों के नीचे उगाई जाती है।
      • बेरी के पकने के समय शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
    • इसके लिये स्थिर जल हानिकारक होता है और समुद्र तल से 600 से 1600 मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी ढलानों पर फसल उगाई जाती है।
    • बेहतर जल निकास प्रणाली, दोमट मिट्टी, जिसमें भरपूर मात्रा में ह्यूमस, आयरन और कैल्शियम जैसे खनिज पदार्थ होते हैं, कॉफी की कृषि के लिये आदर्श हैं।
  • कॉफी उत्पादन के लिये मृदा:
    • कॉफी कई प्रकार की मृदा में उगाई जा सकती है, लेकिन इसके लिये उपजाऊ ज्वालामुखीय लाल मृदा या गहरी रेतीली दोमट मृदा आदर्श मानी जाती है।
    • कॉफी के पेड़ों के विकास के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि मृदा उचित जल निकासी वाली हो जबकि अधिक चिकनी मृदा या रेतीली मृदा इसके लिये उपयुक्त नहीं है।
  • प्रमुख क्षेत्र:
    • भारत में कॉफी की पारंपरिक कृषि पश्चिमी घाट के कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में की जाती है।
      • कर्नाटक कुल कॉफी उत्पादन के लगभग 70% के साथ सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, उसके बाद केरल 23% उत्पादन करता है।
    • आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा के गैर-परंपरागत क्षेत्रों के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्यों में भी कॉफी की कृषि तेज़ी से बढ़ रही है।

जलवायु परिवर्तन पर कॉफी का प्रभाव:

  • कॉफी चक्र से होने वाले कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कॉफी उत्पादन का योगदान 40-80% है, जिसका मुख्य कारण मशीनीकरण और सूर्य प्रकाश की उपस्थिति तथा खेतों में गहन सिंचाई है। उर्वरक नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं और बड़ी मात्रा में प्राकृतिक गैस का उपयोग करके उत्पादित किये जाते हैं।
  • कॉफी तैयार करने के लिये जल को गर्म करने और गर्म रखने से कार्बन फुटप्रिंट पर प्रभाव पड़ता है तथा उच्च कार्बन विद्युत का उपयोग करने वाले क्षेत्रों में उत्सर्जन अधिक होता है।
  • कॉफी कैप्सूल कॉफी और जल के उपयोग को अनुकूलित करके अपशिष्ट व उत्सर्जन को कम कर सकते हैं, लेकिन यदि उनका पुनर्चक्रण नहीं किया जाता है, तो उनके निर्माण तथा निपटान से कार्बन फुटप्रिंट में वृद्धि होती है।

भारतीय कॉफी बोर्ड

  • यह कॉफी बोर्ड अधिनियम, 1942 की धारा (4) के तहत गठित एक वैधानिक संगठन है।
  • यह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय भारत सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
  • बोर्ड में अध्यक्ष सहित 33 सदस्य शामिल हैं, जो मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। इसका मुख्यालय बंगलूरू में है।
  • बोर्ड मुख्य रूप से अनुसंधान, विस्तार, विकास, बाज़ार आसूचना, बाहरी और आंतरिक संवर्द्धन तथा कल्याणकारी उपायों के माध्यम से अपनी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करता है।

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