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भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की स्थिति क्या है? - श्रीनारद मीडिया

भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की स्थिति क्या है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े निर्माता के रूप में विख्यात भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग को उत्पाद की गुणवत्ता और सुरक्षा से संबंधित महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।

  • दूषित और घटिया दवाओं की हाल की घटनाओं ने नियामक फ्रेमवर्क और उच्च गुणवत्ता वाले दवा उत्पादों को सुनिश्चित करने के लिये उद्योग की प्रतिबद्धता के बारे में चिंता जताई है।

गुणवत्ता नियंत्रण विफलताओं को उजागर करने वाली घटनाएँ:

  • जनवरी 2020 में जम्मू में 12 बच्चों की विषाक्त दवा खाने से मौत हो गई थी, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकोल पाया गया था, जिससे किडनी में ज़हर फैल गया था।
    • मार्च 2021 में Nycup सिरप में सक्रिय अवयवों का स्तर कम पाया गया।
  • अक्तूबर 2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक चिकित्सा उत्पाद चेतावनी जारी की, जिसके कारण पश्चिम अफ्रीकी देश गाम्बिया में बच्चों में तीव्र गुर्दे की क्षतिऔर 66 मौतों की सूचना है।
    • भारत स्थित मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के चार उत्पादों को अस्वीकार्य मात्रा में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल से विषाक्त पाया गया था। ये दोनों ही मनुष्यों के लिये विषाक्त हैं।
  • दिसंबर 2022 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (CDSCO) ने उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत के संबंध में जाँच शुरू की जो कथित रूप से भारतीय फर्म मैरियन बायोटेक द्वारा निर्मित एक खाँसी की दवा थी।
    • हाल ही में यूएस सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) ने कथित रूप से भारत से आयातित आई ड्रॉप्स से जुड़े दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया स्ट्रेन पर चिंता व्यक्त की थी।
    • हाल के नियामक निरीक्षणों से पता चला है कि 48 दवाएँ गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में विफल रही हैं।
    • उच्च रक्तचाप, एलर्जी और जीवाणु संक्रमण जैसी सामान्य स्थितियों के लिये उपयोग की जाने वाली 3% दवाएँ निम्नकोटि की पाई गईं।

भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की स्थिति:

  • परिचय:
    • भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता है। इसका फार्मास्युटिकल उद्योग सस्ती जेनेरिक दवाएँ प्रदान कर वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • फार्मास्युटिकल्स का एक प्रमुख निर्यातक होने के साथ इसका वर्तमान मूल्य USD 50 बिलियन का है जिसमें 200 से अधिक देशों में भारतीय फार्मा कंपनियों का निर्यात होता है।
      • यह वर्ष 2024 तक 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • भारत के फार्मा क्षेत्र के साथ प्रमुख चुनौतियाँ:
    • IPR नियमों का उल्लंघन:
      • भारतीय दवा कंपनियों को बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) कानूनों के उल्लंघन के आरोपों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के साथ कानूनी विवाद हुए हैं।
      • ऐसा ही एक मामला वर्ष 2014 में स्विस दवा कंपनी रॉश और भारतीय दवा निर्माता सिप्ला से जुड़ा था।
        • रॉश ने सिप्ला पर दवा के एक सामान्य संस्करण का उत्पादन करके कैंसर की दवा टार्सेवा (Tarceva) के लिये अपने पेटेंट का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। विवाद बढ़ गया, जिससे दोनों कंपनियों के बीच न्यायालयी लड़ाई छिड़ गई।
        • वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने रॉश के पक्ष में निर्णय सुनाया, जिसमें पुष्टि की गई कि सिप्ला ने वास्तव में रॉश के पेटेंट अधिकारों का उल्लंघन किया था। परिणामस्वरूप सिप्ला को रॉश को हर्जाना देने का आदेश दिया गया।
    • मूल्य निर्धारण और सामर्थ्य: भारत अपनी जेनेरिक दवा निर्माण क्षमताओं के लिये जाना जाता है, जिसने विश्व स्तर पर सस्ती स्वास्थ्य सेवा में योगदान दिया है।
      • हालाँकि भारत के अंदर फार्मास्यूटिकल्स का मूल्य निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है। दवा कंपनियों की लाभप्रदता के साथ सस्ती दवाओं की आवश्यकता को संतुलित करना एक नाजुक कार्य है।
    • स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना और पहुँच: भारत के मज़बूत फार्मास्यूटिकल उद्योग के बावजूद आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से हेतु स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच चुनौती बनी हुई है।
      • अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना, स्वास्थ्य सुविधाओं का असमान वितरण और कम स्वास्थ्य बीमा कवरेज जैसे मुद्दे दवाओं तक पहुँचने में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
  • संबंधित सरकारी पहलें:
    • फार्मास्यूटिकल्स हेतु उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना
    • बल्क ड्रग पार्क योजना का प्रसार
    • फार्मास्यूटिकल्स उद्योग योजना को मज़बूत करना

भारत के फार्मा क्षेत्र में सुधार हेतु पहल:

  • विधायी परिवर्तन और केंद्रीकृत डेटाबेस:
    • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 को संशोधित करने की आवश्यकता है साथ ही एक केंद्रीकृत ड्रग्स डेटाबेस की स्थापना निगरानी बढ़ा सकती है एवं सभी निर्माताओं हेतु प्रभावी विनियमन सुनिश्चित कर सकती है।
    • भारत में 36 क्षेत्रीय दवा नियामक हैं, उन्हें एक इकाई में समेकित करने से विनियामक निगरानी एवं प्रभाव नेटवर्क के जोखिम को कम किया जा सकता है।
    • साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता में स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु सभी राज्यों में सामान्य गुणवत्ता मानकों को लागू करना आवश्यक है।
  • प्रमाणन को प्रोत्साहित करना:
    • WHO के गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस सर्टिफिकेशन प्राप्त करने हेतु अधिक फार्मास्यूटिकल निर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित करने से उद्योग-व्यापी गुणवत्ता मानकों को बढ़ाया जा सकता है।
  • पारदर्शिता, विश्वसनीयता और जवाबदेही:
    • नियामक और उद्योग को भारत की दवा नियामक व्यवस्था को बढ़ाने हेतु सहयोग करना चाहिये, साथ ही इसे पारदर्शी, विश्वसनीय एवं वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना चाहिये।
      • दवा आवेदन मूल्यांकन, निरीक्षण रिकॉर्ड और उल्लंघन इतिहास के सार्वजनिक खुलासे के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।
    • भारतीय औषधि महानियंत्रक (DGCI) द्वारा 18 फार्मा कंपनियों का मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस रद्द करना एक सकारात्मक कदम है।
      • हालाँकि गुणवत्ता के मुद्दों के मूल कारणों को दूर करने के लिये अधिक व्यापक उपायों की आवश्यकता है।
  • सतत् विनिर्माण प्रथाओं पर ध्यान:

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