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जब सपने में दिल ने कही अपनी बात दिल से - श्रीनारद मीडिया

जब सपने में दिल ने कही अपनी बात दिल से

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विश्व हृदय दिवस के अवसर पर दिल की बानगी को बयां करती एक साहित्यिक सृजनात्मकता

✍️गणेश दत्त पाठक

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सोशल मीडिया पर विश्व हृदय दिवस पर तमाम पोस्ट को देखते देखते नींद लग गई। रात 9 बजे सो गया था। सपने में आया दिल, लाल रंग, तिकोना शरीर! …और अपनी बात बताई। अचानक रात 11 बजे मैं उठा तो लैपटॉप के की बोर्ड पर उंगलियां थिरकने लगी। सोचा कि दिल ने जो बातें कही, उसे सबसे साझा कर ही डालूं।

सपने में बोला दिल:

पाठक भाई, मैं दिल हूं। मेरे बहुआयामी स्वरूप और विविध प्रसंग हैं। अंग के रूप में हृदय के तौर पर पूरे शरीर को रक्त आपूर्ति के दायित्व का भार मेरे ऊपर। दिल के रूप में भावनाओं के समंदर का प्रतिबिंब भी मैं ही। परंतु हार्ट के रूप में जब मैं थोड़ा भी असहज होता हूं, तो लोग बदहवास हो जाते हैं। आज विश्व हृदय दिवस पर जबकि पूरा संसार मेरे पर मंथन करेगा। शोध की बाते होंगी, अनुसंधान का कारवां सजेगा, मुझे बेहतर बनाने के प्रयास पर चर्चा होगी। पर फिर भी मैं तो अपने कार्य में ही तल्लीन रहूंगा। क्योंकि मेरा रुकना, सब रुक जायेगा। बस दर्द एक बात का सताता हैं कि बातें तो खूब होती है लेकिन क्या कभी मुझे समझने का प्रयास भी किया जाएगा?

जरा सोचिए, कितना कष्ट होता हैं जब हार्ट रोग के नाम सुनते ही लोग दुखी हो जाते हैं, व्याकुल हो जाते हैं, एक अनिश्चितता के दामन में बंध जाते हैं। मुझे विधाता ने जो काम सौंपा है उससे भला मुझे फुरसत कहां? फिर भी मेरे प्रसंग में दुश्चिंताओ का ऐसा कलेवर मुझे प्रताड़ित करता है, व्यथित करता है, विचलित करता है।

मुझे बचाने, सहेजने के चक्कर में लोग चिकित्सा जगत की अंधेरी गलियों में गुम हो जाते हो, जो पैसे तुमने अपने बच्चों के भविष्य की बेहतरी के लिए मुश्किल से संजो रखे थे। उसे मेरी बेहतरी के लिए खर्च कर डालते हो। हमेशा डरे डरे सहमे सहमे से दिखते हो। ईसीजी, टीएमटी, ईको, एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी, बाईपास सर्जरी का लंबा खर्चील सफर।

आते हो तुम तनाव में और रक्तचाप मेरी हालत खराब कर देता है। और एक मधुमेह वह तो पूरा का पूरा छुपा रुस्तम। कुल मिलाकर चक्र ऐसा चल जाता हैं कि मेरी धमनियां भी जाम होने लगती है। मेरे काम में बंदिश का असर ऐसा होता है कि मुझे ही अपराधी ठहरा दिया जाता है। हार्ट अटैक नाम से मुझे नफरत सी होती है। मैं दिन रात काम करता रहा, रक्त की आपूर्ति करता रहा और पाप चढ़ा मेरे माथे!

मैं दिल, बस छोटी सी गुजारिश कर रहा हूं। 24 घंटे मैं भी काम में लगा रहता हूं। 17-18 घंटे आप भी काम करते हो। बस आधा घंटा तो मेरे लिए दे दो। उस आधे घंटे में थोड़ा टहल लो, थोड़ी स्वच्छ वायु भरी ऑक्सीजन मेरे लिए भी दे दो। कुछ देर योगा, प्राणायाम कर लो। तुम्हारा शरीर चलेगा तो मैं भी मस्त रहूंगा। बात बात पर बाइक या कार न उठाओ, कभी पैदल भी चल लिया करों। बार बार लिफ्ट के छलावे में न पड़ों, कभी कभी सीढ़ियों पर भी कदम रख लो। घर में वाशिंग मशीन तो है ही कभी कभी थोड़ा हाथ से कपड़ों को भी धो लो।

जंक फूड! अरे भाई! माना कि स्वाद अच्छा लगता है परंतु मेरे दुश्मन कोलेस्ट्रॉल का वह संगी ही है। नमक और चीनी, ये दोनों भी ठहरे हमारे दुश्मन। क्या मेरे लिए, अपनी खुशी, अपने परिवार की बेहतरी के लिए इनसे थोड़ा परहेज नहीं कर सकते क्या?

मैं तुम्हारा दिल यानी हृदय बुरा नही हूं। बस नियमित आधे घंटे का तुम्हारा व्यायाम, थोड़ी शारीरिक गतिशीलता और साग सब्जियों का सेवन, धूम्रपान से दूरी, अल्कोहल से बचाव मुझे बहुत मजबूत कर देगा।

इसलिए आज दुनिया दिल दिवस मना रही हैं तो मैंने भी सोचा अपनी व्यथा बता दूं। बाकी जो तुम्हारा फैसला….अचानक नींद खुल गई और सपना गायब हो गया।

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