राजनीति जब-जब लड़खड़ाती है, साहित्य ही सहारा देता है : अवधेश नारायण सिंह

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आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव का जीवन भारत और भारतीयता के बोध का सम्पूर्ण वाङ्मय है : प्रो. अरुण कुमार भगत

श्रीनारद मीडिया‚ पटना (बिहार)


“आचार्य श्रीरंजन जैसे साहित्य मनीषियों ने सदैव अपने लेखन और कर्म से साहित्य और साहित्यकारों को नवीन मार्ग का निर्देश किया है।” यह उद्गार व्यक्त किया अपने वक्तव्य में बिहार विधान परिषद् के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने। वे आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव स्मृति न्यास द्वारा पटना में आयोजित 95वीं जयंती समारोह और सम्मान अनुष्ठान में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे।

महिला चरखा समिति के लोकनायक जयप्रकाश भवन में आज आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और मंत्रोच्चारण के साथ हुई।  श्री अवधेश नारायण सिंह ने आगे कहा कि आज इस सभागार-रूपी पवित्र मंदिर में आकर बहुत खुशी हुई, क्योंकि यह लोकतंत्र के रक्षक जयप्रकाश नारायण जी से जुड़ा स्थल है। माननीय सभापति महोदय ने एक प्रसंग की चर्चा की, जिसमें राष्ट्रकवि दिनकर ने नेहरू जी से कहा था कि ‘राजनीति जब-जब लड़खड़ाती है, साहित्य ही सहारा देता है।

इस अवसर पर प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा संपादित और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘साहित्य और साहित्यकार सर्जक : आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव’ का लोकार्पण किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. अरुण कुमार भगत, माननीय सदस्य, बिहार लोकसेवा आयोग ने श्रीरंजन सूरिदेव के कृतित्व को याद करते हुए कहा कि आचार्य जी हिंदी के लब्धप्रतिष्ठ कवि कुशल गद्यकार और समर्थ संपादक थे। आचार्य जी के जीवन में रचनात्मकता त्रिवेणी का संगम दिखाई देता है। उनमें हिंदी, संस्कृत और प्राकृत तीनों भाषाओं की त्रिधारा के भी दर्शन होते हैं।उनके संपादन कौशल की चर्चा करते हुए प्रो भगत ने कहा कि उनका सम्पूर्ण जीवन खलिहान को साफ करने में निकल गया। प्रो. भगत ने आचार्य जी के जीवन को भारत और भारतीयता के बोध का सम्पूर्ण वाङ्मय बताया।

विशिष्ट अतिथि प्रो. गिरीश कुमार चौधरी, माननीय कुलपति, पटना विश्वविद्यालय ने आचार्य जी के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए इस बात का उल्लेख किया कि आज साहित्य के प्रति युवाओं का रुझान कम हुआ है। ऐसे कार्यक्रम युवाओं को साहित्य से दुबारा जोड़ने का प्रयास करेगा।

श्री देवेश कुमार, माननीय सदस्य, बिहार विधान परिषद् ने अपने उद्बोधन में भाषा में फूहड़पन पर चिंता जाहिर की और कहा कि बिहार में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की जरूरत है और इसके लिए परिवार से शुरुआत करते हुए वृहत् कार्यशालाओं की आवश्यकता है।

अंतिम वक्ता और इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ. किरण घई, पूर्व माननीय सदस्य, बिहार विधान परिषद् नें कहा कि आचार्य जी को कभी अवसादग्रस्त नहीं देखा गया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि साहित्यकार की कृति एक अक्षय संपदा होती है, जो कभी समाप्त नहीं होती। आचार्य जी न केवल एक साहित्यकार,बल्कि साहित्यकार गढ़नेवालों में से थे। प्रो. घई ने कहा कि बच्चों में साहित्यिक रुचि पैदा करना परिवार की जिम्मेदारी है।

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के सह-संयोजक गौरव रंजन ने किया।

आज के इस स्मृति-पर्व में आचार्य डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव स्मृति न्यास द्वारा 2021 के नौ साहित्यकार-पत्रकारों को ‘आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव सारस्वत सम्मान’ भी प्रदान किया गया, जिसमें पटना के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री मार्कण्डेय शारदेय, डॉ. कुणाल कुमार, डॉ. कैलाश प्रसाद सिंह स्वच्छंद, डॉ. मेहता नगेंद्र सिंह एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सहायक प्राध्यापक और युवा साहित्यकार डॉ. अशोक कुमार ज्योति सहित पटना के सुप्रसिद्ध पत्रकार श्री प्रवीण बागी, श्री राकेश प्रवीर, पटना के सुकवि श्री ज्योतिन्द्र मिश्र और सुप्रसिद्ध गायिका और नृत्यांगना डॉ. पल्लवी विश्वास को 2021 के ‘आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव सारस्वत सम्मान’ से सम्मानित किया गया।

कार्यक्रम का संचालन-संयोजन श्री अभिजित कश्यप ने किया। कार्यक्रम के सह-संयोजक श्री गौरव रंजन और शोभित सुमन थे। श्रीरंजन सूरिदेव के पुत्रद्वय श्री अगम रंजन एवं संगम रंजन और पुत्री श्रीमती अनुपमा रंजन और पुत्रवधू श्रीमती विभा रंजन ने अतिथियों का स्वागत-सत्कार किया।

 

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