Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
जहाँ अध्यक्ष का चुनाव ही चुनौती हो, वह भाजपा का मुकाबला कैसे करेगी? - श्रीनारद मीडिया

जहाँ अध्यक्ष का चुनाव ही चुनौती हो, वह भाजपा का मुकाबला कैसे करेगी?

जहाँ अध्यक्ष का चुनाव ही चुनौती हो, वह भाजपा का मुकाबला कैसे करेगी?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कांग्रेस में निर्मित संकट की स्थिति बाहर से जैसी दिखाई देती है, अंदरूनी तौर पर वास्तव में वह उससे भी गहरी है। इसके तीन कारण हैं। पहला यह कि पार्टी का जनाधार तेजी से घट रहा है और मतदाता उसमें भरोसा गंवा चुके हैं। चुनाव परिणामों में यही अविश्वास झलकता है। दूसरा यह कि पार्टी से युवा और वरिष्ठ दोनों तरह के नेताओं का पलायन निरंतर जारी है। और तीसरा यह कि वोटर तो छोड़िए, खुद पार्टी के मौजूदा नेतागण ही अपने शीर्ष नेतृत्व में भरोसा अब खो चुके हैं।

हाल ही में जी-23 के कुछ सदस्यों का पार्टी अध्यक्ष पद के निर्वाचन के लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों से जैसा टकराव हुआ, वह इस बात का और एक संकेत है कि मामला कितना गम्भीर हो चुका है। जी-23 नेताओं के द्वारा निर्वाचक-नामावली को सार्वजनिक करने की मांग की जा रही है। इस समूह को सुधारवादी कहा जाता है, जो पार्टी के पुराने वफादारों के साथ संघर्ष की मुद्रा में आ चुका है।

इससे पार्टी में वोटरों का विश्वास और घटेगा। उसकी भारत जोड़ो यात्रा को भी विभिन्न सिविल सोसायटी समूहों का समर्थन भले मिल रहा हो, लेकिन उससे कांग्रेस पार्टी का पुनरुत्थान नहीं हो सकता है। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद से अब तक 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से एक में भी कांग्रेस को जीत नहीं मिली है।

अलबत्ता वह तमिलनाडु, महाराष्ट्र और झारखंड में जरूर सरकार का हिस्सा रही, लेकिन सत्तारूढ़-गठबंधन में उसकी सहभागिता बहुत कम थी। लेकिन बात केवल यहीं तक ही सीमित नहीं थी कि कांग्रेस चुनाव हार रही है, समस्या यह है कि वह बुरी तरह से हार रही है। कुछ राज्यों में तो वह तीसरे या चौथे स्थान पर रही। 17 में से 12 राज्यों में उसका वोट-शेयर भी घट गया।

बड़े नेताओं के पलायन से भी पार्टी को गहरा झटका लगा है। बात केवल दो या तीन नेताओं की नहीं है, यह सूची बहुत लम्बी है। इनमें से कुछ तो ऐसे थे, जो दशकों से पार्टी से जुड़े थे। गुलाम नबी आजाद, कैप्टन अमरिंदर सिंह, कपिल सिब्बल जैसे वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। वहीं राहुल गांधी के भरोसेमंद माने जाने वाले युवा-तुर्क ज्योतिरादित्य सिंधिया, आरपीएन सिंह सहित कई ऐसे नेताओं ने भी कांग्रेस को विदा कह दिया, जो अतीत में मुख्यमंत्री या कैबिनेट मंत्री रह चुके थे।

ये ऐसे नेता थे, जो किसी मामूली कारण से पार्टी नहीं छोड़ सकते थे। उनका रोष कहीं गहरा था, जिसकी गांधी परिवार के द्वारा लम्बे समय से अनदेखी की जाती रही थी। वास्तव में आज लोकसभा में कांग्रेस के जितने सांसद हैं, उससे ज्यादा नेतागण बीते बरसों में कांग्रेस छोड़ चुके हैं। मानो इतना काफी नहीं था, तो अब पार्टी के मौजूदा नेताओं में तू-तू-मैं-मैं शुरू हो गई है। कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए होने जा रहे चुनाव की निर्वाचक नामावली को लेकर जी-23 के सदस्य नेतागण अड़ गए हैं।

एक तरफ तो कांग्रेस बड़े जोर-शोर से अपनी भारत जोड़ो यात्रा को लॉन्च करना चाहती है, वहीं दूसरी तरफ वह अपनी ही पार्टी को जोड़े रखने के लिए संघर्ष कर रही है। जिस तरह से कुछ कांग्रेस नेताओं ने गुलाम नबी आजाद पर हमला बोला है, उससे तो यही लगता है कि गांधी परिवार की खुशामद करने वाले आज भी पार्टी में अति-सक्रिय हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं दिखाई दे रहा है कि 2019 के बाद से पार्टी की क्या बुरी गत हो गई है।

आने वाले दिन तो पार्टी के लिए और चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं, क्योंकि उसे न केवल अपना नया अध्यक्ष चुनना है, बल्कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा से आमने-सामने की टक्कर भी लेनी है। यह तो तय है कि राहुल गांधी के फिर से अध्यक्ष बनने से पार्टी को फायदा नहीं होगा। न केवल भारतीय मतदाता उन्हें स्वीकार नहीं कर पाए हैं, बल्कि कांग्रेसियों के बीच भी उनकी स्वीकार्यता नहीं बन सकी है।

कांग्रेस छोड़कर जाने वाले सभी नेतागण पार्टी की बदहाली के लिए राहुल को ही दोषी करार देते हैं। वे राहुल की नेतृत्व-शैली से संतुष्ट नहीं हैं। लेकिन अगर कांग्रेस ने गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को अपना अध्यक्ष चुन लिया, तब भी हालात सुधरने नहीं वाले हैं। जिस पार्टी के लिए एक सर्वमान्य अध्यक्ष का निर्वाचन ही एक चुनौती बन गया हो, वह 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का मुकाबला कैसे कर सकेगी?

कांग्रेस के जी-23 समूह को सुधारवादी कहा जाता है, जो पार्टी के पुराने वफादारों के साथ कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर संघर्ष की मुद्रा में आ चुका है। इससे पार्टी में वोटरों का विश्वास और घटेगा।

कांग्रेस ऐसे लिफाफे की तरह लगने लगी है, जिस पर किसी का पता नहीं लिखा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माननीय गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद अनेक लोगों को लग रहा है कि पार्टी संकट में है। कांग्रेस से नेताओं का निरंतर पलायन हो रहा है और इससे मीडिया में अटकलों का दौर है। पार्टी के लिए शोकलेख लिखे जा रहे हैं। हाल के चुनावी नतीजों से मायूस कार्यकर्ताओं का मनोबल और गिर रहा है। वहीं सामान्य नागरिक और मतदाता- जिनमें से 20 प्रतिशत कांग्रेस को वोट देते हैं- निराश महसूस कर रहे हैं।

यह सच है कि प्रतिष्ठित नेताओं के इस तरह से पार्टी छोड़कर चले जाने से चीजें आसान नहीं होतीं। मुझे निजी तौर पर इसका खेद है। क्योंकि मैं तो यही चाहता कि मेरे मित्रगण पार्टी में बने रहते और उसे बेहतर बनाने के लिए संघर्ष करते। चूंकि उन कथित जी-23 नेताओं में मैं भी शामिल हूं, जिन्होंने पत्र लिखकर पार्टी में सुधारों की बात कही थी, इसलिए मैं यह कहना चाहता हूं कि उस पत्र में व्यक्त चिंताएं पार्टी के सदस्यों और शुभचिंतकों के मन में अनेक महीनों से थीं और वे चाहते थे कि पार्टी में नई ऊर्जा आए।

ये चिंताएं पार्टी की विचारधारा या मूल्यों को लेकर नहीं थीं, बल्कि पार्टी किस तरह से चलाई जा रही है, इस बारे में थीं। हम पार्टी को विभाजित या कमजोर नहीं करना चाहते, उसे मजबूत बनाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि आज भाजपा देश के साथ जो भी कर रही है, उसे कांग्रेस चुनौती दे सके।

हम किसी एक व्यक्ति के विरोध में नहीं थे, लेकिन यह जरूर चाहते थे कि पार्टी जिस तरह से समस्याओं का सामना करती है, उसमें सुधार लाए। कांग्रेस के साथ आज समस्या यह है कि अनेक आलोचकों को वह एक ऐसे लिफाफे की तरह लगने लगी है, जिस पर किसी का पता नहीं लिखा है। लेकिन इस सबके बावजूद आप कांग्रेस को खारिज नहीं कर सकते। क्योंकि आज भाजपा का कोई राष्ट्रीय विकल्प है ही नहीं।

देश की दूसरी पार्टियां एक या बहुत हुआ तो दो राज्यों तक सीमित हैं, जबकि कांग्रेस अखिल भारतीय प्रसार वाली पार्टी है। कांग्रेस की विचारधारा में समावेश की जो भावना है, उसकी आज देश के लोकतंत्र को जरूरत है। लेकिन पार्टी को देश के सामने स्पष्ट करना होगा कि वह भाजपा के विकल्प के रूप में क्या दे सकती है। साथ ही उसे बिना कोई देरी किए अपने भविष्य को सुरक्षित करने का उपाय भी तलाशना होगा।

आज पार्टी में शीर्ष पर नेतृत्व का जो शून्य है, उसका नकारात्मक असर पड़ा है। कांग्रेस कार्यसमिति ने पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की है। अध्यक्ष का निर्वाचन 19 अक्टूबर को होगा। कायदे से कार्यसमिति के कोई एक दर्जन खाली पदों के लिए भी चुनाव की घोषणा की जानी चाहिए थी।

केंद्र और राज्य की कांग्रेस कमेटियों से प्रतिनिधि-सदस्य अगर तय करते कि इन महत्वपूर्ण पदों पर कौन होगा तो इससे नेताओं को वैधता और स्पष्ट दिशानिर्देश मिलता। लेकिन एक नए अध्यक्ष का चुनाव भी कांग्रेस के पुनर्जीवन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम होगा। ब्रिटेन में जिस तरह से कंजर्वेटिव पार्टी में थेरेसा मे के बजाय 12 उम्मीदवारों में से बोरिस जॉनसन शीर्ष पर उभरकर आए थे और उसने दुनिया का ध्यान खींचा था, वैसा अगर कांग्रेस में हो तो इससे पार्टी के प्रति देश का ध्यान जाएगा।

आशा करता हूं कि अनेक उम्मीदवार आगे आकर अपनी दावेदारी को विचारार्थ सामने रखेंगे और पार्टी व देश के लिए अपने विज़न से अवगत कराएंगे। अनेक कांग्रेस समर्थक इस बात से निराश हुए हैं कि राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है और यह भी कहा है कि गांधी परिवार से भी कोई सदस्य उनकी जगह न ले।

इस मामले में निर्णय गांधी परिवार को ही लेना है, लेकिन एक लोकतंत्र में किसी भी पार्टी को स्वयं को वैसी स्थिति में नहीं लाना चाहिए, जिसमें उसे लगने लगे कि कोई एक परिवार ही उसका नेतृत्व कर सकता है। एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्वाचन चीजों को दुरुस्त करने का उचित तरीका होगा। पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की गहरी इच्छा है कि कोई नेता उनका मार्गदर्शन करे, जो कि पार्टी के पुनरुत्थान की नीति बनाते हुए देश के सामने ताजा एजेंडा रख सके।

नेतृत्व के मौजूदा संकट के समाप्त होने से कार्यकर्ताओं को अपनी बात शीर्ष तक पहुंचाने में मदद मिलेगी, जो उनकी भावनाओं को आम जनता तक पहुंचा सकेगा। मुझे विश्वास है कि कांग्रेस इस अंधकार भरे दौर से उभरेगी। वह कांग्रेस के लिए एक नई सुबह होगी, और देश के लिए भी, जिसका हम फिर से नेतृत्व करने की आशा संजोए हुए हैं।

एक लोकतंत्र में किसी पार्टी को स्वयं को वैसी स्थिति में नहीं लाना चाहिए, जिसमें उसे लगने लगे कि एक परिवार ही उसका नेतृत्व कर सकता है। निष्पक्ष निर्वाचन ही चीजों को दुरुस्त करने का तरीका होगा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!