एक रहेंगे सेफ रहेंगे से आगे बढ़कर कौन जात हो?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राहुल गांधी संसद के भीतर, संसद के बाहर, देश के किसी भी कोने में अपना भाषण जाति की जनगणना को लेकर ही देते हैं। विदेश के दौरे पर भी उनका भाषण जाति की जनगणना से भरा होता है। ब्राउस यूनिवर्सिटी के कार्यक्रम में भी राहुल गांधी ने इसकी बात की। राहुल के इतर इस मुद्दे को तेजस्वी यादव ने भी उठाया। नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में रहते हुए जाति की जनगणना करने वाला राज्य बिहार बना।

लेकिन राहुल गांधी इस मुद्दे को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले गए। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने जाति जनगणना कराई। तेलंगाना में भी जाति जनगणना हो चुकी है। राहुल गांधी बार बार कहते रहे हैं कि कास्ट सेंशस भारत का एक्सरे है। ओबीसी कितने हैं, बाकी सब कितने हैं। सबके आंकड़े सामने आएंगे, तभी देश सबकी भागीदारी देकर आगे बढ़ेगा।

जाति जनगणना क्या है

अंग्रेजी राज में 1881 से 1931 तक जनगणना में जाति गिनी जाती थी। आजादी के बाद जातिगत विभाजन बढ़ने डर से 1951 से इसे बंद कर दिया गया। इसके बाद जनगणना के साथ एससी-एसटी की जातिगत जानकारी दर्ज और प्रकाशित होती रही। 2011 म यूपाए सरकार के दूसर कार्यकाल में 25 करोड़ शहरा और ग्रामीण परिवारों का सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना सर्वे हुआ। 2012 के अंत तक डेटा मिला। 2013 तक प्रोसेसिंग नहीं हो पाई। 2014 में मोदी सरकार बनी। ग्रामीण भारत का डेटा जारी हुआ, पर जाति का नहीं। 2018 में सरकार ने कहा, डेटा में ‘गलतियां’ हैं। फिर 2021 में सुप्रीम कोर्ट में भी यही बात कही।

कैसे ये एक राजनीतिक मुद्दा बना

मंडल आयोग (1980): इस आयोग ने केंद्र सरकार की नौकरियों में OBC को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की। लेकिन सटीक जातिगत डेटा की कमी से OBC की जनसंख्या का सही अनुमान लगाना मुश्किल था।

SECC 2011: यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराई, लेकिन इसका जातिगत डेटा आज तक पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किया गया।

राज्यों के प्रयास: बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों ने खुद अपने जातिगत सर्वे करवाए। बिहार के 2023 के सर्वे के अनुसार, OBC और अत्यंत पिछड़े वर्ग (EBC) राज्य की कुल आबादी का 63% से अधिक है।

जनगणना में क्या चुनौतियां हैं

वर्गीकरण बड़ी चुनौती है। जातियां बहुत हैं। हजारों उप जातियां, अलग-अलग पहचान और क्षेत्र विशिष्ट नाम हैं। इसके सटीक प्रणाली बनानी जरूरी है। जनगणना फॉर्म को जा जाति, समानार्थक नामों, गोत्र, उपनाम और वंश नाम अंतर के लिए डिजाइन करना होगा। एक चिंता जाति पह पुष्ट करने की है। राजनीतिक हेरफेर के जोखिम भी हैं। निगरान का मजबूत तंत्र बनाना चाहिए। एक्सपर्ट का कहना है कि जनगणना कराने में करीब एक साल का वक्त लगेगा। इसके बाद देश में परिसीमन का काम शुरू होगा। जनगणना में जाति का कॉलम पहले भी होता था लेकिन यह वैकल्पिक था। अब जनगणना के वक्त जाति वाला कॉलम अनिवार्य वाले कॉलम में आ जाएगा।

जनगणना के बाद क्या बदलाव देखने को मिल सकता है

जानकारों का मानना है कि अगर जातिगत गणना हुई तो OBC को 27% कोटा बढ़ाने की मांग उठेगी। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 2019 में केंद्र के 10% आरक्षण देने के बाद से ही इसकी मांग की जा रही है। आरक्षण की सीमा 50% इसी कारण तय की गई है, क्योंकि सरकार के पास 1931 के बाद जातिगत गणना के कोई आंकड़े नहीं है। जातिगत गणना होने के बाद ये सीमा हट जाएगी। इसके लिए कानूनी अड़चन भी समाप्त हो जाएगा। कांग्रेस पहले ही आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाने की मांग कर चुकी है।

किन किन राज्यों में हो चुका है सर्वे

बिहार में महागठबंधन की सरकार के दौरान 2023 में जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए गए थे। उस वक्त नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और आरजेडी की राज्य में सरकार थी। बाद में तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों में जाति आधारित सर्वे भी कराए गए हैं।

पहलगाम हमले के बाद जब लोग देश के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं, ठीक इसी बीच यह फैसला सोची समझी रणनीति है। इससे पाकिस्तान के खिलाफ एक्शन की मांग के समानांतर नई चर्चा छेड़कर सेना और सरकार को दबाव से उबारना है।

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