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जिसका डर था बेदर्दी वहीं बात हो गयी-विनोद-वाणी - श्रीनारद मीडिया

जिसका डर था बेदर्दी वहीं बात हो गयी-विनोद-वाणी

जिसका डर था बेदर्दी वहीं बात हो गयी-विनोद-वाणी

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मित्रों…..कटू होने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। कल 7April को विधान-परिषद् का रिजल्ट आया।कुछ बौद्धिक लोग कह रहे हैं कि सिवान से भाजपा हार गई जो गलत है।भाजपा तो तीसरे नम्बर पर है भाई! हारा है निर्दलीय प्रत्याशी।मैं भी भाजपा का ही समर्थक हूँ इसलिए आत्म -मंथन जरूरी है और आत्म-मंथन की पहली बात यहीं है कि अब भाजपा को चुनावी-मंथन की नहीं बल्कि “संगठनात्मक आपरेशन” की जरूरत है सिवान में।

परिस्थितिवश कहना पड रहा है कि सिवान भाजपा में अर्थतंत्र और इवेंट मैनेजमेंट के बल पर कुछ जातिवादी और अवसरवादी नेता आ ग ए हैं जिन्हें न पार्टी से मतलब है न कार्यकर्ता से न अपनी प्रतिष्ठा से।ऐसे नेता हमारे “देवतुल्य कार्यकर्ताओ” पर दानवी अट्टहास कर रहे हैं।उनके निष्ठा का दोहन और विश्वास का चिरहरण कर रहे हैं।ये नेता अपने2जातियों का स्वयंभू ठेकेदार बनकर अपनी ही पार्टी को ब्लैकमेल कर रहे हैं।ये नेता अपना व्यक्तिगत नफा-नुकसान देखकर अपनी राजनीति को बेंच रहे है।

राजनीति इनका व्यापार है, पार्टी दुकान है,जाति और पैसा पूंजी है,सिद्धांत इनका माल है और कार्यकर्ता बिना बिना पगार के “भक्त सेल्समैन”।परन्तु ऐसे नेताओं को यह पता नहीं कि भाजपा का कार्यकर्ता “देवतुल्य ” है और देवता(भगवान) का व्यापार नहीं होता।ऐसे नेता भाजपा के गद्दार हैं।ऐसे में अब सिवान भाजपा को “आपरेशन क्लीन” चलाना चाहिए।वरना ऐसे नेता भाजपा की आत्मा तक को बेंच देगे।विगत चुनाव में ऐसे नेताओं का चरित्र संदिग्ध है।

चुनाव में साथ-साथ मंच साझा करते थे परन्तु “मैं बडा तो मैं बडा”, और “तू चोर मैं सिपाही ” वाला घटिया खेल भी खेल रहे थे और कार्यकर्ताओ को बेवकूफ भी बना रहे थे।लक्ष्य NDA नहीं अपनी-अपनी राजनीति थी।भाजपा में नेता बनने का नैतिक अधिकार सिर्फ़ कार्यकर्ताओ का था मगर अफसोस—-!

इसलिए कार्यकर्ताओ का आह्वान करता हूँ कि-“अधिकार पाकर मौन रहना यह महा-दुष्कर्म है,न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है”।कार्यकर्ता साथियों!पहचानो ऐसे गिरगिटिया नेताओं और इनके नापाक साज़िशों को और ऐसा दण्ड दो कि इनकी रूह कांप उठे।थुक दो इनके चेहरों पर कि वह पहचान में ही न आए क्योंकि ये तुम्हारे विश्वास के सौदेबाजी के दलाल हैं।

उन नेताओं को भी कहना चाहता हूँ कि-” जिन हाथों से उजाड़े हैं गुलिस्ता तुने, अगर चाहते तो उनसे विराने भी संवर जाते”।भाजपा के लिए राजनीति व्यापार नहीं बल्कि “राष्ट्रवाद” की पोषक है।इसलिए चेतो!अपनी पार्टी(भाजपा) से भी अपील है कि पार्टी-हित में ऐसे नेताओं को पहचान कर तुरंत पार्टी से बाहर किया जाए।वरना जिस दिन कार्यकर्ताओ ने ठान लिया उसी दिन से ऐसे नेताओं की नेतागीरी दो में बंद हो जाएगी।

अभी 2024 में समय है जब लोकसभा का महासंग्राम होगा।भगवान न करे अगर 2024में सिवान से NDA हारा तो सारी जिम्मेदारी ऐसे ही नेताओं की होगी जिसे पार्टी ने आस्तीन का सांप बनाकर पाल रखा है।इसलिए कार्यकर्ताओ का पुनः आह्वान है कि अगर इन “आस्तीन के सांपो” के कारण हम 2024 हारे तो परीक्षित बनकर “सर्प-यज्ञ” करके इन सांपो को जलाकर भस्म कर देने में कोई पाप नहीं।न रहेगा बाँस न बजेगी बांसुरी.

 आकलन है कि आज के दौर में मुख्यतया कारण है –
1-जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा।
2-दल के पदाधिकारी एवं नेताओं में गुटबाजी
3-अन्दरूनी कलह
4-अफवाह फैलाना कि विधानसभा क्षेत्र में विचार धारा की जनप्रतिनिधियों की कम जीत होना।
5-बेहतर कैम्पनिग का अभाव।
बहुत दुख होता है , युद्ध के मैदान में अन्दरुनी कलह दिखाना। नेताओं द्वारा एक दूसरे का काट करना। नेतृत्व को सही जानकारी नहीं देना।

 

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