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आखिर कुछ मीडिया परिवार द्वारा भ्रामक खबरें क्यों चलाई जा रही हैं? - श्रीनारद मीडिया

आखिर कुछ मीडिया परिवार द्वारा भ्रामक खबरें क्यों चलाई जा रही हैं?

आखिर कुछ मीडिया परिवार द्वारा भ्रामक खबरें क्यों चलाई जा रही हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सवा साल से अधिक समय से जारी कोरोना महामारी के कहर से निपटने में झूठी खबरें, अपुष्ट सूचनाएं, उपचार के अवैज्ञानिक तरीके और षड्यंत्र सिद्धांत बड़ी बाधा साबित हो रहे हैं. दुनिया के अन्य देशों में भी अफवाहों और भ्रामक दावों का बाजार गर्म रहा है, लेकिन हमारे देश में इसका असर कुछ ज्यादा ही है. पहले चरण में कुछ लोगों ने दावा किया था कि गौमूत्र पीने से कोरोना वायरस के संक्रमण से बचा जा सकता है.

दूसरी लहर में कुछ जगहों से गोबर का लेप लगाकर महामारी से बचने की कोशिश की जा रही है. डॉक्टरों ने स्पष्ट कह दिया कि इस तरह के उपायों से प्रतिरोधक क्षमता नहीं बढ़ती है और ऐसा करने से अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. इसी तरह झाड़-फूंक कराने की खबरें भी आती रहती हैं. कुछ दिन पहले यह भ्रम भी फैलाने का प्रयास किया गया कि नाक में नींबू के रस की बूंदें डालने से रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है तथा कोविड-19 संक्रमण के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

काली मिर्च, शहद और अदरक से भी कोरोना बचाव होने के दावे सोशल मीडिया के सहारे फैलाये गये. इतना ही नहीं, इस दावे को भरोसेमंद बनाने के लिए यह झूठ भी प्रसारित हुआ कि यह एक विश्वविद्यालय के छात्र का शोध है तथा इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता दी है. इस मामले में सरकार को विज्ञप्ति जारी कर बताना पड़ा कि यह आधारहीन दावा है. सामान्य सर्दी-बुखार में पारंपरिक और घरेलू नुस्खे भले कारगर हों या इस महामारी के दौर में उनका सेवन भी किया जा रहा हो, लेकिन उसे कोरोना की दवा बताना अनुचित है.

इससे पहले प्याज और सेंधा नमक से संक्रमण से छुटकारा पाने के दावों को सरकार और विशेषज्ञों को खारिज करना पड़ा था. कई महीनों से भारत समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक और चिकित्सक संक्रमण रोकने, वायरस के विभिन्न प्रकारों का विश्लेषण करने तथा टीके व दवा बनाने के काम में जुटे हुए हैं. चिकित्सकीय अनुभवों तथा विशेषज्ञों के मार्गदर्शन के आधार पर संक्रमितों का उपचार हो रहा है.

इसके साथ ही मास्क लगाने, समुचित दूरी बरतने, भीड़-भाड़ से बचने, हाथ धोने और सैनिटाइजर इस्तेमाल करने की लगातार सलाह दी जा रही है. किसी भी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने या यात्रा करने के बाद कुछ दिन अलग रहने का निर्देश है. संक्रमण के लक्षणों के सामने आते ही चिकित्सकीय परामर्श लेने तथा सामान्य संक्रमण की स्थिति में घर में रहकर स्वास्थ्य लाभ करने का सुझाव भी दिया जा रहा है. ऐसे में आधिकारिक निर्देशों और चिकित्सकों के मार्गदर्शन के अलावा कोई भी उपाय करना जानलेवा साबित हो सकता है.

भ्रामक दावे तथा षड्यंत्रकारी बातें, जैसे- वायरस कोई भूत-प्रेत है या किसी तकनीकी परीक्षण का परिणाम है, महामारी को नियंित्रत करने में बाधक हैं. इनसे बचा जाना चाहिए. इस संबंध में जागरूकता का प्रसार करना हर नागरिक का कर्तव्य है.

न्यूज चैनल और न्यूज पेपर वालों से  सवाल

धधकती हुई चिताएं, मरीजों से भरे हॉस्पिटल, परेशान परिजन, सजी हुई अर्थी, दर दर भटकते परिजन, भुख से तड़पते राहगीर।

आखिर यह सब दिखाकर क्या जताना चाहते हैं हमारे न्यूज चैनल ।

महामारी है हम सबको पता है।
आउट ऑफ कंट्रोल है यह भी सबको पता है।

आप सही ख़बर दें…..
ठीक हुए मरीजों का इंटरव्यू कराइए।

ऑक्सीजन सिलेंडर कहां मिल रहा है यह बताइए।

प्लाज्मा डोनर्स का डेटाबेस बनाए।

किस हॉस्पिटल में बेड खाली है यह बताएं।

एंबुलेंस सर्विस की डिटेल दें।

सेवा करने के लिए प्रेरित कीजिए।

कहां सुविधा उपलब्ध है उसकी जानकारी दीजिए।

जन प्रतिनिधियों को सामाजिक सेवा के लिये उकसाइऐ मजबूर कीजिए।

लेकिन नहीं आपको तो सनसनी चाहिए।

घबराहट फैला कर क्या साबित करना चाहते हैं आप ?

इतना डर का माहौल बना दिया जा रहा कि स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार पड़ता जा रहा है।
मनोबल ऊंचा कर नहीं सकते तो तोडिऐ भी मत।

केवल अपने पेपर और चैनल की टीआरपी ही मत बढ़ाइए।

समस्याओं का समाधान ढूढे और ढूढ़ने मे मदद करें।

आवाज उठाये और अपने शुभचिंतकों का हौसला बढाये।

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