यूक्रेन युद्ध के दौरान महाशक्तियों का केंद्र क्‍यों बना भारत?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रूस यूक्रेन जंग के बीच भारत महाशक्तियों के केंद्र में है। दुनियाभर के प्रमुख देशों की नजर भारत पर टिकी है। भारतीय कूटनीति के लिए यह अग्निपरीक्षा का समय है। प्रमुख देशों के राजनयिक भारतीय विदेश नीति को अपने-अपने हितों के अनुरूप प्रभावित करने में जुटे हैं। भारत को दुविधा और दबाव में डालने का खेल जारी है। हालांकि, भारत अपने स्‍टैंड पर कायम है। भारत ने शुरू से साफ कर दिया है कि रूस यूक्रेन जंग के दौरान उसकी विदेश नीति तटस्‍थता की है और रहेगी। इसके साथ राष्‍ट्रीय हितों के अनुरूप भारत की विदेश नीति स्‍वतंत्र है।

हाल में दिल्‍ली पहुंचे रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव पर दुनिया की नजरें टिकी थी। इस यात्रा के दौरान रूस ने भारत को यह विश्‍वास दिलाया कि किसी भी संकट में मास्‍को उसके साथ खड़ा है। रूसी विदेश मंत्री की यात्रा ऐसे वक्‍त हुई है, जब अमेरिका के डिप्‍टी एनएसए दलीप सिंह भारत को सख्‍त संदेश देकर अपने देश रवाना हो चुके हैं। इसके पूर्व चीन के विदेश मंत्री भारत की यात्रा पर थे। आखिर विदेश मंत्रियों की यात्रा का मकसद क्‍या है। अचानक दुनिया की महाशक्तियों का केंद्र भारत क्‍यों बना? इसके पीछे बड़ी वजह क्‍या है? क्‍या भारत रूस यूक्रेन जंग में मध्‍यस्‍थ बन सकता है? रूसी राष्‍ट्रपति पुतिन ने रूस यूक्रेन जंग के दौरान भारतीय विदेश नीति को क्‍यों सराहा।

1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई की यात्रा पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की नजर टिकी थी। उनकी यात्रा कई मायने में खास थी। इस यात्रा के दौरान रूसी विदेश मंत्री सर्गेई ने भारत में अपने समकक्ष एस जयशंकर से मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी। हाल के दिनों में भारत यात्रा पर आए प्रमुख विदेश मेहमानों में वह अकेले शख्‍स थे, जिनसे पीएम मोदी भी मिले। कूटन‍ीतिक गलियारों में यह चर्चा खास रही। इस मुलाकात पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की पैनी नजर थी। इसके पूर्व चीन के विदेश मंत्री की भारत यात्रा पर वह पीएम मोदी से मुलाकात नहीं कर सके थे। इतना ही नहीं अमेरिकी राजनयिक की यात्रा भी विदेश मंत्रालय तक सीमित रही।

2- प्रो पंत का कहना है कि रूसी विदेश मंत्री ने पहली बार भारत-चीन सीमा विवाद पर खुलकर संकेत दिया। उन्‍होंने कहा कि भारत और चीन के बीच स्थिति एक हद से ज्‍यादा खराब नहीं हो, रूस यह सुनिश्चित करने के प्रयास में हमेशा रहेगा। इसके अलावा रूसी विदेश मंत्री ने यह संकेत भी दिया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को रोकने के लिहाज से बने भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के समूह क्वाड के कारण भारत को लेकर चीन का संदेह खत्म करने का प्रयास भी रूस करेगा। रूसी विदेश मंत्री के ये इशारे हवा-हवाई नहीं हैं क्योंकि रूस, भारत, चीन का संगठन रिक (आरआईसी) इसका आधार मुहैया कराता है।

3- प्रो पंत ने कहा कि रूसी विदेश मंत्री के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की मुलाकात काफी अहम रही। लावरोव के साथ बातचीत में पीएम मोदी ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्‍म करने में भारत कोई भी योगदान को तैयार है। इस दौरान रूसी विदेश मंत्री ने मोदी को राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन का संदेश भी दिया। रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि रूस और यूक्रेन विवाद में भारत मध्यस्थता कर सकता है, क्योंकि उसका रुख हमेशा से निष्पक्ष रहा है और वह कभी अमेरिकी दबाव में नहीं आया। इस यात्रा के दौरान यह संदेश गया कि भारत की तटस्‍थता की नीति कारगर रही। रूस ने भारतीय विदेश नीति को जमकर सराहा। रूस के इस कदम से अमेरिका और पश्चिमी देशों को जरूर मिर्ची लगी होगी। वहीं भारतीय विदेश नीति का लोहा पूरी दुनिया ने माना।

4- उन्‍होंने कहा कि आरआईसी की खासियत यह रही है कि यह भारत और चीन के तल्‍ख होते संबंधों में एक सेतु का काम करता रहा है। चीन और रूस के बीच एक जबरदस्‍त साझेदारी है, जबकि नई दिल्‍ली और मास्‍को के बीच एक परंपरागत मित्रता रही है। हालांकि हाल के दिनों में आरआईसी पर सवाल तब उठे थे, जब चीन डोकलाम से लेकर गलवान तक कई बार सैन्‍य झड़प कर चुका है। इसके बावजूद रूस ने हमेशा भारत और चीन के बीच लगातार संतुलन साधने की कोशिश की है।

आखिर क्‍या बोले थे अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह

अमेरिका डिप्टी एनएसए दलीप सिंह, जिन्हें रूस के खिलाफ प्रतिबंधों का मास्टर माइंड माना जा रहा है, उन्होंने भारत को चेताते हुए कहा कि जब चीन नियंत्रण रेखा (एलएसी) का उल्लंघन करेगा तब रूस भारत की मदद करेगा ऐसा नहीं है। चीन और रूस अब नो लिमिट्स पार्टनरशिप में हैं। उन्‍होंने यूक्रेन के खिलाफ पुतिन के अनावश्यक युद्ध के लिए रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को वापस लेने की कोशिश करने वाले किसी भी देश को इसके परिणामों के बारे में आगाह किया। हालांकि, उन्‍होंने कहा था कि अमेरिका और भारत जैसे मित्र देश कोई रेड लाइन निर्धारित नहीं करते हैं।

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