भारत ने क्यों लिया सीजफायर का फैसला?

भारत ने क्यों लिया सीजफायर का फैसला?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान और पीओके में आतंकियों के 9 ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के तहत कार्रवाई कर उन्हें ध्वस्त कर दिया।इससे बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर ड्रोन्स और मिसाइल से हमला करने की कोशिश की थी, लेकिन भारतीय डिफेंस सिस्टम ने सभी ड्रोन्स और मिसाइल को नष्ट कर दिया।

भारत और पाकिस्तान के बीच करीब चार दिनों तक चले सैन्य टकराव के बाद दोनों देशों ने सीजफायर (India-Pakistan Ceasefire) पर सहमति जताई। लेकिन, तब तक पाकिस्तान को बड़ा नुकसान पहुंच चुका था। भारत ने अपने ड्रोन्स और मिसाइलों से पाकिस्तान के 11 एयरबेसों को बुरी तरह से तबाह कर दिया, जिसके सबूत पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध हैं।

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भारत के सामने कहीं नहीं टिकता पाकिस्तान

इस सैन्य टकराव के बाद पश्चिमी मीडिया ने सैन्य क्षमता के संदर्भ में भारत और पाकिस्तान को समान बताने की बहुत कोशिश की, लेकिन जिस तरीके से भारत ने पाकिस्तान के मध्य में स्थित नूर खान एअरबेस पर मिसाइलों से हमला किया और कराची पोर्ट पर भारतीय नौसेना ने हमला किया, उससे साफ हो गया दोनों देश सैन्य क्षमता के मामले में समान नहीं है, भारत बहुत ही ज्यादा आगे है।

पाकिस्तान को हुए बड़े नुकसान के बाद उसने खुद सीजफायर की मांग करते हुए अमेरिकी के पास मांग उठाई थी। हालांकि, मोदी सरकार ने रावलपिंडी में हमले के बाद तनाव को और ज्यादा बढ़ाने से इलिए भी परहेज किया क्योंकि पाकिस्तान भारत का मुकाबला नहीं कर सकता था।

पाकिस्तान ने किया आत्मसमर्पण

पाकिस्तान के आत्मसमर्पण का पता तब चला जब अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और NSA अजीत डोभाल से बात कर सीजफायर के लिए प्रयास किए। 

 

10 मई की सुबह ही भारतीय मिसाइलों ने नूर खान एअरबेस पर भारी तबाही मचाई थी। इसके बाद पाकिस्तान के डीजीएमओ ने सुबह 10.38 बजे फोन कर कराची नौसैनिक बंदरगाह पर ब्रह्मोस मिसाइल हमले की खुफिया जानकारी होने का दावा किया था।
हालांकि, इस दौरान पाकिस्तानी डीजीएमओ ने जवाबी कार्रवाई की धमकी देने की कोशिश की, लेकिन भारतीय पक्ष बेफिक्र रहा और पूरी तरह से टकराव के लिए तैयार रहा।

मार्को रुबियो को जयशंकर का जवाब

ऐसा कहा जा रहा है कि जब मार्को रुबियो ने संघर्ष विराम के लिए पाकिस्तान की इच्छा जताई, तो एस जयशंकर ने दृढ़ता के साथ-साथ विनम्रता से जवाब दिया कि यह बात भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ चैनल के माध्यम से होनी चाहिए, क्योंकि भारतीय सशस्त्र बल ऑपरेशंस का नेतृत्व कर रहे थे। 

 

इस बीच पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय और उसके सहयोगियों द्वारा बार-बार भारत के पास फोन किए जा रहे थे, जिसे नजरअंदाज किया गया, जिसमें बार-बार शत्रुता समाप्त करने का आग्रह किया गया था। भारत जब जवाबी कार्रवाई कर रहा था, उस वक्त कई पश्चिमी देशों ने चीनी हथियारों को भारत के हथियारों से बेहतर दिखाने का प्रयास किया था। लेकिन भारत पाकिस्तान को जवाब देने के लिए पूरी तरह से तैयार था और भारत के ऊपर तनाव कम करने का दबाव नहीं था।

बलूचिस्तान में भारत नहीं करने वाला था हमला

भारत ने पाकिस्तान के 11 एअरबेस को नष्ट कर दिया था और उसके एअर डिफेंस सिस्टम को भी पूरी तरह से निष्प्रभावी कर दिया था। हालांकि, भारत का बलूचिस्तान और पश्तून बहुल खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र पर हमला करने का कोई इरादा नहीं था।
दिलचस्प बात यह है कि फ्रांस की सरकारी मीडिया ने भारतीय वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले अपने राफेल लड़ाकू विमानों को कमतर आंकने की कोशिश की, तब भी भारतीय वायुसेना के फाइटर प्लेन, मिसाइल, लॉइटरिंग म्यूनेशन्स और ड्रोन्स ने बेहतर प्रदर्शन किया और पाकिस्तान को निर्णायक रूप से परास्त कर दिया। 

 

भारत उस स्थिति में पहुंच चुका था कि पाकिस्तान के अंदर किसी भी लक्ष्य पर हमला करने की क्षमता रखता था, क्योंकि पाकिस्तान की चीन द्वारा आपूर्ति की गई एअर डिफेंस सिस्टम को या तो नष्ट कर दिया गया था या फिर जाम कर दिया गया था।

भारत ने क्यों लिया सीजफायर का फैसला?

हालांकि, भारत द्वारा सैन्य टकराव समाप्त करने का निर्णय राजनीतिक आंकलन के बाद लिया गया था, क्योंकि भारत के मिशन के उद्देश्य पूरे हो चुके थे और अब ये सबको पता था कि पाकिस्तान पश्चिमी देशों और चीन के सामने विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश करेगा।सीधे तौर पर कहे तो भारत और पाकिस्तान बराबर नहीं हैं और पाकिस्तान को उसकी क्षमता दिखाने के बाद भारत को सैन्य संघर्ष को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

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