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आखिर क्यों होता है ईंट भट्‌ठों में ब्लास्ट? - श्रीनारद मीडिया

आखिर क्यों होता है ईंट भट्‌ठों में ब्लास्ट?

आखिर क्यों होता है ईंट भट्‌ठों में ब्लास्ट?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

बिहार में मोतिहारी के रमगढ़वा में 23 दिसंबर को ईंट भट्‌ठे में धमाका हो गया। आग लगाने के दो घंटे बाद हुए धमाका से तरफ अफरा-तफरी मच गई। डेढ़ दर्जन लोग झुलसकर गंभीर हो गए। भट्‌ठा मालिक के साथ 8 लोगों की मौत हो गई, 10 गंभीर हालत में जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं। घटना की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख व्यक्त किया। ईंट भट्‌ठा विस्फोट का यह पहला मामला नहीं, बिहार में आए दिन ईंट भट्‌ठे पर ब्लास्ट की घटना हो रही है।

12 दिसंबर को कटिहार में हुई घटना

कटिहार के समोली प्रखंड के पोठिया ओपी क़े छोहार गांव में 12 दिसंबर को एक ईंट भट्ठे पर ब्लास्ट हो गया। इस घटना में डेढ़ दर्जन से अधिक मजदूर घायल हो गए। ब्लास्ट तेज नहीं था और मजदूरों की थोड़ी सी चालाकी से उन्हें मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सका।

दिसंबर और नवंबर माह में बिहार के साथ अन्य राज्यों में भी बड़ी घटनाएं सामने आई हैं। असम में 3 दिसंबर को कछार जिले में एक ईंट भट्ठे के चिमनी में हुए ब्लास्ट में एक नवजात सहित 5 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं 6 नवंबर को राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में हुए ब्लास्ट के कारण 4 लोगों की मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश में भी दिसंबर में ईंट ब्लास्ट की दो बड़ी घटनाएं हुई हैं।

गोपालगंज में ईंट भट्‌ठे में विस्फोट

23 दिसंबर को गोपालगंज में एक ईंट भट्‌ठे की चिमनी ब्लास्ट कर गई। इस घटना में डेढ़ दर्जन से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हो गए जबकि मुंशी की मौके पर ही मौत हो गई। गोपालगंज के बरौली थाना क्षेत्र के रतनसराय गांव में हुई घटना ने आस पास के ईंट भट्‌ठा मालिकों की मुश्किल बढ़ा दी। धमाका इतना तेज था कि ईंट भट्‌ठा के मुंशी हरेंद्र चौधरी की मौके पर ही मौत हो गई। मुंशी कोटवा गांव के रहने वाले थे। घटना में घायल मजदूरों को सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

तेजी से गैस बनने के कारण ब्लास्ट

ईंट भट्‌ठों के तकनीकी जानकार और बिहार फ्लाई ऐश ब्रिक इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव विकास कुमार सिंह बताते हैं कि लाल ईंट क़े भट्ठे से प्रतिदिन हजारों टन जहरीली गैस कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, ब्लैक कार्बन, सल्फर डाई ऑक्साइड, PM 2.5 पार्टिकल्स एवं नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड निकलता है। इसके उत्सर्जन का एक मात्र जरिया भट्ठे की चिमनी होती है।

अब जब खराब गुणवत्ता का कोयला और रबर क़े टायर, मिट्टी तेल, लकडियां, प्लास्टिक के कचरे, धान की भूसी एवं अन्य अवशेषों को जलाते हैं, तब इससे धुआं का उत्सर्जन अत्यधिक मात्रा में होता है। जिससे चिमनी क़े अंदर ऊपर वर्णित जहरीली गैसों का फैलाव तेजी से होने लगता है। अब इन हजारों टन जहरीली गैसों का निकास तेजी से नहीं हों पता, क्योंकि ठंड में चिमनी के ऊपर हवा का दबाव होता है। ऐसे में अत्यधिक दवाब के कारण चिमनी में ब्लास्ट होता है।

ईंट भट्‌ठे में पानी के रिसाव से ब्लास्ट

विकास कुमार सिंह बताते हैं कि ईंट भट्‌ठे में ब्लास्ट का दूसरा कारण भी आम है। अगर ईंट भट्ठे के अंदर किसी भी कारण से पानी का रिसाव हो रहा है, तो चिमनी के अंदर वह कोयले को जलाने के बदले धुंआ का उत्सर्जन ज्यादा करेगा, जिससे भी वही परिस्थिति पैदा होगी एवं चिमनी ब्लास्ट करेगा! अक्सर ऐसी तकनीकी समस्या होती है, इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इस कारण से चिमनी ब्लास्ट कर जाती है। बिहार में पुराने ईंट भट्‌ठों में पानी का रिसाव होता है, जिससे बड़ी घटनाएं होती हैं।

मिस्त्री अनट्रेंड होने से ब्लास्ट

विकास कुमार बताते हैं कि बिहार के सभी ईंट भट्ठे में तकनीकी रूप से दक्ष कारीगर की जगह झारखंड, ओडिशा एवं बंगाल के मीदनापुर, मुर्शिदाबाद एवं बिरभूम जिले के मजदूर एवं ठेकेदार काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों के पास ईंट-भट्‌ठे से जुड़ी कोई भी तकनीकी जानकारी नहीं होती है। अगर सरकार लाल ईंट-भट़्ठों पर BIS मानक के अनुसार एक दक्ष स्टाफ की अनिवार्यता करे तो ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है।

एक बड़ा कारण यह भी है कि हजारों टन कोयले को स्टोर करने क़े लिए एक उपयुक्त गोदाम या कमरे की आवश्यकता है, जिससे की कोयले को बाहर स्टोर करने से रोका जा सके एवं ठंड के महीने में कोयले में आद्रता या नमी (Moisture) नहीं आए ताकि कोयला धुआं छोड़ने के बजाय जले।

ईंट भट़्ठों को लेकर सरकारी की ढीली निगरानी

विकास कुमार सिंह बताते हैं कि ज़ब भारत के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के राजपत्रित अधिसूचना के अनुसार सभी तरह के सरकारी, गैर सरकारी एवं निजी निर्माण क्षेत्रों में शत प्रतिशत फ्लाई ऐश से बनी ईंटों के उपयोगिता की अनिवार्यता है एवं बिहार में 6 बिजली परियोजनाओं से निकले अत्यधिक मात्रा में ऐश क़े कारण जरूरत के अनुसार फ्लाई ऐश ईंटों क़े निर्माण की क्षमता है फिर सरकार लाल ईंट भट़्ठों को फ्लाई ऐश ईंट के इकाई में परिवर्तित करने को आदेश निर्गत क्यों नहीं करती? सरकार की मनमानी के कारण ही घटनाएं हो रही हैं, अगर सरकार की निगरानी ढीली नहीं होती तो हर साल ऐसी बड़ी घटनाएं नहीं होती

जिग-जैग तकनीक लागू होने के बाद बढ़ी घटनाएं

जब से सरकार ने इस जिग-जैग तकनीक के नाम पर लाल ईंट भट्ठे को लाइसेंस देने का काम किया है, तब से इस तरह की घटनाएं ज्यादा बढ़ गई है, जिसका सिर्फ एक कारण है की चिमनी के जिग जैग संरचना के कारण धुआं का निकास ढंग से नहीं हो पाता। धुआं गैस का निर्माण कर चिमनी के अंदर जमा होते रहता है, जिससे की चिमनी के ब्लास्ट करने की सम्भावना ज्यादा बढ़ जाती है! जिस जिग जैग तकनीक के नाम पर सरकार या निजी कंपनियां लाल ईंट क़े भट्ठे से लाखों रूपये का फीस चार्ज करती है उससे कम पैसों में वह तकनीक फ्लाई ऐश ईंट के यूनिट में परिवर्तित कर सकते हैं।

ईट भट्ठा संचालन के लिए नियम में बदलाव

बता दें कि हाल ही में बिहार में ईंट भट्टा संचालन के लिए नियमों में बदलाव किया गया है। नए नियमों के अनुसार भट्ठे के लिए चिमनी की न्यूनतम ऊंचाई बढ़ाई गई है। जिन भट्ठों की क्षमता 30 हजार ईंट प्रतिदिन से कम है, उन्हें उन्हें चिमनी की ऊंचाई 14 मीटर रखनी होगी। वहीं 30 हजार से अधिक ईंट निर्माण करने वाले भट्ठों को 16 मीटर ऊंची चिमनी की व्यवस्था करनी होगी। नए ईंट भट्ठों को स्कूल, अस्पताल, नर्सिंग होम के अलावा कोर्ट, सरकारी दफ्तर से कम से कम आठ सौ मीटर की दूरी पर स्थापित करना है। नियम का पालन करना होगा।

इसी प्रकार नए भट्ठे राष्ट्रीय व राजकीय राजमार्ग से कम से कम दो सौ मीटर की दूरी पर होंगे। फोरलेन उच्च मार्ग से यह दूरी तीन सौ मीटर निर्धारित की गई है। नदियों और प्राकृतिक जल स्रोत से यह दूरी पांच सौ मीटर निर्धारित की गई है। इको सेंसेटिव जोन में भट्ठे किसी भी हालत में स्थापित नहीं हो सकेंगे। मोतिहारी के रामागढ़वा थाना क्षेत्र में नरीरगीर में हुए चिमनी ब्लास्ट कांड के बाद जांच में कई खामियां सामने आई हैं। यहां नियम को भी दफन किया जा रहा था। ईंट भट्‌ठे से महज 50 मीटर की दूरी पर पेट्रोल पंप स्थित है। अगर आग थोड़ी फैलती तो पेट्रोल पंप भी प्रभावित होता।

 

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