Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
नेपाल-अमेरिका समझौता को लेकर क्‍यों उठा है सियासी बवाल? - श्रीनारद मीडिया

नेपाल-अमेरिका समझौता को लेकर क्‍यों उठा है सियासी बवाल?

नेपाल-अमेरिका समझौता को लेकर क्‍यों उठा है सियासी बवाल?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

नेपाल इन दिनों अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर सुर्खियों में है। अमेरिका के एक सहायता कार्यक्रम ने भारी राजनीतिक विवाद पैदा कर दिया है। अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कार्यक्रम के तहत नेपाल को 50 करोड़ डालर मिलने हैं। इसको लेकर नेपाल में सियासी पारा गरम हो गया है। नेपाल में सरकार में सहयोगी दल और विपक्षी पार्टियां इससे जुड़े समझौते के मौजूदा स्‍वरूप के खिलाफ हैं।

उनका कहना है कि समझौता में संशोधन होना चाहिए, क्‍योंकि इसके कुछ प्रावधानों से नेपाल की संप्रभुता को खतरा हो सकता है। खास बात यह है कि अमेरिका और नेपाल के इस समझौते को संसद का समर्थन जरूरी है, लेक‍िन राजनीति दलों और आम जनता के विरोध की वजह से इसका भविष्‍य अधर में लटका हुआ है।

मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन को लेकर गठबंधन में दरार

1- प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन को लेकर नेपाल में सत्‍ताधारी गठबंधन में ही गंभीर मतभेद उभर आए हैं। सरकार में शामिल नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) व एकीकृत समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियां समझौते के मौजूदा स्वरूप को संसद से मंजूरी दिलाने के खिलाफ हैं। कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का कहना है कि इस समझौते में ऐसे प्रावधान हैं, जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल हैं।

कुछ अमेरिकी अधिकारियों के बयानों से भी इस समझौते को लेकर भ्रम की स्थिति उत्‍पन्‍न हुई है। इन अधिकारियों का कहना था कि यह समझौता अमरीका की इंडो-पैसिफ‍िक रणनीति के पक्ष में है। हालांकि, बाद में उन्होंने इससे इनकार किया।

2- प्रो. पंत का कहना है कि नेपाल में सरकार में शामिल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी यह स्‍थापति करने में जुटी हैं कि यह समझौता चीन के असर को रोकने के लिए किया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका और नेपाल के बीच हुए इस समझौते को लेकर कुछ दुष्प्रचार भी देखने को मिल रहा है। यह कहा जा रहा है कि अमेरिका इस मदद के बहाने नेपाल में अपने सैन्य अड्डे बना सकता है।

कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के नेता यह संदेश दे रहे हैं कि यह चीन को रोकने की अमेरिकी रणनीति है। उनका कहना है कि इससे नेपाल की एकता और अखंडता को खतरा उत्‍पन्‍न हो सकता है। इसी के चलते नेपाल में इस समझौते का विरोध हो रहा है।

आखिर क्‍या है नेपाल और अमेरिका का समझौता

गौरतलब है कि नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और गठबंधन के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड ने पिछले वर्ष सितंबर में अमेरिका को पत्र लिख कर कहा था कि वे चार-पांच महीने में इस समझौते को संसद का समर्थन दिला देंगे, लेकिन अब तक इसे नेपाल की संसद में मंजूरी नहीं मिल सकी। इससे अमेरिका की नाराजगी बढ़ गई है। नेपाल में समझौते के विरोध को देखते हुए अमेरिका ने इसे रद करने की धमकी दी है। बाइडन प्रशासन का तर्क है कि अब वह और प्रतिक्षा नहीं कर सकता है। अमेरिका का कहना है कि यदि फरवरी तक इस समझौते को मंजूरी नहीं मिली तो वो 50 करोड़ डालर की इस सहायता को वापस ले लेगा।

नेपाल अमेरिका के बीच भारत भी बना फैक्‍टर

दरअसल, जब ये समझौता हुआ तो अमेरिका ने कहा था कि इसमें भारत को भी भरोसे में लेना होगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि बिजली ट्रांसमिशन लाइन नेपाल के गुटवल से गोरखपुर तक बिछेगी। इसको लेकर भी नेपाल सरकार में शामिल कम्‍युनिस्‍ट पार्टियां विरोध कर रही है। कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का कहना है कि जब समझौता नेपाल और अमेरिका के बीच हुआ है, तो इसमें भारत को क्यों बीच में लाया जा रहा है। कम्‍युनिस्‍ट पार्टी भारत के विरोध में यह प्रचार कर रही हैं। उनका तर्क है कि यह नेपाल की स्‍वतंत्र विदेश नीति के लिए ठीक नहीं है।

अमेरिका-नेपाल समझौते में चीन बना बड़ा फैक्‍टर

प्रो. पंत का कहना है कि हाल के दिनों में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में काफी अच्छे संबंध रहे हैं। यहां की सियासत में चीन एक बड़ा फैक्‍टर है। नेपाल में चीन का दखल काफी बढ़ा है। इसलिए इस समझौते से चीन को भी जोड़कर देखा जा रहा है। हाल में चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में इस समझौते को लेकर चेतावनी दी गई थी। इस लेख में कहा गया है कि विकास कार्यक्रम की आड़ में यह चीन के विरुद्ध एक रणनीति है। अमेरिका दक्षिण एशिया में नेपाल जैसे छोटे देशों को चीन के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहता है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!