सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन का समर्थन क्यों किया जा रहा है?

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन का समर्थन क्यों किया जा रहा है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने टी.वी. समाचार चैनलों में अनुशासन एवं जवाबदेही की कमी पर चिंता व्यक्त की है और एक सुदृढ़ स्व-नियमन का आह्वान किया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने टी.वी. समाचार चैनलों के दो प्रतिनिधि निकायों, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (NBF) से गलत चैनलों से निपटने के लिये तंत्र को सुदृढ़ करने के तरीकों पर विचार करने के लिये कहा है।
  • इस मुद्दे की शुरुआत समाचार चैनल संघों द्वारा उपयोग किये जाने वाले स्व-नियामक तंत्र को कानूनी मान्यता नहीं देने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ NBDA की याचिका से हुई।

टी.वी. समाचार चैनलों के मौजूदा स्व-नियमन तंत्र में समस्याएँ: 

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जवाबदेही में संतुलन:
    • सर्वोच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित स्वतंत्र वाक् और अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा के महत्त्व को स्वीकृति देता है।
      • वर्तमान में इस मौलिक अधिकार और समाचार चैनलों के मध्य जवाबदेही एवं अनुशासन सुनिश्चित करने के साथ संतुलन बनाना एक चुनौती है।
  • वर्तमान स्व-नियमन की अप्रभाविता:
    • टी.वी. समाचार चैनलों का वर्तमान स्व-नियमन तंत्र NBDA और NBF द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर आधारित है, जो प्रसारकों के स्वैच्छिक संघ हैं।
    • NBDA के पास न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBSA) नामक एक नियामक पर्यवेक्षक है, जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश करते हैं, जो उल्लंघन पर ₹1 लाख तक का ज़ुर्माना लगा सकते हैं।
      • स्व-नियामक निकायों द्वारा लगाए गए ज़ुर्माने को अनैतिक या सनसनीखेज़ रिपोर्टिंग में शामिल चैनलों के लिये पर्याप्त दंड के रूप में नहीं देखा जा सकता है। चैनल अपनी प्रथाओं को बदलने के बजाय व्यवसायिक लागत के रूप में यह ज़ुर्माना देने के लिये तैयार हो सकते हैं।
    • NBF, जो आधे समाचार प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, ने अब तक कोई विनियमन नहीं बनाया है और यह सरकार के साथ पंजीकृत भी नहीं है।
    • न्यायालय का कहना है कि मौजूदा प्रणाली टी.वी. चैनलों को नियमों का उल्लंघन करने से प्रभावी तौर पर नहीं रोकती है।
      • न्यायालय ने कहा कि समाचार चैनल कभी-कभी अत्यधिक उत्तेजित हो जाते हैं और जाँच पूरी होने से पहले आपराधिक मामलों जैसे संवेदनशील विषयों को सनसनीखेज़ बना देते हैं।
  • पंजीकरण और मान्यता:
    • सरकार के केबल टेलीविज़न नेटवर्क (CTN) संशोधन नियम 2021 में स्व-नियामक निकायों के पंजीकरण की आवश्यकता है।
      • NBSA ने पंजीकरण करने से इनकार कर दिया है, जबकि NBF का स्व-नियामक निकाय, जिसे प्रोफेशनल न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड अथॉरिटी (PNBSA) कहा जाता है, पंजीकृत है और यह समाचार चैनलों के लिये एकमात्र वैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त स्व-नियामक निकाय है।
  • एकाधिकार संबंधी चिंताएँ:
    • ऐसी संभावित चिंताएँ हैं कि स्व-नियामक निकाय, जैसे कि NBDA, को सरकार या वैधानिक निरीक्षण को अनदेखा करते हुए समाचार प्रसारकों के शिकायत निवारण तंत्र पर एकाधिकार नियंत्रण बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।

मामले के निहितार्थ:

  • इस मामले का सीधा असर टी.वी. समाचार चैनलों पर पड़ेगा, जिन पर पत्रकारिता के मानदंडों और नैतिकता का उल्लंघन करने, गलत सूचना फैलाने, सनसनीखेज़, घृणा फैलाने वाले भाषण तथा मानहानि जैसे कई शिकायतें व आरोप लग रहे हैं।
    • मामले के परिणाम के आधार पर उन्हें सख्त नियमों और दंड प्रावधानों का सामना करना पड़ सकता है या वे अपनी प्रतिरक्षा तथा स्वायत्तता का लाभ उठाना जारी रख सकते हैं।
  • इस मामले का मीडिया और लोकतंत्र की कार्यप्रणाली एवं अखंडता के साथ-साथ जनता के अधिकारों व हितों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ेगा। मामले के नतीजे के आधार पर, यह मीडिया की जवाबदेही और पारदर्शिता को मज़बूत या कमज़ोर कर सकता है तथा ज़िम्मेदार व नैतिक पत्रकारिता को प्रोत्साहित अथवा हतोत्साहित कर सकता है।

भारत में मीडिया नियामक निकाय:

  • पारंपरिक मीडिया:
    • प्रिंट:
      • सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) सरकारी नीतियों एवं कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
      • MIB अपनी सूचना विंग के माध्यम से प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है।
      • भारतीय प्रेस परिषद (PCI) भारत में प्रिंट मीडिया को विनियमित करने वाली सर्वोच्च संस्था है।
    • सिनेमा:
      • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CFBC) की स्थापना सिनेमैटोग्राफिक अधिनियम 1952 द्वारा की गई थी। CFBC सार्वजनिक प्रदर्शन के लिये फिल्मों के प्रमाणन और प्रदर्शन को नियंत्रित करता है।
    • दूरसंचार क्षेत्र::
      •  भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण।
    • विज्ञापन:
      • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एक स्व-नियामक निकाय)।
  • डिजिटल मीडिया:

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!