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रूस के लैब में क्यों किया जा रहा चार लाख साल पुराने वायरस को जिंदा? - श्रीनारद मीडिया

रूस के लैब में क्यों किया जा रहा चार लाख साल पुराने वायरस को जिंदा?

रूस के लैब में क्यों किया जा रहा चार लाख साल पुराने वायरस को जिंदा?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यूरोपीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने हाल ही में रूस में साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट से “जॉम्बी” नामक वायरस का पता चला है। ये वायरस 48,500 साल पुराना है। इतने सालों से बर्फ के नीचे ही जमा है, लेकिन क्लाइमेट चेंज की वजह से जिस रफ्तार से बर्फ पिघल रही है उससे रिसर्चर्स को चिंता होने लगी है।

क्या है जॉम्बी वायरस 

जॉम्बी के बारे में तो आपने सुना ही होगा। इसको लेकर कई सारी फिल्में भी आ चुकी है, जो शायद आपने देखी भी होगी। लेकिन जॉम्बी सेल्स कोशिकाएं इससे अलग है। इसे ऐसे समझिए कि कैंसर में मरीज के प्रभावित अंग की कोशिकाएं असामान्य तौर पर बढ़ने लग जाती है। कैंसर कोशिकाओं की ही तरह जॉम्बी कोशिकाएं भी बढ़ती हैं। इंसान में ऐसा बढ़ती उम्र के साथ होता है। लेकिन क्या कैंसर कोशिकाओं की तरह जॉम्बी कोशिकाएं भी खतरनाक होती है। हाल ही में रिसर्च जर्नल नेचर स्ट्रक्टरल एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी में प्रकाशित शोध के अनुसार ये कोशिकाएं फायदेमंद भी हो सकती है।

रूस में मिला 48 हजार साल पुराना वायरस 

शोध में शामिल जर्मनी, रूस और जापान के वैज्ञानिकों ने कहा कि जिन वायरसों को खोजा गया है उनके फिर से जीवित होने का जैविक खतरा बहुत ही कम है। उन्होंने बताया कि अध्ययन के लिए उन्होंने उन स्ट्रेन को टारगेट किया है जो केवल माइक्रो अमीबा वायरस को संक्रमित कर सकते हैं।

समस्या तब है जब जानवरों या इंसानों को संक्रमित करने वाले वायरस पुनर्जीवित हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो समस्या काफी बड़ी हो सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक उनका अध्ययन बता सकता है कि खतरा वाकई में है। प्राचीन काल के बर्फ में दबे हुए वायरस जलवायु परिवर्तन के मुक्त हो सकते हैं। आपको बता दें कि ये वायरस एक तरह से मरकर जिंदा हुए हैं इसलिए इन्हें जॉम्बी वायरस का नाम दिया गया है।

रूसी लैब में वायरस को किया जा रहा है जिंदा? 

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि रूसी वैज्ञानिक एक और महामारी का जोखिम उठा सकते हैं क्योंकि वे साइबेरिया की एक प्रयोगशाला में प्राचीन विषाणुओं का पता लगाने के लिए काम कर रहे हैं। साइबेरियन शहर नोवोसिबिर्स्क में एक पूर्व बायोवेपन्स लैब में टीमें उन वायरस को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही हैं जो लगभग आधे मिलियन वर्षों से निष्क्रिय पड़े हैं।

वायरोलॉजी के वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक हिम युग के जीवों जैसे मैमथ और ऊनी गैंडों के संरक्षित शवों की जांच कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य उनकी मृत्यु का कारण बनने वाले संक्रमणों को निकालना और उनका अध्ययन करना है। निष्क्रिय वायरस वाले मृत जानवरों का अध्ययन करना जोखिम भरा माना जाता है, क्योंकि इससे बीमारी जीवित प्राणियों में फैल सकती है।

साइबेरिया शहर के नोवोसिबिस्र्क में एक बायोवेपंस लैब है। रूस में इस लैब को वेक्टर स्टेट रिसर्च सेंटर ऑफ वायरोलॉजी के नाम से जाना जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ऐक्स-मार्सिले में नेशनल सेंटर ऑफ साइंटिफिक रिसर्च के प्रोफेसर जीन-माइकल क्लेवेरी ने द टाइम्स को बताया कि वेक्टर अनुसंधान बहुत जोखिम भरा काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि इस वायरस से अगर संक्रमण फैलता है तो इंसान शरीर का इम्यून सिस्टम इतना मजबूत नहीं है कि इसे झेल पाएंगे। इसकी वजह यह है कि हमारे शरीर ने 4 लाख साल पुराने वायरस का कभी सामना नहीं किया है। मैं बहुत आश्वस्त नहीं हो सकता कि सब कुछ अप टू डेट है।”

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