
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एडवोकेट अनुपम तिवारी ने इंदिरा डैम में कूदकर जान दे दी। इंदौर में एक बैंक में सेल्स एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम करने वाली युवती ने हाथ की नस काटकर सुसाइड कर ली। कोटा में 25 साल के एक छात्र ने अपने कमरे में पंखे पर लटककर आत्महत्या कर ली। दिल्ली में एक कारोबारी ने परिवार समेत जहरीला पदार्थ पीकर सुसाइड कर ली।
हर दिन इस तरह की खबरें पढ़ने और सुनने को मिलती हैं। देश में आत्महत्या के आंकड़े डराने वाले हैं। हर दिन 468 से ज्यादा लोग जान दे रहे हैं, जिनमें 72 प्रतिशत संख्या पुरुषों की हैं। हर साल मई को मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ के तौर पर मनाया जाता है। इस बार मेंटल हेल्थ अवेयरनेस मंथ की थीम है- ‘In Every Story, There’s Strength’। इस बार अवेयरनेस मंथ में पुरुषों की मेंटल हेल्थ को विशेष जोर दिया जा रहा है।
जान देने वालों में एक लाख 22 हजार 724 पुरुष थे और 48 हजार 286 महिलाएं। NCRB की रिपोर्ट ने पुरुषों की भावनात्मक अनदेखी और पुरुषों में बढ़ते मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या को लेकर चिंता में डाल दिया।
किन राज्यों में सुसाइड के केस सबसे अधिक?
- महाराष्ट्र 22,746
- तमिलनाडु 19,834
- मध्य प्रदेश 15,386
- कर्नाटक 13606
- पश्चिम बंगाल 12669
- केरल 10162
- तेलंगाना 9980
- गुजरात 9002
- आंध्र प्रदेश 8908
- छत्तीसगढ़ 8446
- उत्तर प्रदेश 8176
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश से आए, जबकि सबसे अधिक आत्महत्या दर वाले राज्यों में सिक्किम , अंडमान एंड निकोबार और पुडुचेरी शीर्ष पर हैं।
क्या हैं सुसाइड के कारण?
एनसीआरबी की रिपोर्ट की मानें तो सबसे ज्यादा संख्या उन लोगों की है, जो पारिवारिक समस्याओं (31.7%) और बीमारियों ( 18.4%) से तंग आकर जान दे रहे हैं।इसके अलावा, लोग नशे की लत, शादी संबंधी समस्याएं, प्रेम संबंध में अनबन, वित्तीय नुकसान, बेरोजगारी, हिंसा व ब्लैकमेलिंग, पेशेवर/करियर संबंधी समस्याएं, मानसिक विकार, अकेलेपन की भावना और संपत्ति विवाद के चलते जान गंवा रहे हैं।
पुरुष और महिलाओं के कारण अलग
- महिलाएं: पारिवारिक समस्याएं जैसे- दहेज की मांग, बार-बार शादी टूटना, सामाजिक प्रतिष्ठा का भय, घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं से तंग आकर अपनी जान देती हैं।
- पुरुष: नौकरी से निकाले जाने, व्यापार में घाटा, कर्ज में डूबने, संपत्ति विवाद, प्यार में नाकाम रहने, इंटरव्यू या किसी परीक्षा में फेल होने पर मौत को गले लगाते हैं।
जहां पुरुष नौकरी से निकाले जाने, व्यापार में घाटा, कर्ज में डूबने, प्यार में नाकाम रहने और इंटरव्यू या किसी परीक्षा में फेल होने पर मौत को गले लगा लेते हैं। वहीं महिलाएं पारिवारिक समस्याएं, दहेज की मांग, बार-बार शादी टूटना, घरेलू हिंसा जैसी समस्याओं से तंग आकर अपनी जान देती हैं।
सुसाइड करने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा क्यों?
सीनियर साइकेट्रिस्ट व मनस्थली की फाउंडर एंड डायरेक्टर डॉ. ज्योति कपूर ने बताया, पुरुषों की परवरिश ऐसे की जाती है कि कमजोरियों को किसी के सामने जाहिर न करने, हर हाल में स्ट्रांग होने का दिखावा करने और चुपचाप सहते रहना सिखाया जाता है। यही कारण कि वे अपने मन में चल रही उलझन, द्वंद, निराशा-हताशा को अपने सगे-संबंधी या दोस्तों के साथ शेयर नहीं कर पाते हैं और अंत में हारकर मौत को गले लगा लेते हैं।
52% पुरुष हिंसा के शिकार
हाल ही में हरियाणा में कराए गए एक अध्ययन में सामने आया कि 52.4% शादीशुदा पुरुष लिंग आधारित हिंसा के शिकार हुए है, लेकिन उन्होंने कानूनी मदद मिली और न मनोवैज्ञानिक सहयोग। अध्ययन में कहा गया है कि समाज पुरुषों के दर्द को नजरअंदाज किए जा रहा है। समय की मांग है कि इसमें तुरंत सुधार किया जाए।
इंडियन एसोसिएशन ऑफ क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट्स की महासचिव व मंशा ग्लोबल फाउंडेशन की फाउंडर डॉ. श्वेता शर्मा के मुताबिक, जिन पुरुषों पर गलत आरोप लगाए जाते हैं या जो हैरेसमेंट के शिकार होते हैं, वे उपहार या अविश्वास के डर से चुपचाप सहते रहते हैं।उनके ये कड़वे अनुभव न सिर्फ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं, बल्कि पहचान और सुरक्षा की भावना को धूमिल करते हैं। इसका असर ये होता है कि वे अलगाव, आक्रामकता, ड्रग एडिक्ट के शिकार हो जाते हैं या फिर आत्महत्या कर लेते हैं। सीमलैस माइंड्स क्लिनिक और पारस हेल्थ की सीनियर कंसल्टेंट क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. प्रीति सिंह ने कहा कि यह मुद्दा कानूनी सुरक्षा उपायों की कमी से और बढ़ जाता है।
साल 2013-14 के एक सर्वे में सामने आया था कि 2013-14 के बीच दर्ज किए गए कुल बलात्कार के मामलों में से 53.2 प्रतिशत आरोप झूठे थे। इस सर्वे में दिए गए आंकड़े पर मनोवैज्ञानिकों और कानूनी विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की थी।
जिंदगी बचाने के लिए क्या किया जाए?
पुरुषों की मेंटल हेल्थ को सामने और सहयोग करना कभी इतना जरूरी नहीं रहा है, लेकिन अब हम सबको इस दिशा में आगे बढ़ना होगा। मेंटल हेल्थ संबंधी बातचीत को नॉर्मलाइज करना होगा। मौजूदा वक्त में घर और कार्यस्थल दोनों जगह पर ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है, जो लोगों को भावनात्मक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करे।अब वक्त आ गया है, जब पुरुषों को भी रूढ़िवादिता और अपनी चुप्पी तोड़नी होगी। समाज को उनसे बात करनी होगी।
नकारात्मक विचार आए तो क्या करें?
- परिवार, दोस्त या किसी विश्वसनीय व्यक्ति से अपनी भावनाओं को शेयर करें।
- मनोचिकित्सक या काउंसलर से संपर्क करें।
- देश में कई हेल्पलाइन हैं, जो 24/7 करती हैं, मदद लें।
- नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और पर्याप्त नींद लेकर मेंटल हेल्थ ठीक करें।
यहां ले सकते हैं मदद
अगर आप या आपका कोई परिचित मानसिक तनाव, डिप्रेशन, चिंता और आत्महत्या की प्रवृत्ति जैसे स्थिति से जूझ रहा है तो पर मनोवैज्ञानिक परामर्श ले सकते हैं।
1- किरण हेल्पलाइन
- टोल-फ्री नंबर: 1800-599-0019
- समय: 24×7 उपलब्ध
- भाषा: हिंदी समेत 13 भाषाओं में सेवाएं