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भारतीय उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों में वृद्धि क्यों हो रही है? - श्रीनारद मीडिया

भारतीय उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों में वृद्धि क्यों हो रही है?

भारतीय उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों में वृद्धि क्यों हो रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कानून और न्याय प्रणाली सुधारों पर केंद्रित थिंक-टैंक DAKSH के ‘हाई कोर्ट डैशबोर्ड’ के अनुसार, भारत के उच्च न्यायालयों में दायर ज़मानत अपीलों की संख्या में वर्ष 2020 के बाद वृद्धि हुई है।

  • DAKSH ने 15 उच्च न्यायालयों में वर्ष 2010 से वर्ष 2021 के बीच दायर 9,27,896 ज़मानत मामलों का विश्लेषण किया। इन न्यायालयों ने ज़मानत मामलों के लिये अलग-अलग नामकरण पैटर्न का पालन किया। डेटा के विश्लेषण से उच्च न्यायालयों में ज़मानत से जुड़े 81 प्रकार के मामले सामने आए हैं।

ज़मानत अपीलों से संबंधित आँकड़े: 

  • ज़मानत अपीलों में वृद्धि:
    • वर्ष 2020 से पहले ज़मानत अपीलें लगभग 3.2 लाख से बढ़कर 3.5 लाख सालाना हो गईं, उसके बाद जुलाई 2021 से जून 2022 तक 4 लाख से 4.3 लाख हो गईं।
    • परिणामस्वरूप उच्च न्यायालयों में लंबित ज़मानत अपीलों की संख्या लगभग 50,000-65,000 से बढ़कर 1.25 लाख से 1.3 लाख के बीच हो गई है।
  • उच्च न्यायालय और मामलों का वितरण:
    • विभिन्न उच्च न्यायालयों में मामलों का वितरण अलग-अलग था। कुछ राज्यों जैसे कि पटना, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जुलाई 2021 और जून 2022 के बीच कुल मामलों में ज़मानत अपीलों की हिस्सेदारी 30% से अधिक थी।
  • निपटान का समय और परिणाम अनिश्चितता:
    • नियमित ज़मानत आवेदनों के निपटान में लगने वाला औसत समय विभिन्न उच्च न्यायालयों में भिन्न है। कुछ उच्च न्यायालयों में निपटान का समय काफी अधिक था, जिससे समाधान प्रक्रिया में देरी देखी गई
    • जमानत के मामलों पर निर्णय लेने में देरी को ज़मानत को अस्वीकार करने के समान माना जाता है, क्योंकि इस अवधि के दौरान आरोपी जेल में रहता है।
  • अपूर्ण परिणाम डेटा:
    • डेटा ने उच्च न्यायालयों में ज़मानत अपीलों के परिणामों के संबंध में स्पष्टता की कमी को भी उजागर किया। सभी उच्च न्यायालयों में निपटाए गए लगभग 80% ज़मानत मामलों में, चाहे वह मंज़ूर हुई हो या खारिज़ हो गई हो, अपील का परिणाम अस्पष्ट या गायब था।

ज़मानत अपीलों में वृद्धि का कारण:

  • कोविड उल्लंघन और न्यायालय के कामकाज़ में व्यवधान:
    • महामारी के दौरान कोविड-19 लॉकडाउन मानदंडों के उल्लंघन से संबंधित मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • इसके अतिरिक्त इस अवधि के दौरान न्यायालयी कामकाज़ में व्यवधान के कारण लंबित ज़मानत मामलों का इस वृद्धि में योगदान हो सकता है।
      • हालाँकि न्यायालय के डेटा से निश्चित रूप से सटीक कारण का निर्धारण नहीं किया जा सकता है।
  • महामारी रोग अधिनियम, एक कारक के रूप में:
    • ज़मानत अपीलों की वृद्धि में महामारी रोग अधिनियम, 1897 की भूमिका मानी जा सकती है। 77% नियमित ज़मानत मामले ऐसे हैं जिनके विषय में विशिष्ट अधिनियम में उल्लेख नहीं है जिसके तहत अपीलकर्त्ता को कैद किया गया था, शेष 23% मामले, जिनमें विभिन्न अधिनियमों के तहत जमानत की मांग की गई उसमें महामारी रोग अधिनियम चौथे स्थान पर है।
    • यह इस अधिनियम के तहत मामलों में संभावित वृद्धि का संकेत देता है, जिससे ज़मानत अपीलों में वृद्धि हो सकती है।

ज़मानत और इसके प्रकार:

  • परिभाषा:
    • ज़मानत कानूनी हिरासत के तहत रखे गए (उन मामलों में जिन पर न्यायालय द्वारा अभी फैसला सुनाया जाना है) व्यक्ति की सशर्त/अनंतिम रिहाई है, जो आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय में उपस्थित होने का वादा करता है।
    • यह रिहाई के लिये न्यायालय के समक्ष जमा की गई सुरक्षा/संपार्श्विक का प्रतीक है।
      • अधीक्षक और कानूनी मामलों के परामर्शदाता बनाम अमिय कुमार रॉय चौधरी (1973) मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ज़मानत देने के पीछे के सिद्धांत को समझाया है।
  • भारत में ज़मानत के प्रकार:
    • नियमित ज़मानत: यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा दिया गया एक निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति को रिहा करने हेतु उपलब्ध है। ऐसी ज़मानत के लिये व्यक्ति CrPC. 1973 की धारा 437 तथा 439 के तहत आवेदन दाखिल कर सकता है।
    • अंतरिम ज़मानत: नियमित अथवा अग्रिम ज़मानत हेतु आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित होने की स्थिति में यह ज़मानत न्यायालय द्वारा अस्थायी और अल्प अवधि हेतु दी जाती है।
    • अग्रिम ज़मानत या पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत: यह एक कानूनी प्रावधान है जो आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार होने से पहले ज़मानत हेतु आवेदन करने की अनुमति देता है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 में भारत में पूर्व-गिरफ्तारी ज़मानत का प्रावधान किया गया है। इसे केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा दिया जाता है।
      • अग्रिम ज़मानत का प्रावधान विवेकाधीन है तथा न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आरोपी के पूर्ववृत्त एवं अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करने के बाद ज़मानत दे सकता है।
      • न्यायालय ज़मानत देते समय कुछ शर्तें भी लगा सकता है, जिसमें पासपोर्ट ज़ब्त करना, देश छोड़ने पर प्रतिबंध या पुलिस स्टेशन में नियमित रूप से रिपोर्ट करना आदि शामिल हैं।
    • वैधानिक ज़मानत: वैधानिक ज़मानत, जिसे डिफ़ॉल्ट ज़मानत के रूप में भी जाना जाता है, CrPC की धारा 437, 438 और 439 के तहत सामान्य प्रक्रिया से प्राप्त ज़मानत से अलग है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, वैधानिक ज़मानत तब दी जाती है जब पुलिस अथवा जाँच एजेंसी निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर अपनी रिपोर्ट/शिकायत दर्ज करने विफल हो जाती है।
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