Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में भारत को लेकर क्यों जताई गई चिंता? - श्रीनारद मीडिया

संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में भारत को लेकर क्यों जताई गई चिंता?

संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में भारत को लेकर क्यों जताई गई चिंता?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिल्ली की जहरीली हवा पर चिता जताते हुए संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन कॉप-29 में विशेषज्ञों ने भारत से कहा है कि देश अपनी क्षमता का उपयोग करते हुए अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों (एसएलसीपी) से निपटे। ब्लैक कॉर्बन, मीथेन, ग्राउंड-लेवल ओजोन और हाइड्रोफ्लोरोकॉर्बन (एचएफसी) जैसे एसएलसीपी वायु गुणवत्ता को बिगाड़ने के साथ ग्लोबल वॉर्मिंग की महत्वपूर्ण वजह बनते हैं।
एसएलसीपी ग्रीनहाउस गैसों और वायु प्रदूषकों का एक समूह है, जो जलवायु पर निकट अवधि में वॉर्मिंग प्रभाव डालता है। एसएलसीपी में कमी लाने की रणनीतियां भारत को प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मददगार साबित हो सकती हैं, बताते हुए इंस्टीट्यूट फॉर गवर्नेंस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निदेशिका (इंडिया प्रोग्राम) जेरिन ओशो और अध्यक्ष डरवुड जेल्के ने इससे जुड़े बिंदुओं पर प्रकाश डाला।

तापमान में कमी लाने में होगा सहायक

जेल्के ने बताया कि मौजूदा वॉर्मिंग में एसएलसीपी करीब आधा असर डालते हैं और यह तापमान कम करने का सबसे तेज तरीका हैं। अगर एसएलसीपी पर नियंत्रण कर लिया जाए तो हम तापमान में कमी लाने के प्रभाव को तेजी से हासिल कर सकते हैं और दीर्घकालिक अवधि के कॉर्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को धीमा कर सकते हैं।

एसएलसीपी का खात्मा इसलिए जरूरी है, क्योंकि वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पर पहुंच रहा है और 2024 के आंकड़े बता रहे हैं कि जल्द ही तापमान इस सीमा को पार कर सकता है। ओशो ने बताया कि एसएलसीपी भारत की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए भी बड़े जोखिम पैदा कर रहा है और कृषि, खाद्य सुरक्षा व श्रम जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।

अत्याधिक गर्मी से खत्म हुईं 3.4 करोड़ नौकरियां

विश्व बैंक के नतीजे बताते हैं कि अत्यधिक गर्मी के चलते भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में 3.4 करोड़ नौकरियां खत्म हुईं और इसके लिए एसएलसीपी जिम्मेदार है। मानसून के बदलते पैटर्न में भी एसएलसीपी का आंशिक असर पड़ता है और इसने फसल चक्र में गड़बड़ी की है, जिससे देश के साथ ही विदेश में भी खाद्य सुरक्षा का खतरा पैदा हो गया है।
उन्होंने कहा कि सीमा के आरपार प्रभावों को देखते हुए भारत को प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक समन्वित राष्ट्रव्यापी दृष्टिकोण की जरूरत है। इसके साथ ही भारत में सफलतापूर्वक पूरे किए गए एलईडी बल्ब प्रोग्राम की ही तरह एसएलसीपी को खत्म करने की तकनीक अपनाने के लिए वित्तीय प्रणाली लागू करने की जरूरत है। विशेषरूप से घरेलू एयर कंडीशनर में एचएफसी को समय रहते हटाने में भारत की तेजी को लेकर किगाली संशोधन में भारत का समर्थन और इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान सकारात्मक कदम हैं, लेकिन भारत के साथ सही मार्केटिंग की समस्या है।

सामान मौसम वाले राज्यों में एक जैसे उपाय अपनाने की जरूरत

सहायता पाने के लिए भारत को अपनी सफलता को वैश्विक मंच पर ज्यादा दिखाने और चर्चा को प्रभावित करना चाहिए। भारत घरेलू ऑर्गेनिक कचरे को मवेशियों का भोजन बनाने जैसी पहल का इस्तेमाल एसएलसीपी प्रबंधन में नवाचार प्रदर्शित कर वित्तीय सहायता पाने के लिए भी कर सकता है। ओशो ने भारत को वायु क्षेत्र दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी और इसके लिए अलग-अलग राज्यों में अलग समाधान अपनाने की बजाए, एक जैसे मौसम वाले राज्यों में प्रदूषण नियंत्रित करने के एक जैसे उपाय अपनाने के लिए कहा। उन्होंने समझाया कि जैसे दिल्ली के वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केवल शहर के भीतर उपाय अपनाने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि हरियाणा के सोनीपत और पानीपत जैसे औद्योगिक शहरों के प्रदूषण राजधानी को प्रदूषण की चादर में समेट लेते हैं।

वित्तीय मदद में देरी बनेगी खतरा

जलवायु वित्तीय मदद पर एक स्वतंत्र उच्चस्तरीय समूह द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के अनुसार गर्म होती पृथ्वी का तापमान कम करने के लिए कॉप-29 में मध्यस्थों को 2030 तक हर साल एक खरब डॉलर जारी किए जाने पर ध्यान देना चाहिए। यह रकम सरकारी और निजी स्त्रोतों से आनी चाहिए। 2030 से पूर्व इस वित्तीय मदद में कमी, आने वाले वर्षों पर अतिरिक्त दबाव डालेगी, परिणामस्वरूप जलवायु स्थिरता के लिए रास्ते और ज्यादा महंगे और मुश्किल हो जाएंगे।

एपी के अनुसार, कॉप-29 में की गई चर्चा में गुरुवार यह बात सामने आई कि जलवायु परिवर्तन से लड़ाई के प्रयास लगातार तीसरे वर्ष भी पृथ्वी के तापमान में प्रस्तावित कमी के पास नहीं पहुंच सके। क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर के अनुसार पृथ्वी, औद्योगिक-युग से पूर्व की तुलना में 2.7 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म होने के मार्ग पर है। इसमें चीन और अमेरिका के हालिया विकास का भी काफी योगदान है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!