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हिमाचल प्रदेश में लडकियों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 से 21 वर्ष क्यों की गई? - श्रीनारद मीडिया

हिमाचल प्रदेश में लडकियों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 से 21 वर्ष क्यों की गई?

हिमाचल प्रदेश में लडकियों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 से 21 वर्ष क्यों की गई?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिमाचल प्रदेश (HP) विधानसभा ने बाल विवाह प्रतिषेध (हिमाचल प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया, जिसका उद्देश्य महिलाओं के लिये न्यूनतम विवाह योग्य आयु 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष करना है।

  • इसका उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और महिलाओं में उच्च शिक्षा को।  प्रोत्साहित करने के लिये बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 (PCMA 2006) में संशोधन करना है
  • लैंगिक समानता के लिये इसके निहितार्थ और राष्ट्रपति की स्वीकृति की संभावित आवश्यकता के कारण इसने महत्त्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है।

महिलाओं की न्यूनतम विवाह आयु पर HP के विधेयक में क्या शामिल है?

  • ‘बच्चे’ की पुनर्परिभाषा: वर्ष 2006 के अधिनियम की धारा 2(a) में ‘बच्चे’ को 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • विधेयक में इस लिंग-आधारित भेद को हटाया गया है और लिंग की परवाह किये बिना 21 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को ‘बच्चे’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • याचिका अवधि का विस्तार: विधेयक विवाह को रद्द करने (विवाह को अमान्य और कानूनी रूप से शून्य घोषित करने) के लिये याचिका दायर करने की समय अवधि भी बढ़ाता है।
    • वर्ष 2006 के अधिनियम की धारा 3 के तहत विवाह के समय नाबालिग रहा कोई भी व्यक्ति वयस्क होने के दो वर्ष के भीतर (महिलाओं के लिये 20 वर्ष और पुरुषों के लिये 23 वर्ष की आयु से पहले) विवाह निरस्तीकरण के लिये आवेदन कर सकता है। 
    • विधेयक में इस अवधि को बढ़ाकर पाँच वर्ष कर दिया गया है, जिससे महिलाओं और पुरुषों दोनों को 21 वर्ष की नई व न्यूनतम विवाह योग्य आयु के अनुसार 23 वर्ष की आयु से पहले याचिका दायर करने की अनुमति है।
  • अन्य कानूनों पर वरीयता: एक नया प्रावधान, धारा 18A, यह सुनिश्चित करता है कि विधेयक के प्रावधान मौजूदा कानूनों और सांस्कृतिक प्रथाओं पर वरीयता प्राप्त करें, जिससे हिमाचल प्रदेश में एक समान न्यूनतम विवाह योग्य आयु स्थापित हो।

सरकार विवाह की आयु पर पुनः विचार क्यों कर रही है?

  • लिंग तटस्थता: विवाह की आयु की फिर से विचार करने का एक मुख्य कारण लिंग समानता सुनिश्चित करना है। लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष करने के पीछे सरकार का उद्देश्य इसे पुरुषों के लिये मौजूदा आयु आवश्यकता के अनुरूप बनाना है, जिससे समानता को बढ़ावा मिले।
  • स्वास्थ्य प्रभाव: कम उम्र में गर्भधारण जैसे मुद्दों का समाधान करना, जो पोषण स्तर, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर (MMR एवं IMR) और समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
  • शैक्षिक और आर्थिक प्रभाव: कम उम्र में विवाह के कारण शिक्षा और आजीविका की संभावनाओं में होने वाली गिरावट को कम करना।
    • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा विवाह की आयु बढ़ाने के निहितार्थों का आकलन करने के लिये जून 2020 में जया जेटली समिति की स्थापना की गई
      • समिति ने विवाह की आयु बढ़ाकर 21 वर्ष करने की सिफारिश की ताकि शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण और यौन शिक्षा तक पहुँच बढ़ाई जा सके।
  • सामाजिक और आर्थिक विकास: यह पुनर्परीक्षण सामाजिक और आर्थिक विकास के व्यापक लक्ष्यों के साथ संरेखित है। कम उम्र में विवाह को संबोधित करके सरकार का उद्देश्य गरीबी और सामाजिक कलंक जैसे संबंधित मुद्दों से निपटना है, जो अक्सर परिवारों को कम उम्र में विवाह करने के लिये मज़बूर करते हैं।
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