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क्या बिहार में 70 हजार स्कूलों के नाम बदल जायेंगे? - श्रीनारद मीडिया

क्या बिहार में 70 हजार स्कूलों के नाम बदल जायेंगे?

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क्या केके पाठक ने आदेश को नहीं माना?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देशभर के कई सड़क और रेलवे स्टेशनों के नाम बदलने के बाद अब बिहार में स्कूलों के नाम बदलने जा रहे है. शिक्षा विभाग ने बिहार के 70 हजार सरकारी स्कूलों का नाम बदलने की तैयारी शुरू कर दी गई है. सबकुछ ठीक रहा तो इसी सत्र में इन स्कूलों का नाम बदल जायेगा. इसकी प्रक्रिया लोकसभा चुनाव के बाद शुरू कर दी जाएगी.

लोकसभा चुनाव के बाद बदलेंगे नाम

शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसा बिहार के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय और उत्क्रमित मध्य विद्यालय का नाम बदलने जा रहा है. लोकसभा चुनाव के बाद इसी सत्र में स्कूलों का नाम बदल दिया जाएगा. इसको लेकर शिक्षा विभाग राज्य के सभी 38 जिलों से नवसृजित और उत्क्रमित विध्यालयों से जानकारी जुटाने में लगा है. इन स्कूलों के नाम राजकीय या देश और राज्य के महापुरुषों के नाम पर रखे जाएंगे. शिक्षा विभाग ने सभी जिलों को नवसृजित और उत्क्रमित स्कूलों के लिए देश और राज्य के महापुरुषों के नामों की सूची तैयार करने को कहा है.

मुंगेर के 90 स्कूलों के बदल जायेंगे नाम

भागलपुर के जिला शिक्षा पदाधिकारी राजकुमार शर्मा ने स्थानीय मीडिया को बताया है कि भागलपुर के 430 नवसृजित और 116 उत्क्रमित विद्यालय के नाम बदलें जाएंगे, जबकि बांका में 75 नवसृजित विद्यालय, लखीसराय के 308 नवसृजित और 194 उत्क्रमित विद्यालय, सुपौल के 542 नवसृजित और 407 उत्क्रमित विद्यालय के नाम बदले जाएंगे. वहीं मुंगेर के 21 नवसृजित और 69 उत्क्रमित विद्यालय, अररिया के 160 नवसृजित और 100 उत्क्रमित और मधेपुरा के 219 स्कूलों के नाम बदले जाएंगे.

स्कूलों के लंबे नाम से हो रही थी दिक्कत

शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इन स्कूलों का नाम बदलने के पीछे एक यह भी कारण है कि ई-शिक्षा कोष और यू-डायस पोर्टल में एंट्री करने के दौरान इन स्कूलों के बड़े-बड़े नाम होने से काफी परेशानी होती है. परेशानी को देखते हुए शिक्षा विभाग ने स्कूलों का नाम बदलने का फैसला लिया है. ऐसे स्कूलों के नया नाम ई-शिक्षा कोष और यू-डायस पोर्टल पर एंट्री की जाएगी. इसके बाद ये स्कूल उसी नाम से जाने जाएंगे.

क्या केके पाठक ने आदेश को नहीं माना?

बिहार में गजब हो रहा है। राजभवन और शिक्षा विभाग के बीच टकराव खत्म होने का नाम नहीं ले रहा। शिक्षा विभाग विश्वविद्यालयों के वीसी और दूसरे अधिकारियों की बैठक बुलाता है तो राजभवन की ओर से उन्हें मना कर दिया जाता है। राज्यपाल चांसलर होने के नाते वीसी की बैठक बुलाते हैं तो उसमें सूचना के बावजूद शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक शिरकत करने से परहेज करते हैं। कई बार तो शिक्षा विभाग का कोई अधिकारी बैठक में शामिल नहीं होता।

शिक्षा विभाग की ओर से बुलाई बैठकों से किनारा करने वाले विश्वविद्यालयों के अधिकारियों के खिलाफ अपर मुख्य सचिव वेतन कटौती और एफआईआर तक का आदेश दे चुके हैं। विश्वविद्यालयों के खाता संचालन पर रोक लगा चुके हैं। पर, विश्वविद्यालयों के वीसी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। राजभवन भी उनका साथ दे रहा है। इस तनातनी से छात्रों का कितना भला हो रहा है या होगा, यह किसी को नहीं पता। दोनों की अपनी-अपनी दलीलें हैं।

बैठक में नहीं गए केके पाठक

राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने नौ अप्रैल को वीसी की बैठक बुलाई। नियमानुसार शिक्षा विभाग को भी बैठक में शामिल होने की सूचना दी गई। खासकर अपर मुख्य सचिव केके पाठक को बैठक में आने के लिए कहा गया था। पर, वे राजभवन की किसी बैठक में न पहले कभी शामिल हुए और न नौ अप्रैल की बैठक में ही आए। इससे राज्यपाल काफी खफा हैं। उन्होंने बैठक में अपनी नाराजगी भी जाहिर की। राज्यपाल ने कहा कि वे साल भर से विश्वविद्यालयों की स्थिति सुधारने में लगे हैं। परीक्षाएं समय पर हों, सत्र नियमित चले, इसके लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। शिक्षा विभाग इसमें सहयोग की बजाय अड़ंगा डाल रहा है।

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