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अखंड सौभाग्‍य के लिए महिलाओं ने किया हरितालिका तीज व्रत - श्रीनारद मीडिया

अखंड सौभाग्‍य के लिए महिलाओं ने किया हरितालिका तीज व्रत

अखंड सौभाग्‍य के लिए महिलाओं ने किया हरितालिका तीज व्रत

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24  घंटा निर्जला रहकर किया व्रत

श्रीनारद मीडिया, उतम पाठक, दारौंदा, सीवान (बिहार):

सीवान जिला के सभी प्रखंडों सहित दारौंदा प्रखंडाधीन विभिन्न पंचायतों के शिवालयों तथा घरों में सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध व्रत हरितालिक तीज 6 सितम्बर शुक्रवार को सौभाग्यवती महिलाएं अपने सौभग्य को अक्षुण्ण बनाये रखने तथा कन्याये भावी जीवन के सुखी दाम्पत्य जीवन को प्राप्त करने के लिए इस व्रत को तपस्या की तरह निर्जल निराहार रहकर पूर्ण करती हैं।

हरितालिका तीज व्रत हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को यह व्रत किया जाता हैं।
सुहागिन महिलाएं निराहार रहकर अपने पति की लंबी आयु, सुख समृद्धि और अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए मां पार्वती और भगवान शिव की विधि विधान से पूजन करती हैं।

इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रहकर शाम को स्नान कर स्वच्छ मिट्टी से भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा बनाकर ब्रह्मण द्वारा विधि विधान से मंत्रोच्चार के द्वारा चंदन,अक्षत,रोली,कुंकुम,फूलबिल्वपत्र,कंद मूल,फल और श्रृंगार सामग्री चढ़ाकर कथा सुनती हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, इस व्रत को हरितालिका तीज इसलिए कहा जाता है कि सखियां माता पार्वती को हरण कर उन्हें जंगल में ले गई थी। “हरत” का तात्पर्य हरण से है और”आलिका”का अर्थ सखियों से हैं।

हिमालय राज ने माता पार्वती की शादी जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी से करने का निर्णय लिया। यह सुनकर माता पार्वती बहुत निराश हुई।परंतु माता पार्वती मन ही मन महादेव को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थी। पिता के निश्चय से असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई। जिसके बाद पार्वती जी की सखियों ने उनका हरण कर घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में छिपा दिया।

 

इसके बाद पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए निर्जला रहकर कठोर तपस्या शुरू किया। जिसके लिए उन्होंने ने बालू के शिवलिंग की स्थापना की। संयोग से हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का वह दिन था। उनकी कठोर तपस्या को देख महादेव प्रसन्न हुए और माता पार्वती को उनकी मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया।

अगले दिन अपने सखियों के साथ माता पार्वती ने पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया।
तब पिता हिमालय राज ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से शास्त्रोक्त विधि विधान से किया।

व्रती कथा सुनने के पश्चात शिव पार्वती की आरती की दूसरे दिन प्रातः काल सौभाग्यवती महिलाएं बास की सिपुली में चीना, साई के सतुआ,पुडुकिया ,फल, मिठाई और वस्त्र के साथ श्रृंगार सामग्री को छू कर ब्रह्मण को दान दिया और पारण कर व्रत सम्पन्न  करेंगी।

 

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