छपरा की 11 साल की अलख्या ने लिखी वन्यजीव संरक्षण का संदेश देनेवाली पुस्तक
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
वर्तमान कट पेस्ट कल्चर के दौर में अलख्या ने पुस्तक लिखकर सिर्फ अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन ही नहीं किया अपितु वन्य जीव और जैव विविधता के संरक्षण का भी दिया संदेश, एडवोकेट माता ने बच्ची को रखा मोबाइल से दूर और क्रिएटिव लेखन के लिए करती रहीं प्रेरित
छपरा। आज तकनीकी और डिजिटल दौर में कट और पेस्ट कल्चर हावी है। कुछ विद्वतजन इस तरफ संकेत भी कर रहे हैं कि कट और पेस्ट कल्चर के हावी होने के कारण बच्चों की रचनात्मकता पर नकारात्मक असर पड़ रहा है। ऐसे में छपरा की मूल निवासी मात्र 11 वर्ष की अलख्या आसमी सिंह ने कमाल कर दिखाया है। अलख्या ने ‘ द एडवेंचर इन गिर’ पुस्तक लिखकर न सिर्फ अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन किया है अपितु वन्य जीव और जैव विविधता के संरक्षण का संदेश भी दिया है। यह पुस्तक पारिस्थितिक संरक्षण में आपसी सहयोग और समन्वय के महत्व को प्रतिपादित भी कर रही है।
मालूम हो कि छपरा के सदर प्रखंड के इनई गांव की मूल निवासी अलख्या अभी दिल्ली में अपने माता पिता के साथ रहती है। उनके पिता राकेश कुमार सिंह पेशे से इंजीनियर हैं और माता पूजा सिंह दिल्ली हाइ कोर्ट में एडवोकेट हैं। उनके दादा अखिलेश्वर प्रसाद सिंह छपरा के सदर प्रखंड के इनई गांव में रहते हैं। अलख्या अभी मानव भारती इंडिया इंटरनेशनल स्कूल, पंचशील, दिल्ली की कक्षा 6 की छात्रा है। अलख्या के परिवार से जुड़े कई रिश्तेदार सीवान में भी रहते हैं।
अलख्या को बचपन से ही लिखने का शौक रहा है। वह शुरुआती कक्षाओं में स्टोरी लेखन करती रही और अपने लेखन कौशल की उत्कृष्टता का परिचय देती रहीं। माता पूजा सिंह ने अपनी बेटी की प्रतिभा को पहचाना और उसे सदैव प्रोत्साहित करती रहीं और बच्ची को मोबाइल तथा अन्य डिजिटल गैजेट्स से दूर रखकर उसे क्रिएटिव लेखन के लिए प्रेरित करती रहीं। पिता राकेश सिंह भी बिटिया का उत्साहवर्धन करते रहे। परिणाम यह हुआ कि अलख्या ने ‘ द एडवेंचर इन गिर’ पुस्तक लिख डाली। यह पुस्तक अभी ब्री बुक्स पर उपलब्ध है। अलख्या कहानी लेखन भी करती रहती हैं और अभी दो पुस्तकें और लिख चुकी हैं जो प्रकाशन के इंतजार में हैं। शिक्षाविद् सह लेखक डॉक्टर गणेश दत्त पाठक का कहना है कि आज के दौर में बच्चे शुभकामना संदेश लिखने के लिए भी जब कॉपी पेस्ट का सहारा ले रहे हैं। जिससे उनकी रचनात्मकता पर असर पड़ रहा है। ऐसे में बच्चों की रचनात्मकता को यदि परिवार के स्तर पर सराहना और संबल मिले तो हमारी अलख्या जैसी प्रतिभाएं कमाल दिखा सकती हैं।
अलख्या ने ‘ द एडवेंचर ऑफ गिर’ में उन पांच बच्चों की कहानी लिखा है जो गुजरात के गिर वन में स्कूल प्रोजेक्ट के लिए जाते हैं। उस दौरान जंगल में एक हाथी का बच्चा संकट में फंसा दिखता है। बच्चे उसे बचाने के लिए समन्वित प्रयास करते हैं और सफल भी होते हैं। शिक्षाविद् सह लेखक डॉक्टर गणेश दत्त पाठक बताते हैं कि पुस्तक में बेहद सरल भाषा में अपने शब्दों को सहजता से पिरोकर अलख्या ने सिर्फ अपनी रचनात्मक उत्कृष्ट लेखन कौशल का ही प्रदर्शन नहीं किया है अपितु वन्य जीव और जैव विविधता के संरक्षण का संदेश भी दिया है। आज के कट पेस्ट कल्चर और पारिस्थितिक अवनयन के दौर में यह प्रयास बेहद सराहनीय है। यह पुस्तक पारिस्थितिक संरक्षण में समन्वित प्रयास के महत्व को भी प्रतिपादित करती है।
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