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390 वर्ष पहले आज ही के दिन शाहजहां ने किया था तामीर का वादा. - श्रीनारद मीडिया

390 वर्ष पहले आज ही के दिन शाहजहां ने किया था तामीर का वादा.

390 वर्ष पहले आज ही के दिन शाहजहां ने किया था तामीर का वादा.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जवां है मोहब्बत है, दीवाना है जमाना। शहंशाह शाहजहां और अर्जुमंद बानो बेगम (मुमताज) की रूहानी मोहब्बत, ताजमहल के रूप में आज भी जिंदा है। धवल संगमरमरी सौंदर्य के सरताज ताजमहल के हुस्न का जमाना दीवाना है। गाइड सैलानियों को मुमताज द्वारा शाहजहां से उसकी याद में ऐसी इमारत बनाने का वादा लेने की दास्तां सुनाते हैं, जिससे उसे दुनिया हमेशा याद रखे। शाहजहां ने आज ही के दिन मुमताज से ऐसा वादा किया था। उसने ताजमहल की तामीर कराकर इस वादे को न केवल निभाया, बल्कि उसे हमेशा के लिए अमर बना दिया। सैलानी जब भी यहां ताजमहल देखने आएंगे तो मुमताज की याद में शाहजहां द्वारा इसके निर्माण की दास्तां हमेशा सुनाई जाती रहेगी।

मुमताज का निधन 17 जून, 1631 को बुरहानपुर में 38 वर्ष की आयु में हुआ था। उसके निधन को गुरुवार को 390 वर्ष पूरे हो गए। अास्ट्रियन लेखिका ईबा कोच ने अपनी किताब ‘दि कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवरफ्रंट गार्डंस आफ आगरा’ में मुमताज की मृत्यु से लेकर उसके दफन और अधूरे ताजमहल में उर्स मनाने का जिक्र किया है। मुमताज का पहला दफन बुरहानपुर में जैनाबाद गार्डन में हुआ। इसके बाद मुमताज के मकबरे के लिए उचित स्थान की तलाश की गई। राजा जयसिंह की आगरा में यमुना किनारा स्थित जगह को इसके लिए उपयुक्त पाया गया। शाहजहां ने इसके बदले में चार हवेलियां राजा जयसिंह को दीं। दिसंबर के मध्य में बुरहानपुर से मुमताज के शव को आगरा लाने की यात्रा शुरू हुई। आगरा आने के बाद आठ जनवरी, 1632 को मुमताज के शव का दफन ताजमहल के उद्यान में जिलाऊखाना में किया गया।

22 जून, 1632 को मुमताज का पहला उर्स जिलाऊखाना में मनाया गया। 26 मई, 1633 को मुमताज का तीसरा उर्स व्हाइट प्लेटफार्म पर मनाया गया। इससे पूर्व उसका तीसरा दफन यहां किया जा चुका था। ऊपरी कब्र के चारों ओर सोने की जाली लगाई गई थी।

एप्रूव्ड टूरिस्ट गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमसुद्दीन बताते हैं कि मुमताज का निधन बच्चे को जन्म देते समय हआ था। इसलिए उसे शहीद का दर्जा मिला और उसका उर्स मनाया गया। इतिहासकार राजकिशाेर राजे ने अपनी पुस्तक तवारीख-ए-आगरा में मुमताज का उर्स बंद होने की जानकारी दी है। राजे के अनुसार सैयद बंधुओं ने 1719 में अागरा पर हमला कर शाही कोष पर कब्जा कर लिया था। इसमें मुमताज की कब्र पर चढ़ाई जाने वाली मोतियों की चादर भी थी। तभी से मुमताज के उर्स का आयोजन बंद हो गया।

राजा जयसिंह को दी थीं यह हवेलियां

शाहजहां ने राजा जयसिंह को उनसे ली गई जगह के बदले चार हवेलियां दी थीं। इनमें राजा भगवानदास, राजा माधौसिंह, रूपसी बैरागी और चांद सिंह की हवेलियां शामिल थीं।

ताजमहल में दफन हैं शाहजहां की तीन और बीवियां

ताजमहल परिसर में मुमताज के अलावा शाहजहां की तीन बीवियां और दफन हैं। इनमें पूर्वी गेट के नजदीक सरहिंदी बेगम, पश्चिमी गेट के नजदीक फतेहपुरी बेगम और संदली मस्जिद के निकट कंधारी बेगम का मकबरा है। यह तीनों मकबरे पर्यटकों के लिए बंद हैं।

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