नवरात्रि के चौथे दिन श्रद्धालुओं ने कूष्मांडा देवी की पूजा की।

नवरात्रि के चौथे दिन श्रद्धालुओं ने कूष्मांडा देवी की पूजा की।

श्रीनारद मीडिया, दारौंदा, सिवान (बिहार)।

जिला सहित दारौंदा प्रखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में नवरात्रि के चौथे दिन गुरुवार और शुक्रवार को मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप कूष्मांडा देवी की पूजन अर्चन श्रद्धालुओं ने किया।

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देवी अपनी मंद, हल्की मुस्कान के द्वारा अंड अर्थात् ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के रूप में पूजा जाता हैं।

जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब इन्हीं देवी ने रचना की थी। अतः यही सृष्टि की आदि- स्वरूपा , आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यलोक में है।

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही देदीप्यमान हैं।इन्हीं के तेज और प्रकाश से दशो दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं।ब्रह्माण्ड के सभी प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया हैं।

अतः ये अष्टभुजी देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल – पुष्प, अमृत कलश, चक्र तथा गदा हैं।

ये सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली माता का वाहन शेर हैं।

** माता का प्रिय रंग और प्रसाद:-

माता कूष्मांडा को पीले रंग के फूल, चमेली के फूल,

मालपुआ, हलुआ, पेठा और दही बहुत पसंद हैं।

इन सबों को अर्पित करने से ज्ञान में वृद्धि और निर्णय शक्ति विकसित होती हैं।

अतः संस्कृत भाषा में कूष्मांड को कुम्हड़ा कहते हैं। कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। माता को श्वेत कद्दू की बलि भी चढ़ाई जाती हैं।

मां कूष्मांडा की उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग- शोक दूर होकर आयु – यश में वृद्धि होती हैं।

माता कूष्मांडा देवी अल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं।

मां कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग- शोक मिट जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती हैं।

यदि व्यक्ति सच्चे हृदय से इनका शरणागत बन जाये तो उसे अत्यंत सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो सकती हैं।

अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए।

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