महिलाओं से दुष्कर्म का खतरा 44 फीसद बढ़ा, कैसे कम हो सकती है दर्रिंदगी?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

दिल्ली में एक बच्ची के साथ दुष्कर्म और फिर हत्या का मामला सामने आया है। इस बार भी कुछ दल घटना को राजनीतिक और जातीय रूप देने लगे हैं। जब भी दुष्कर्म होता है, एक महिला के साथ होता है जाति और धर्म के साथ नहीं। ऐसे में चर्चा सिर्फ दुष्कर्म की होनी चाहिए, जिससे कि भारत में दुष्कर्म मुक्त समाज की स्थापना हो सके।

एनसीआरबी के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में महिलाओं के साथ दुष्कर्म का खतरा 44 फीसद तक बढ़ गया है। 2010 से 2019 के बीच भारत में दुष्कर्म के कुल 3,13,289 के मामले दर्ज हुए हैं। इससे देश में महिलाओं की वर्तमान स्थिति को देखा जा सकता है। हाल में दुष्कर्म की घटनाओं पर गौर करें तो इसमें एक बात नई दिख रही है।

अत्यधिक में साक्ष्य मिटाने के लिए लड़कियों को जलाया जा रहा है या उन्हें मारा जा रहा है। यह सब निर्भया कांड के बाद से ज्यादातर दिख रहा है। इसका कारण कानून में हुए बदलाव को माना जा रहा है। ऐसा दुष्कर्मी सुबूत मिटाने और खुद को बचाने के लिए कर रहे हैं। साफ है सिर्फ कठोर कानून इस समस्या का इलाज नहीं है।

मनोविज्ञानियों के अनुसार हमारे दिमाग की बनावट इस तरह की है कि बार-बार पढ़े, देखे, सुने या किए जाने वाले कार्यों और बातों का असर हमारी चिंतनधारा पर होता है। साथ ही यह हमारे निर्णयों और कार्यों का स्वरूप भी तय करता है। इसलिए पोर्न या सिनेमा और अन्य डिजिटल माध्यमों से परोसे जाने वाले साफ्ट पोर्न का असर हमारे दिमाग पर होता है। यह हमें यौन-हिंसा के लिए मानसिक रूप से तैयार और प्रेरित करता है।

इसलिए अभिव्यक्ति या रचनात्मकता की नैसर्गिक स्वतंत्रता की आड़ में महिलाओं का वस्तुकरण करने वाली चीजों की वकालत करने से पहले हमें थोड़ा सोचना होगा। हमें अपने सामाजिक ताने-बाने को बदलने की भी जरूरत है। इसके लिए स्कूलों के पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए, ताकि बच्चों में महिलाओं के प्रति इज्जत का भाव बचपन से ही आए। सही शिक्षा और स्वस्थ माहौल तैयार करके ही हम उन्हें भविष्य के लिए एक बेहतर नागरिक के तौर पर तैयार कर सकते हैं।

आज अदालतों में केसों का अंबार लगा है। देश में न्याय की प्रक्रिया इतनी जटिल हो गई है कि पीड़ित हताश होने लगे हैं। हमें न्याय की प्रक्रिया को भी आसान करना होगा, तभी हर व्यक्ति को समय से न्याय मिल पाएगा। कोर्ट में दुष्कर्म के हजारों मामले दबे पड़े हैं। इनको जल्द-से-जल्द निपटाने की जरूरत है। मामलों में सजा सुनाई जाने लगेगी, तो फिर अपराधियों में कानून का एक खौफ हो जाएगा। वे गुनाह करने से पहले सौ बार सोचेंगे। साफ है दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध से देश को मुक्ति दिलाने के लिए कानून और समाज दोनों को ही आगे आना होगा। एकजुट प्रयास से ही इस घृणित अपराध पर रोक लगाई जा सकती है।

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