क्या भारतीय लोकतंत्र को एक सफल लोकतंत्र कहा जा सकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

देश में लोकसभा के चुनावों का दौर चल रहा है और कहा यह जाता है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत में चुनावों को एक उत्सव की भाँति लिया जाता है। भारत के लोकतंत्र की वैश्विक प्रतिष्ठा भी है और हमारा निर्वाचन आयोग कई विकासशील एवं अल्प-विकसित देशों में होने वाले चुनावों के संचालन में सहयोग भी देता है।

  • रिपोर्ट में दुनिया के 167 देशों को शासन के आधार पर चार तरह के पैरामीटर्स पर रैंकिंग दी गई है, जिनमें पूर्ण लोकतंत्र, दोषपूर्ण लोकतंत्र, हाइब्रिड शासन और सत्तावादी शासन शामिल हैं।
  • 167 देशों में केवल 20 देशों को पूर्ण लोकतांत्रिक देश बताया गया है और इसके तहत 167 देशों की केवल 4.5 फीसदी आबादी शामिल है।
  • सबसे ज़्यादा 43.2 फीसदी आबादी दोषपूर्ण लोकतांत्रिक देशों में बसती है और इसके तहत कुल 55 देश शामिल हैं।
  • हाइब्रिड शासन के तहत 39 और सत्तावादी शासन के तहत 53 देशों को शामिल किया गया है।
  • मध्य-अमेरिका का कोस्टा रिका एकमात्र ऐसा देश है जिसने दोषपूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी से निकलकर पूर्ण लोकतंत्र की श्रेणी में जगह बना ली है।
  • मध्य अमेरिका के ही निकारागुआ में लोकतंत्र पर भरोसा कम हुआ है और वह दोषपूर्ण लोकतंत्र से सत्तावादी शासन की श्रेणी में चला गया है।
  • 2017 के मुकाबले 2018 में जहाँ 42 देशों के कुल स्कोर में कमी आई है, वहीं 48 देश ऐसे भी हैं जिनके कुल अंकों में बढ़ोतरी हुई है।
  • रिपोर्ट के मुताबिक पहचान की राजनीति भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषता है। यानी यहाँ किसी भी पार्टी के एक चेहरे के आधार पर वोट डालने का चलन प्रभावी रूप से है। यही कारण है कि एक सामान्य उम्मीदवार जो किसी पार्टी से ताल्लुक नहीं रखता है, उसे अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिये बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
  • रिपोर्ट में भारत की मुक्त और स्वतंत्र चुनाव प्रक्रिया की प्रशंसा भी की गई है। यही वज़ह है कि चुनाव प्रक्रिया के मामले में भारत को 9.17 अंक मिले हैं। लेकिन दूसरी तरफ, सरकार की कार्यशैली को लेकर 6.79 अंक दिये गए हैं।
  • रिपोर्ट में भारत सरकार और संवैधानिक संस्थाओं के बीच टकराहट पर भी चिंता जताई गई है। साथ ही, किसानों, रोज़गार और संस्थागत सुधार के मामले में सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़ा किया गया है। यही वज़ह है कि भारत को दोषपूर्ण लोकतंत्र वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है।

क्या है वर्तमान स्थिति?

  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की लगभग 36 करोड़ आबादी अभी भी स्वास्थ्य, पोषण, स्कूली शिक्षा और स्वच्छता से वंचित है। दूसरी तरफ, देश का एक तबका ऐसा है जिसे किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है।
  • विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार, भारत की राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्से पर सिर्फ 1 फीसदी लोगों का कब्ज़ा है और यह असमानता लगातार तेज़ी से बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय अधिकार समूह Oxfam के मुताबिक, भारत के इस 1 फीसदी समूह ने देश के 73 फीसदी धन पर कब्ज़ा किया हुआ है।
  • लैंगिक भेदभाव भी बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। विश्व आर्थिक फोरम द्वारा जारी जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 108वें पायदान पर है और UNDP द्वारा जारी लिंग असमानता सूचकांक-2017 में भारत को 127वें स्थान पर रखा गया है।
  • लोकतंत्र का चौथा खंभा माने जाने वाले मीडिया की आज़ादी भी सवालों के घेरे में है। दरअसल, पेरिस स्थित गैर-सरकारी संस्था ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2018 में भारत पहले की तुलना में दो स्थान नीचे उतरा है और इसे 138वाँ स्थान मिला।
  • इन 71 वर्षों में अन्य बातों के अलावा सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद और कट्टरवाद को भी प्रश्रय मिला। इसकी वज़ह से असहिष्णुता की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। जातिवाद की जड़ें लगातार गहरी होती जा रही हैं।

निस्संदेह इस तरह की परिस्थितियाँ लोकतंत्र की कामयाबी की राह में बाधक बनती है।

बहुत कुछ करना बाकी है

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