“कन्या पूजन पर विशेष”  कन्या नहीं तो दुनिया नहीं

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श्रीनारद मीडिया‚  सेंट्रल डेस्कःʺ

पूरे ब्रह्मांड में भारत ही एक ऐसा देश है जहां इंसान के रूप में भी भगवान को पूजा जाता है,जिसका जीता जागता उदाहरण नवरात्र के महानवमी की पावन बेला में कन्या पूजन है ।
वाकई में यह अपने आप में अद्भुत अद्वितीय,अलौकिक , बेमिशाल और मनोरम दृश्य होती है जब हम आप नौ कन्याओं को देवी का स्थान देकर उनका विधिवत पूजा अर्चना आरती सहित उन्हें विशुद्ध , स्वादिष्ट एवं पवित्र भोजन कराते हुए अपने धार्मिक भावना के उनके आगे खुद को समर्पित किया जाता है साथ साथ अपने हर मनोकामना पूर्ण करने हेतु उनके आगे अनुनय विनय किया जाता है , जो अपने आप में मिशाल हैं।
कितना अच्छा लगता है जब अपने समाज की छोटी छोटी बेटियों को शक्ति स्वरूपा मां भगवती मानकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं और उनको साक्षात दुर्गा मानते हैं।
ये आस्था पूर्ण भावनाए उस आशय को चरितार्थ करती है जिसके माध्यम से यह कहा जाता है कि मानो तो देव नहीं तो पत्थर यानी अगर हमारे अंदर में भावनाएं जागृत रहती हैं तो हम पत्थर को भी देवता या भगवान मानकर पवित्र आत्मा से उनकी पूजा अर्चना करते हैं और उनको अपने से सर्वोपरि मानते हैं वाकई में यह सिर्फ हमारे हिंदुस्तानी संस्कृति में ही संभव है नहीं तो विश्व के किसी भी ऐसे देश का नाम आप रखिए जहां महिला के इस बाल रूप को देवी का रूप दिया जाता हो शायद इसी तर्ज पर संस्कृति प्रधान देश भारत को विश्व का गुरु भी कहा जाता है।
लेकिन दुर्भाग्यवश आए दिन मीडिया की सुर्खियों में हमारे बीच रहने वाली इन्हीं बेटियों में से किसी बेटी की इज्जत अस्मत लूट जाने वाली खबरें बनती रहती है और साथ-साथ हम लोग मूक दर्शक की तरह तमाशा देखने वालों की श्रेणी में खड़े हो जाते हैं ,ज्यादा से ज्यादा इतना ही होता है कि शासन-प्रशासन उन्हें सजा देने के लिए अपनी तत्परता दिखाती है और उन्हें जेल में बंद कर दिया जाता है या इक्के लोगों को फांसी पर लटका दिया जाता है और यह बात मीडिया के माध्यम से सुनने को मिलती है कि फलाने मां को बहुत बड़ी सुकून मिली हैं कि उसकी बेटी की बात अस्मत से खेलने वाला या उसकी जिंदगी बर्बाद करने वाले को आज फांसी के तख्ते पर लटकाया जा रहा है, यह बहुत बड़ी खुशखबरी है।
आप ही बताइए कि क्या अपनी बेटी को खो देना या अपनी इज्जत प्रतिष्ठा को खो देने के बाद भी उस माँ के लिए अपनी दिवंगत या अस्मत को लुटाई बेटी के लिए खुशखबरी शब्द भी बचती है क्या?
हमारा सवाल आप सभी से है,यह तमाशा नहीं तो और क्या है ?एक तो उन अभागे मां-बाप का सब कुछ लुट जाता है और उसके लुटे हुए घर के नाम पर अपना टी आर पी बटोरना क्या अच्छी बात है?
क्या कभी हमारा ध्यान इस तरफ गया है की दौलत प्रधान इस युग में क्या अब यही सब बच गया है की इंसानियत बाजार में बिकने लगे और उसकी मुंह मांगी कीमत मिलने लगे!
क्या हम लोगों ने कभी सोचा है कि हम जिन बेटियों को देवी का रूप देते हैं तो उनके रहन-सहन उनके‌ पहनने ओढ़ने, आधारभूत संस्कार जैसे जिंदगी जीने संबंधित आवश्यक गतिविधियों पर हमें पूर्ण रूप से ध्यान देना चाहिए।
सच पूछिए तो युग चाहे सतयुग ,त्रेता या कोई भी रहा हो सकारात्मकता के साथ नकारात्मकता सदैव अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है और हमेशा महिलाओं को शिकार बनाने का प्रयास किया जाता रहा है शायद उस यूग को सतयुग इसलिए कहा जाता था कि वहां अत्याचार होते ही कोई न कोई इस अत्याचार को मिटाने हेतु खड़ा हो जाता था और उसे मिटा कर ही दम लेता था।
लेकिन आज हम क्या करते भगवान को पत्थर के रूप में पूजने हेतु करोडो रुपए खर्च कर मंदिर निर्माण तो कर देते हैं लेकिन जब मनमानी करने वाली बात आती है तो हम सबकुछ भूल जाते हैं, बात जब धार्मिक आस्था की होती है तो हम कन्याओं की पूजा करते हैं और वास्तविकता की पटल पर हम ऐसे घिनौने तस्वीर अंकित कर देते हैं जिसको देखने की बात तो दूर महसूस करने पर भी हम अपने आप से घृणा करने पर मजबूर हो जाते हैं।
कहने के लिए तो इतनी बातें हैं जिसको प्रस्तुत करने के लिए शब्द कम पड़ जाएंगे लेकिन हमारी बेटियों की समस्याओं से जुड़ी हुई बातें खत्म नहीं होगी। फिर भी हमें अपनी वास्तविकता को महसूस करते हुए यह तो ध्यान देना ही होगा कि आज पूरे भारत देश में अपने अपने क्षेत्रीय संस्कृति के अनुसार कन्या पूजन के अवसर पर छोटी-छोटी बच्चियों को देवी के रूप में पूजा जाता है तो उन बेटियों को शक्ति स्वरूपा दुर्गा की सभी शक्तियों से अवगत कराने हेतु हम आप अपने सुसंस्कार ,अपने शास्त्र ज्ञान सहित व्यवहारिक ज्ञान जरूर प्रदान करें क्योंकि अगर हम आप अपने बच्चे बच्चियों को समय पर सुसंस्कार सहित आत्म रक्षा का ज्ञान एवं व्यवहारिक ज्ञान से अवगत कराएंगे तो ऐसी नौबत कभी नहीं आएगी और अगर आएगी भी तो वे बेटियां मां दुर्गे की तरह उन दुष्टों का संहार अपने दम पर करके ही दम लेगी।
आज हमारा देश पश्चिमी सभ्यता को अपनाने के की अंधी दौर में शामिल होकर सामाजिक रूप अपंगता का शिकार होते जा रहा है क्योंकि यहां अधिकांश लोग फैशन के नाम पर अपनी बेटियों को अंग प्रदर्शन करने वाले छोटे छोटे कपड़े पहनने पर कोई रोक-टोक नहीं करते या इस फैशन को मॉडर्न फैशन कहकर बढ़ावा देते हैं।
यहाँ तक की निकट भविष्य में किसी अनहोनी घटना वाली कुपरिस्थितियों का ध्यान नहीं रखते हैं और जब उनके साथ ये घटनाएं घटित हो जाती है तो अपनी किस्मत का रोना रोने लगते है।
कुम्हार द्वारा मिट्टी से बर्तन बनाए जाने वाले प्रक्रिया को अपने बच्चों पर लागू करना होगा क्योंकि कच्ची मिट्टी से वह मनचाहा बर्तन तो बना लेता है लेकिन जब वही आग में तपकर बाहर निकलता हैं कुम्हार उसके रूप को बदलने में असमर्थ हो जाता है और उसके ज्यादा जोर जबरदस्ती करने पर वो बर्तन टूटकर अपना वजूद खो देता है।
तो आइए आज हम इस कन्या पूजन के अवसर पर यह संकल्प लें कि जिन बेटियों को हम आज पूजते हैं उन्हें सदैव पूजनीय ही समझे और उनकी रक्षा सुरक्षा का दायित्व अपने आप से ही निभाए और उन्हें उनकी शक्तियों अवगत कराते हुए उन्हें शक्तिमान बनाने में अपनी अहम भूमिका निभाए, और अपने मन में यह गांठ बांध ले की बेटी है तो मां है ,बेटी है तो दुनिया है ,बेटी है तो हम सब हैं, अगर बेटी नहीं तो इंसान की जिंदगी के नाम पर दुनिया में कुछ भी नहीं।
कन्या सिर्फ महानवमी पर पूजी जाने वाली कुछ देर चलने वाली फिल्म की कोई अस्थाई पात्र नहीं है की उसे चन्द घंटो के बाद भूलने वाली बात नही होती हैं वो तो हमेशा पूजनीय थी है और रहेगी। कन्या हमारी जिम्मेदारी हैं, कन्या हमारी मान है सम्मान हैं, देवी दुर्गा है सर्व शक्तिमान हैं। अंत मे यह कहा जा सकता हैं, कन्या नही तो दुनिया नही।जय माता दी ??
साभार##
डॉ अरविंद आनंद
9709810468
7479723760

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