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भारत में बीमा क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? - श्रीनारद मीडिया

भारत में बीमा क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

भारत में बीमा क्षेत्र के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महामारी की प्रतिक्रिया में बीमा क्षेत्र (Insurance Sector) में अभूतपूर्व परिवर्तन हुए हैं, जहाँ व्यावसायिक व्यवधानों को कम करने के लिये एक त्वरित कार्यात्मक समायोजन की आवश्यकता उत्पन्न हुई थी। बीमाकर्ताओं (Insurers) ने बिक्री, ग्राहक सेवा और दावा प्रबंधन के डिजिटलीकरण को बढ़ाकर तथा अपने कर्मियों को एक ‘हाइब्रिड वर्किंग मॉडल’ में कार्य-सक्षम बनाकर इस संकट का त्वरित जवाब दिया ।

  • भारत अगले दशक में दुनिया का छठा सबसे बड़ा बीमा बाज़ार बनने की राह पर है, जहाँ नॉमिनल लोकल करेंसी के संदर्भ में बीमा प्रीमियम प्रति वर्ष 14% के औसत से बढ़ रहा है। हालाँकि, बीमा क्षेत्र को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।

भारत में बीमा क्षेत्र की वर्तमान स्थिति

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार भारत का बीमा बाज़ार आने वाले दशक में वैश्विक स्तर पर सबसे तेज़ी से विकास करते बाज़ारों में से एक के रूप में उभरने के लिये तैयार है।
  • बीमा नियामक निकाय IRDAI के अनुसार, भारत में बीमा प्रवेश या पैठ (insurance penetration) की दर वर्ष 2019-20 में 3.76% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 4.20% तक पहुँच गई जो 11.70% की वृद्धि इंगित करती है।
    • इसके साथ ही, बीमा घनत्व (Insurance Density) वर्ष 2020-21 में 78 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 91 अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • वर्ष 2021 में जीवन बीमा प्रवेश 3.2% दर्ज किया गया, जो अन्य उभरते बाज़ारों से लगभग दोगुना और वैश्विक औसत से कुछ अधिक था।

भारत में बीमा क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • कम प्रवेश या पैठ:
    • अन्य देशों की तुलना में भारत में बीमा प्रवेश दर (Insurance Penetration Rate) निम्न है। यह बीमा के प्रति कम जागरूकता और उसके प्रति लोगों में भरोसे की कमी के कारण है।
      • भारत की लगभग 65% आबादी (90 करोड़ से अधिक) देश के ग्रामीण भागों में निवास करती है। लेकिन ग्रामीण भारत के केवल 8-10% को ही जीवन बीमा कवरेज प्राप्त है।
      • भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) के अनुसार, भारतीय बीमा उद्योग की पैठ सकल घरेलू उत्पाद के 5% से भी कम है। पैठ के मामले में भारत वैश्विक औसत (सकल घरेलू उत्पाद के 7%) से बहुत पीछे है।
  • उत्पाद नवाचार की कमी:
    • भारत में बीमा क्षेत्र उत्पाद नवाचार (Product Innovation) में सुस्त रहा है। कई बीमा कंपनियाँ लगभग एक जैसे उत्पादों की पेशकश करती हैं, जिससे बाज़ार में विविधता की कमी की स्थिति बनती है।
  • धोखाधड़ी:
    • भारत में बीमा क्षेत्र में धोखाधड़ी (fraud) एक बड़ी चुनौती है। बीमा धोखाधड़ी में झूठे दावे, गलत बयानी और अन्य अवैध गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • धोखाधड़ी प्रायः संगठन की प्रणालियों और नियंत्रण में व्याप्त कमज़ोरियों से सुगम बनती है जहाँ धोखाधड़ी करने की मंशा रखने वालों के लिये अवसर उत्पन्न होते हैं।
    • इसके अलावा, संभवतः डिजिटलीकरण और ग्राहक-केंद्रित नीतियों ने अनजाने में ही धोखेबाजों को पहचान की चोरी, गलत बयानी और धोखाधड़ीपूर्ण दावों के लिये अवसर प्रदान कर दिया है।
      • 70% से अधिक भारतीय बीमाकर्ताओं ने पिछले दो वर्षों में धोखाधड़ी के मामलों में मामूली वृद्धि से लेकर उल्लेखनीय वृद्धि तक का संकेत दिया है।
  • प्रतिभा प्रबंधन:
    • भारत में बीमा क्षेत्र प्रतिभा की कमी का सामना कर रहा है। उद्योग को बीमा विज्ञान (Actuarial Science), अंडररायटिंग (Underwriting), दावे (Claims) और जोखिम प्रबंधन (Risk Management) जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की आवश्यकता है।
    • प्रतिभाशाली पेशेवरों को आकर्षित करना और उन्हें बनाए रखना उद्योग के लिये एक चुनौती है।
  • डिजिटलीकरण की धीमी दर:
    • भारत में बीमा क्षेत्र अन्य उद्योगों की तुलना में डिजिटलीकरण को अपनाने में पर्याप्त सुस्त रहा है, जिसके परिणामस्वरूप अक्षम प्रक्रिया, पारदर्शिता की कमी और खराब ग्राहक अनुभव जैसी कई चुनौतियाँ उभरी हैं।
  • स्वचालन का अभाव:
    • भारत में कई बीमा कंपनियाँ अभी भी अंडरराइटिंग, पॉलिसी सर्विसिंग एवं दावा प्रबंधन जैसे कार्यों के लिये मैन्युअल प्रक्रियाओं पर निर्भर हैं, जो समय लेने वाली और त्रुटि-प्रवण हो सकती हैं।
    • इससे देरी, उच्च लागत और असंतुष्ट ग्राहक जैसे परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
  • दावा प्रबंधन:
    • भारत में दावों की प्रक्रिया को प्रायः जटिल, धीमी और अपारदर्शी माना जाता है, जिससे ग्राहक असंतुष्टि और बीमा उद्योग में उनके भरोसे की कमी जैसे परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
    • पारदर्शिता की कमी, अक्षम प्रक्रियाएँ और ग्राहकों के साथ उपयुक्त तरीके से संवाद की कमी इसके संभावित कारण हैं।

आगे की राह

  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना:
    • लागत को कम करने, दक्षता में सुधार करने तथा पारिस्थितिकी तंत्र के विकास का समर्थन करने के लिये समग्र मूल्य शृंखला में डिजिटलीकरण को प्राथमिकता से लक्ष्य बनाया जाना चाहिये।
    • उच्च कर्मचारी दक्षता के सृजन और उसे बनाए रखने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की आवश्यकता है। इस क्रम में अपस्किलिंग कार्यक्रम शुरू किये जा सकते हैं जो सॉफ्ट, तकनीकी और डिजिटल कौशल का एक मिश्रण विकसित करें।
  • ग्राहक व्यवहार में गतिशील परिवर्तन के साथ तालमेल बिठाना:
    • बीमा क्षेत्र के अभिकर्ताओं को ग्राहक व्यवहार एवं पसंद में गतिशील परिवर्तनों के साथ संरेखित होने और प्रत्ययी ज़िम्मेदारी (जैसे त्वरित व्यक्तिगत उत्पादों की पेशकश करना जिन्हें ग्राहकों को अधिक लचीलापन प्रदान करने के लिये सामूहिक उत्पाद पेशकशों से अधिक प्राथमिकता दी जा सकती है) के प्रदर्शन के साथ धारणाओं को प्रबंधित करने की आवश्यकता होगी।
  • ‘डेटा एंड एनालिटिक्स’ के उपयोग को इष्टतम करना:
    • अधिकतम दक्षता के लिये कार्यकरणों में डेटा एंड एनालिटिक्स (Data & Analytics) के उपयोग को इष्टतम करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • दावा प्रबंधन का सरलीकरण:
    • बीमाकर्त्ता और बीमाधारक के लिये दावा प्रबंधन प्रक्रिया को सरल बनाने की आवश्यकता है। स्केल (Scale) के प्रबंधन और भागीदारों के अगले समूह तक पहुँच प्राप्त करने के लिये रणनीतिक भागीदारी (Strategic partnerships) पर विचार किया जा सकता है।
  • हाइब्रिड वितरण मॉडल अपनाना:
    • वितरण के प्रति एक ऐसा नया दृष्टिकोण आवश्यक है, जो प्रौद्योगिकी को एकीकृत करता हो और उच्च क्षमता संपन्न बाज़ारों को प्राथमिकता देता हो। इसके लिये ग्रामीण बाज़ारों को सेवा देने पर विशेष बल के साथ मानव विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी को संयोजित करने वाले हाइब्रिड वितरण मॉडल को नियोजित किया जा सकता है।
  • धोखाधड़ी से निपटना:

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