क्या विकास से हिंदू-मुस्लिम दोनों की स्थिति सुधरी है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत में मुस्लिमों की आबादी ऐतिहासिक कारणों से ज्यादा है। बंटवारे के पहले, ब्रिटिश भारत में मुस्लिमों की आबादी दुनिया में सर्वाधिक थी। बंटवारे के बाद, भारत सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाला तीसरा देश बन गया। बांग्लादेश बनने के बाद यह दूसरे पायदान पर आ गया।

मुस्लिमों की प्रजनन दर हिंदुओं से ज्यादा है, लेकिन इस अंतर के पीछे कारण मुस्लिमों का कम आय वर्ग से होना है। यह बात वैश्विक स्तर पर प्रमाणित है कि अमीरों की तुलना में, गरीबों में प्रजनन दर ज्यादा होती है। आर्थिक स्थिति को नियंत्रित करने के बाद मुस्लिमों और हिंदुओं के बीच प्रजनन क्षमता में अंतर काफी हद तक कम हो गया है।

मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पर व्यापक आंकड़े मौजूद न होने के कारण मुस्लिमों पर पुलिस की बर्बरता से जुड़े विस्तृत अध्ययनों की भी कमी है। खबरें बताती हैं कि हिंसा हो रही है। कई मामलों में, अदालतों ने उन मामलों में फैसला बदल लिया या केस ही वापस ले लिया, जिनमें मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में हिंदू शामिल थे।

साल 2019 की कॉमन कॉज़ की एक रिपोर्ट मुताबिक एक सर्वे में शामिल आधे पुलिस वालों में मुस्लिम-विरोधी पूर्वाग्रह पाया गया। इनमें मुस्लिमों के खिलाफ हुए अपराध के मामले में हस्तक्षेप करने की संभावना कम पाई गई। भाजपा के उदय के साथ, राजनीतिक दलों में मुस्लिमों की शक्ति कम हो गई है।

आबादी में उनकी हिस्सेदारी 14% के करीब है, लेकिन संसद में प्रतिनिधित्व सिर्फ पांच फीसदी है। 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम लागू होने से आशंका बढ़ी है कि नागरिकों के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर आने से, कई मुसलमान मताधिकार से वंचित हो जाएंगे।

मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति पर डेटा भले अपडेट नहीं है, पर काफी जानकारी प्रदान करता है। ज्यादातर विस्तृत आर्थिक आंकड़े भाजपा के दौर से पहले के हैं। 2004-05 और 2011-2012 के भारतीय मानव विकास सर्वेक्षणों के आधार पर किए अध्ययन में पाया गया कि देश के सभी राज्यों में प्रति व्यक्ति आय के मामले में मुस्लिमों की स्थिति अन्य पिछड़ा वर्ग से भी बदतर है।

2004-2005 के बाद से मुस्लिमों की रैंकिंग गिरती जा रही है। अच्छी खबर यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से हो रहे आर्थिक विकास से हिंदुओं और मुस्लिमों दोनों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है। शिक्षा में लैंगिक असमानता भी कम होती दिख रही है। मुस्लिम महिलाओं ने उच्च शिक्षा में दाखिले के मामले में मुस्लिम पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है।

भारत में मुस्लिमों की अधिक जनसंख्या के आधार पर ही देश में उनकी अच्छी स्थिति के बारे में टिप्पणी नहीं की जा सकती है। इसके लिए हर पहलू को गहराई से समझने की जरूरत होगी।

वॉशिंगटन डीसी में दिए एक इंटरव्यू में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से उन खबरों के बारे में सवाल किया गया, जिनके मुताबिक भारत में मुस्लिम हिंसा का शिकार हो रहे हैं। उन्होंने जवाब देते हुए कहा मुस्लिमों की आबादी के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नम्बर पर है।

उनका आशय यह था कि इस कारण से भारत में मुस्लिमों की स्थिति बुरी नहीं हो सकती। तो क्या मुस्लिमों की आबादी बढ़ना इसका संकेत है कि उनके खिलाफ हिंसा की खबरें झूठी हैं या बढ़ाचढ़ाकर पेश की जा रही हैं? मुझे लगता है ऐसा नहीं है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में अश्वेत लोगों की संख्या और आबादी में हिस्सेदारी बढ़ रही है।

यह जहां 1950 में 10% थी, वहीं 2021 में 13.5% हो गई। वित्त मंत्री के तर्क के हिसाब से, अब अमेरिका में अश्वेतों के साथ नस्लभेद या भेदभाव नहीं होता होगा, वरना उनकी आबादी कैसे बढ़ती? वास्तविकता यह है कि अमेरिकी समाज में संरचनात्मक नस्लवाद व्यापक तौर पर फैला हुआ है- अश्वेत पुरुषों को तेज गाड़ी चलाने पर रोके जाने और जुर्माना लगाने की ज्यादा आशंका है, उन्हें श्वेत पुरुषों की तुलना में समान अपराध के लिए ज्यादा गंभीर सजा मिलने की आशंका अधिक है, निर्दोष श्वेत लोगों की तुलना में निर्दोष अश्वेत लोगों को अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने की आशंका 19 गुना ज्यादा है।

पाठक पूछ सकते हैं फिर अमेरिका में अश्वेतों की आबादी क्यों बढ़ रही है? अगर उनके साथ इतना नस्लभेद हो रहा है तो वे अमेरिका छोड़कर कहीं और क्यों नहीं चले जाते? पहली बात, सभी के पास देश छोड़ने या प्रवासन का विकल्प नहीं होता। दुनिया की 3 फीसदी आबादी ही अप्रवासी है।

दूसरी बात, अमेरिका दुनिया का सबसे अमीर देश है और अपनी आबादी को ढेरों अवसर उपलब्ध कराता है, जिसमें अश्वेत भी शामिल हैं। कैरिबियाई क्षेत्र और अफ्रीका से लोगों का प्रवासन वहां अश्वेत आबादी बढ़ने का मुख्य कारण है।

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