भारत के कारागारों में मौतें और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 कारागार सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय समिति ने बताया कि भारतीय कैदियों की अप्राकृतिक मौतों के प्रमुख कारणों में से एक आत्महत्या है।

कारागार में होने वाली मौतों का वर्गीकरण:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) द्वारा प्रत्येक वर्ष प्रकाशित की जाने वाली प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया रिपोर्ट के अनुसार कारागार में होने वाली मौतों को प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • वर्ष 2021 में भारत में न्यायिक हिरासत में कुल 2,116 कैदियों की मौत हुई, जिनमें से लगभग 90% मामले में मौतों को प्राकृतिक मौत के रूप में दर्ज किया गया।
  • बढ़ती उम्र और बीमारियाँ प्राकृतिक मृत्यु का प्रमुख कारण हैं। इन बीमारियों को हृदय रोग, एच.आई.वी., तपेदिक और कैंसर जैसी अन्य बीमारियों में उप-वर्गीकृत किया गया है।
    • कारागारों में कैदियों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ, दर्ज की गई प्राकृतिक मौतों की संख्या वर्ष 2016 में 1,424 से बढ़कर 2021 में 1,879 हो गई।
  • अप्राकृतिक मौतों का उप-वर्गीकरण इस प्रकार है:
    • आत्महत्या (फाँसी लगाने, ज़हर देने, खुद को चोट पहुँचाने, नशीली दवाओं की अधिक मात्रा लेने, विद्युत का झटका लगने आदि के कारण)
    • सह-कैदियों के कारण
    • गोली लगने से मौत
    • लापरवाही अथवा ज्यादती के कारण मौत
    • आकस्मिक मौतें (भूकंप जैसे प्राकृतिक आपदा, सर्पदंश, डूबना, दुर्घटनावश गिरना, जलने से चोट, दवा/शराब का सेवन आदि)।
      • सामान्य जनसंख्या में दर्ज की गई आत्महत्या की घटनाओं की तुलना में कैदियों में आत्महत्या की दर दोगुनी से भी अधिक पाई गई।

कारागार में होने वाली मौतों की जाँच प्रक्रिया:

  • वर्ष 1993 के बाद से हिरासत में हुई मौत की सूचना 24 घंटे के भीतर NCRB को दी जानी चाहिये, इसके बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मजिस्ट्रेट की पूछताछ की रिपोर्ट, या पोस्टमार्टम वीडियोग्राफी रिपोर्ट भी दिया जाना अनिवार्य है।
  • हिरासत में बलात्कार और मृत्यु के मामलों में आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट जाँच के अतिरिक्त अनिवार्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जाँच की भी आवश्यकता होती है।

जेल में कैदियों के मृत्यु की समस्या से निपटने हेतु प्रयास:

  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1996 के एक फैसले में कैदियों के स्वास्थ्य के प्रति सामाजिक दायित्व को स्पष्ट किया, क्योंकि वे “दोहरी समस्या” से पीड़ित हैं:
      • “कैदियों को स्वतंत्र नागरिकों की तरह चिकित्सा विशेषज्ञता तक पहुँच का लाभ नहीं मिलता है।
      • उनकी कैद की स्थितियों के कारण, कैदियों को स्वतंत्र नागरिकों की तुलना में अधिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • सरकारी प्रयास:
    • वर्ष 2016 का मॉडल जेल मैनुअल और वर्ष 2017 का मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, कैदियों के स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार को रेखांकित करता है।
      • इनमें स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में पर्याप्त निवेश, मानसिक स्वास्थ्य इकाइयों की स्थापना, उन्हें बुनियादी और आपातकालीन देखभाल प्रदान करने हेतु अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना एवं ऐसी घटनाओं को कम करने के लिये आत्महत्या रोकथाम कार्यक्रम तैयार करना शामिल है।
    • आत्महत्या के बढ़ते मामलों के संदर्भ में NHRC ने जून 2023 में राज्यों को सलाह जारी की, जिसमें बताया गया कि आत्महत्याएँ चिकित्सा और मानसिक स्वास्थ्य दोनों समस्याओं के कारण होती हैं।
      • NHRC ने “जेल कल्याण अधिकारियों, परिवीक्षा अधिकारियों, मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सा कर्मचारियों” के पदों को भरने की सिफारिश की।

जेल में होने वाली मौतों से संबंधित NHRC की सिफारिशें: 

  • आत्महत्या के प्रयासों को रोकना:
    • कैदियों की चादरों और कंबलों की नियमित जांँच और निगरानी करने की सलाह दी जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन वस्तुओं का उपयोग आत्महत्या के प्रयासों में नहीं किया जाता है।
  • कर्मचारियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण:
    • जेल कर्मचारियों के बुनियादी प्रशिक्षण में मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता का एक घटक शामिल किया जाना चाहिये। मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मामलों पर कर्मचारियों को सूचित और जागरूक रखने के लिये समय-समय पर पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों को लागू करने की भी सिफारिश की जाती है।
  • नियमित अवलोकन और समर्थन: 
    • कारा कर्मचारियों द्वारा कैदियों की नियमित निगरानी आवश्यक है, साथ ही मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित एक कैदी ‘मित्र’ का नियुक्तिकरण, ज़रूरतमंद कैदियों को महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान कर सकता है।
  • गेटकीपर मॉडल कार्यान्वयन:
    • कारागारों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के सुदृढ़ीकरण के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा तैयार गेटकीपर मॉडल को अपनाया जाना चाहिये।
    • इसमें आत्महत्या के जोखिम वाले साथी कैदियों की पहचान करने के लिये सावधानीपूर्वक चयनित कैदियों को प्रशिक्षण देना शामिल है, जिससे शीघ्र हस्तक्षेप और सहायता की सुविधा मिलती है।
  • व्यसन संबंधी समस्याओं का समाधान:
    • कैदियों के बीच नशे की लत से निपटने के उपायों को लागू किया जाना चाहिये, जिसमें आवश्यक सहायता और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और नशामुक्ति विशेषज्ञों द्वारा नियमित दौरे शामिल हैं।
  • जीवन-कौशल शिक्षा और गतिविधियाँ:
    • कैदियों के लिये जीवन-कौशल-आधारित शिक्षा, योगखेलशिल्प, नाटक, संगीत, नृत्य एवं उपयुक्त आध्यात्मिक व वैकल्पिक धार्मिक निर्देश जैसी आकर्षक गतिविधियाँ आयोजित की जानी चाहिये।
      • ये गतिविधियाँ कैदियों की ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रसारित करने और उनका समय रचनात्मक रूप से व्यतीत करने में मदद करती हैं। इसे सुविधाजनक बनाने के लिये प्रतिष्ठित गैर सरकारी संगठनों (NGO) के साथ सहयोग की मांग की जा सकती है।

कारागार सांख्यिकी से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • करागारों की संख्या:
    • राष्ट्रीय स्तर पर कारागारों की कुल संख्या 1.0% की वृद्धि के साथ वर्ष 2020 में 1,306 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,319 हो गई।
    • देश में सबसे अधिक कारागारों की संख्या राजस्थान (144) और उसके बाद तमिलनाडु (142), मध्य प्रदेश (131) में दर्ज की गई।
  • क्षमता:
    • कारागारों की वास्तविक क्षमता वर्ष 2020 में 4,14,033 से बढ़कर वर्ष 2021 में 2.8% की वृद्धि के साथ 4,25,609 हो गई।
    • वर्ष 2021 में 1,319 कारागारों की कुल क्षमता 4,25,609 (लोग) में से केंद्रीय जेलों की क्षमता सबसे अधिक (1,93,536) थी, इसके बाद ज़िला कारागार और उप कारागार थे।
  • दोषी कैदी:
    • दोषी कैदियों की संख्या वर्ष 2020 में 1,12,589 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,22,852 हो गई, इस अवधि के दौरान 9.1% की वृद्धि हुई।
    • दिसंबर 2021 तक सबसे अधिक दोषी कैदी केंद्रीय कारागारों में बंद थे, उसके बाद ज़िला और उप कारागारों में बंद थे।
  • विचाराधीन कैदी:
    • विचाराधीन कैदियों की संख्या वर्ष 2020 में 3,71,848 से बढ़कर वर्ष 2021 में 4,27,165 हो गई, इस अवधि के दौरान 14.9% की वृद्धि हुई।
    • 31 दिसंबर, 2021 तक 4,27,165 विचाराधीन कैदियों में सर्वाधिक विचाराधीन कैदी ज़िला कारागारों में बंद थे, इसके बाद केंद्रीय और उप कारागारों में बंद थे।
  • बंदी:
    • बंदियों की संख्या वर्ष 2020 में 3,590 से घटकर वर्ष 2021 में 3,470 (प्रत्येक वर्ष 31 दिसंबर को) हो गई, इस अवधि के दौरान कुल 3.3% की कमी दर्ज की गई।
    • 31 दिसंबर, 2021 तक 3,470 बंदियों में से सर्वाधिक संख्या में बंदी केंद्रीय कारागारों में बंद थे, उसके बाद ज़िला और विशेष कारागारों में बंद थे।

आगे की राह:

  • बदलती ज़रूरतों और चुनौतियों के अनुरूप नीतियों की नियमित समीक्षा तथा अद्यतन करना।
  • कैदियों की बेहतर देखभाल और सहायता सुनिश्चित करने के लिये कारागार कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में निवेश की आवश्यकता है।
  • कारागारों के अंदर मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एवं लत प्रबंधन को बढ़ाने के लिये सरकारी निकायों, गैर सरकारी संगठनों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • मानसिक स्वास्थ्य एवं लत से जुड़े कलंक को कम करने के लिये जागरूकता और समर्थन अभियानों को बढ़ावा देना, कारागार प्रणाली के अंदर अधिक सहानुभूतिपूर्ण वातावरण को बढ़ावा देना।
  • कार्यान्वित उपायों की चल रही निगरानी और मूल्यांकन द्वारा समर्थित, उभरते रुझानों तथा प्रभावी हस्तक्षेपों की पहचान करने के लिये अनुसंधान को प्रोत्साहित करना।

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