मकर संक्रांति पर सूर्योपासना से प्रसन्न होंगे नारायण

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मकरसंक्रांति के दिन खुलता है स्वर्ग का द्वार

मकर संक्रांति पर भीष्म पितामह ने त्यागा था शरीर

श्रीनारद मीडिया वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक,हरियाणा

भारत देश में वैसे तो बहुत से पर्वो का महत्व मिलता है। इन सब में मकर सक्रांति को भी एक महान पर्व माना जाता है। मकर सक्रांति पर्व वैदिक कालीन पर्वो में से एक है। यह भारत के संपूर्ण प्रांतों में विविध नामों और रूपों में अति प्राचीन काल से मनाया जा रहा है। मकर सक्रांति एक ऋतु पर्व के रूप में भी मनाई जाती है क्योंकि इस दिन भगवान सूर्य नारायण उत्तरायण हो जाते है और देवताओं का ब्रह्म मुहूर्त प्रारंभ हो जाता है। अत: उत्तरायण काल को शास्त्रकारों ने साधनाओं एवं परा- अपरा विद्याओं की प्राप्ति हेतु सिद्धकाल बताया है।

सूर्य उपासना के लिए इस दिन का विशेष महत्व माना जाता है। सूर्य को हिन्दू धर्म के लोग प्रधान देवता के रूप में मानते एवं पूजते हैं। सूर्य उन्नति और निरंतर आगे बढऩे की प्रेरणा देता है। ज्योतिष व मुहूर्त ग्रंथों के अनुसार मेहारम्भ, गृहप्रवेश, देव प्रतिष्ठा, सकाम यज्ञ- यज्ञादि अनुष्ठानों के लिए उत्तरायण काल को ही प्रशस्त कहा गया है। जीवन तो जीवन मृत्यु तक के लिए भी उत्तरायण काल की विशेषता शास्त्रों में बतलाई गई है।

हिन्दु पंचाग के अनुसार जब सुर्य एक राशी से दूसरी राशी मे प्रवेश करता है तो यह सक्रांति कहलाती है। सक्रांति का नाम करण उस राशी से होता है जिस राशी मे सुर्य प्रवेश करता है मकर सक्रांति के दिन सुर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश करता है। हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार मकर सक्रांति में पुण्य काल का विशेष महत्व माना जाता है।

ज्योतिष शास्त्रानुसार मकर सक्रांति इस दिन ग्रहपति और भगवान सूर्य देव का मकर राशि में प्रवेश होता है और शिशिर ऋतु में सूर्य उत्तरायण में भी प्रवेश करता है क्योंकि शास्त्रानुसार दो आयनों की संज्ञा दी गई है – दक्षिणायन व उत्तरायण। उत्तरायण में देवताओं का वास समझा जाता है व दक्षिणायन में असुरों का वास कहा गया है। अत: उत्तरायण को महान पुण्यदायक समय समझा जाता है। इसका प्रमाण महाभारत में भी दिया गया है कि जिसमें भीष्म पितामह ने भी शर-शैय्या पर लेटे-लेटे प्राण त्यागने हेतु सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की थी।

इस बार मकर संक्रांति पर बन रहा है विशेष संयोग। इस दिन गंगासागर में स्नान करना महत्वपूर्ण फलदायक कहा गया है। कोलकाता से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर एक टापू है, जहां पर गंगा का सागर में मिलन होता है जो गंगासागर के नाम से विख्यात है। वहीं पर भगवान कपिलमुनि का प्राचीन मन्दिर व तपोभूमि पर विशाल मेले का आयोजन इसी का परिचायक समझा जाता है।

इस दिन स्नान करते समय प्राय: तीर्थ में नाभि तक जल में खड़े होकर सूर्य भगवान को जल देना अत्याधिक पुण्यदायक माना जाता है। मकर सक्रांति पर संन्यासी व गृहस्थियों को तीर्थ पर स्नान करना विशेष पुण्यदायी है। इस दिन चावल, दाल, खिचड़ी, गुड़, तिल, फल, का दान उत्तम है जिन व्यक्तियों का कारोबार मंदी के दौर से गुजर रहा है या जो व्यक्ति मानसिक रुप से तनाव ग्रस्त है उनको इस दिन का लाभ उठाना चाहिए और गऊशालाओं में अपने वजन के बराबर हरि घास व गुड़ दान करना चाहिए और मेवा व ऊनी वस्त्र आदि का दान करने का भी विशेष पुण्यदायक फल माना जाता है।

मकर संक्रांति में ‘मकर’ शब्द मकर राशि को अंकित करता है जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।

मकर संक्रांति का महत्व

माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी भुलाकर उनके घर गए थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से व्यक्ति का पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है।इस दिन से मलमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है। इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है।

मकर संक्रांति को क्यों कहा जाता है पतंग महोत्सव पर्व 

यह पर्व ‘पतंग महोत्सव’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य वजह बताई जाती है। सर्दी के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा और हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है।
मकर संक्रांति नई फसल के आगमन का प्रतीक है। इस दिन किसान अच्छी फसल के लिए सूर्य देव को धन्यवाद अर्पित करते हैं। सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है, जिन्हें सभी जीवों का जीवनदाता माना जाता है।

इस दिन तिल के लड्डू या तिल से बने अन्य व्यंजन खाना भी शुभ माना जाता है।
शुभ मुहूर्त।
पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मकर संक्रांति का पुण्य काल 14 जनवरी को सुबह 9 बजकर 3 मिनट पर शुरू होगा, जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 05 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 21 मिनट तक
पुण्यकाल: सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 05 बजकर 46 मिनट तक।
महापुण्य काल: सुबह 9 बजकर 3 मिनट से सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक।
इन मुहूर्तों में स्नान, दान और पूजा करने से विशेष फल मिलता है।
मकर संक्रांति पर ऐसे करें पूजा।
मकर संक्रांति के दिन सबसे पहले सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
सूर्य देव को गंगाजल से स्नान कराएं और उन्हें फूल, चंदन, रोली, सिंदूर आदि अर्पित करें।
सूर्य देव के विभिन्न मंत्रों का जाप करें और उनकी स्तुति करें।
सूर्य देव को भोग लगाएं. आप उन्हें फल, मिठाई, या अन्य भोग लगा सकते हैं।
अंत में सूर्य देव की आरती करें।
इस दिन गरीबों को दान दें।
तिल का दान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था। इस के अलावा इसी दिन गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था।

आभार-वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक,संगठन सचिव षडदर्शन साधुसमाज, गोविंदानंद आश्रम पिहोवा।

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